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संकट: सोयाबीन की फसल पर इल्लियों का प्रकोप , फिर चिंता में घिरे क्षेत्र के किसान
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- अत्याधिक रासायनिक छिड़काव का असर
- नये-नये रोग और कीट देखने को मिल रहे
- पत्तियों का पीला पड़ना, बढ़ती पत्तियों का मुड़ना, सिकुड़न के लक्षण
डिजिटल डेस्क, कुरहा (अमरावती)।तहसील में सोयाबीन की फसल पर इल्लियों का प्रकोप है। इससे निपटने के लिए कृषि विभाग द्वारा किसानों को सतर्क करने के साथ क्या करना चाहिए, इसकी जानकारी दी गई है। एक अध्ययन के अनुसार, तिवसा तहसील में सोयाबीन की फसल बोने के बाद 25-30 दिनों के बाद पीले मोज़ेक सहित वायरल बीमारियों की संख्या में वृद्धि हुई, जिससे किसान चिंतित हो गए हैं।
पिछले दो वर्षों में तिवसा तहसील की सीमा से लगे क्षेत्रों में विभिन्न बीमारियों का प्रकोप देखा गया है। अत्याधिक रासायनिक छिड़काव के कारण आज सोयाबीन की फसल में नये-नये रोग और कीट देखने को मिल रहे हैं। पिछले 2 सालों में इस फसल को कई बीमारियों ने घेर लिया है, जिससे उत्पादन कम हो गया है और फसल के खतरे में पड़ने की आशंका बढ़ गई है, इसलिए इस साल सोयाबीन की खेती के रकबे में कमी आई है और वहीं अरहर और कपास के क्षेत्र में वृद्धि हुई है।
सोयाबीन की फसल में पत्ती खाने वाली इल्लियां, बालों वाली इल्लियां हर जगह फसलों को नुकसान पहुंचा रही हैं। इसके अलावा, सोयाबीन की फसल में शुरू से ही लौह, मैग्नीशियम, लौह और अन्य पोषक तत्वों की कमी होती है। घोंघे, भृंग आदि की बढ़ती संख्या के कारण कार्पा, टैम्बरा, चारकोल जैसी बीमारियां बढ़ी हैं। बढ़ती बीमारी से किसान चिंतित हैं और आशंका है कि इसका असर उत्पादों पर पड़ेगा। सोयाबीन की फसल में पत्तियों का पीला पड़ना, बढ़ती पत्तियों का मुड़ना, सिकुड़न के लक्षण, पौधों की वृद्धि रुकना जैसे लