ग्राउंड रिपोर्ट: जरांगे के जाल में उलझा है जालना, वोटों के विभाजन पर निर्भर उम्मीदवारों की जीत

जरांगे के जाल में उलझा है जालना, वोटों के विभाजन पर निर्भर उम्मीदवारों की जीत
  • मराठा आरक्षण की मजबूत लहर भाजपा प्रत्याशी रावसाहेब दानवे की जीत में बनी बाधा
  • 15 वर्ष बाद चुनाव लड़ रहे कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. कल्याण काले को बता रहे बाहरी ‘चेहरा’

डिजिटल डेस्क, जालना, संजय देशमुख। जालना से 30 किमी दूर चिखली ग्राम पंचायत के पूर्व सरपंच मराठा समाज के भगवानराव सटवाजी भोंडे मराठा आरक्षण आर्थिक आधार पर देने की वकालत करते हैं। भगवानराव मराठा समाज के नेता मनोज जरांगे के ‘सगे सोयरे’ को आरक्षण देने की मांग को भी नकारते हैं। उनका मानना है कि आरक्षण मिलने का आधार ‘जरूरतमंद’ होना चाहिए। दूसरी ओर एसटी महामंडल के सेवानिवृत्त कर्मी पी.एस. पाटील और युवा संतोष निकम जैसे भी लोग हैं, जो मराठा आरक्षण को लेकर दावा करते हैं कि जालना लोकसभा सीट पर इसका प्रभाव जरूर पड़ेगा। तीसरा पक्ष वह है, जो यह मानता है कि जरांगे पाटील की ओबीसी कोटे से मराठा आरक्षण देने की मांग ने ओबीसी और मराठा समुदाय में विष घोलने का काम किया है।

जालना से मराठा आरक्षण का केंद्र अंतरवाली सराटी 52 किमी है। जालना सीट से छटवीं बार संसद में प्रवेश के लिए प्रयासरत केंद्रीय राज्यमंत्री और महायुति के भाजपा प्रत्याशी रावसाहेब दानवे को मराठा आरक्षण की मजबूत लहर के साथ अपने घरेलू मैदान में बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में 3 लाख 32 हजार से अधिक वोटों से जीतने वाले दानवे के सामने इस बार कई बाधाएं हैं।


बीस साल से जमे दानवे के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी नजर आ रही है, लेकिन भाजपा को विश्वास है कि विकास कार्यों की बदौलत जीत की नैय्या पार करा लेंगी। प्रचार शुरु हुए दस दिन हो गए, लेकिन शिंदे गुट और राकांपा (अजित पवार) गुट के नेताओं के दानवे के साथ दिल नहीं मिले हैं। शिंदे गुट के नेता और पूर्व राज्यमंत्री अर्जुन खोतकर प्रचार से नदारद थे। 8 मई को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की सभा तय है। तीन दिन पहले दानवे ने खोतकर के बंगले पर जाकर मुलाकात की। जालना सीट पर 13 मई को मतदान होगा।


चुनावी रण में 26 उम्मीदवार हैं, लेकिन दानवे की सीधी भिड़ंत 2009 के चुनाव में दानवे से 8 हजार वोटों से हारने वाले कांग्रेस के डॉ. कल्याण काले के साथ होनी है। दोनों प्रत्याशी मराठा समाज के हैं।


डॉ. काले संभाजीनगर (औरंगाबाद) में रहते हैं। लोकसभा क्षेत्र में आने वाले छह विधानसभा क्षेत्र में से सिल्लोड, फुलंबरी और पैठण औरंगाबाद जिले में हैं, जबकि जालना, भोकरदन और बदनापुर का जालना जिले में समावेश है। विधानसभा वार तो मामला फिफ्टी-फिफ्टी का है, लेकिन जालना से कांग्रेस के कैलाश गोरंट्याल के अलावा बाकी सभी पांच विधायक महायुति के हैं, यह बात दानवे के पक्ष में है। मराठवाड़ा में संभाजीनगर (औरंगाबाद) के बाद सबसे ज्यादा चर्चा और ध्यान खींचने वाला संसदीय क्षेत्र जालना है। दानवे भाजपा के ग्रामीण चेहरा हैं, जो लगातार सन 1999 से जीत दर्ज करते आ रहे हैं।

वोटों के विभाजन पर निर्भर दोनों की जीत

जालना पहले निजाम राज्य का हिस्सा था। हायब्रीड सीड्स, स्टील मिल, और मौसंबी फल के उत्पादन के लिए यह प्रसिद्ध है। जालना सीट पर 90 के दशक तक कांग्रेस और फिर भाजपा का दबदबा रहा है। जालना का अंतरवाली सराटी गांव पिछले साल अगस्त से महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन का केंद्र बना हुआ है। औरंगाबाद जिले में सिल्लोड, फुलंबरी और पैठन विधानसभा क्षेत्रों में मराठा समुदाय बड़ी संख्या में रहता है। मराठा समुदाय के वोटों के दम पर दानवे ने अब तक पांच बार इस गढ़ को बरकरार रखा है, लेकिन इस सीट से मनोज जरांगे ने मराठा आरक्षण के भावनात्मक मुद्दे पर मराठा समुदाय को अपने पक्ष में खड़ा कर लिया है। हालाकि जरांगे ने सीधे तौर पर यह नहीं कहा कि भाजपा के विरोध में वोट दें, लेकिन चर्चा जोरों पर है कि उन्होंने आरक्षण विरोधियों को सबक सिखाने की अपील की है। ओबीसी समाज को यह डर है कि उनके कोटे से कहीं मराठा समाज को आरक्षण नहीं मिल पाए। दानवे की जीत मराठा समाज के वोटों में विभाजन और ओबीसी समाज के वोटों पर निर्भर मानी जा रही है, तो दूसरी तरफ डॉ. काले को मराठा, दलित और मुस्लिम समाज के वोट उनके पक्ष में होने का भरोसा है।

दानवे का मैं और मेरा परिवार

भाजपा प्रत्याशी रावसाहेब दानवे केंद्रीय मंत्री हैं। पुत्र संतोष दानवे भोकरदन से विधायक हैं, तो भाई भास्कर दानवे की विधायक बनने की मंशा है। आरोप है कि विकास कार्यों के ठेके दानवे के इसी भाई को मिलते हैं। रावसाहेब की बेटी भी जिप सदस्य रही है।


काले 15 वर्ष से संपर्क से बाहर

कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. कल्याण काले 2009 में रावसाहेब दानवे के सामने चुनाव हारने के बाद जालना जिले के मतदाताओं से संपर्क के बाहर हैं। डॉ. काले पर आरोप है कि 8 हजार के अल्प वोटों से हारने के बाद भी वह 15 वर्ष से जिले में नजर नहीं आए।

12 दिन में एक बार होती है जलापूर्ति

जालना व्यापारी संघ के अध्यक्ष सतीश पंच और किराणा एसोसिएशन के सदस्य संजय लवाडे ने बताया कि रावसाहेब दानवे ने विकास कार्य तो किए हैं, लेकिन पानी की समस्या हल नहीं कर पाए। जनता को हजार से डेढ़ हजार में पानी का टैंकर मंगवाना पड़ता है। मराठवाड़ा चेम्बर ऑफ कॉमर्स के उपाध्यक्ष विनीत नंदकिशोर साहनी ने बताया कि दानवे के कार्यकाल में रेल परियोजनाओं के कार्य को गति मिली है। जालना से मुंबई तक वंदे भारत ट्रेन शुरु हुई है। पर किसान, युवा वर्ग निराश है।


राजाभाऊ देशमुख, कांग्रेज जिलाध्यक्ष के मुताबिक जीत की एक सौ एक फीसदी संभावना है। जिले में कांग्रेस के चार लाख वोट हैं। शिवसेना (उद्धव) के डेढ़ लाख वोट हैं। रावसाहेब दानवे को गांवों में मराठा आंदोलक एंट्री नहीं करने दे रहे हैं।

शुंभागी देशपांडे, भाजपा महिला मोर्चा अध्यक्ष के मुताबिक विपक्ष के पास मुद्दे नहीं हैं। कांग्रेस उम्मीदवार का लोग चेहरा भी नहीं पहचानते हैं। उनसे कार्यकर्ता तक नहीं मिल रहे हैं। हमारे लिए 2009 की तुलना में स्थिति बेहतर है।



Created On :   6 May 2024 5:56 PM IST

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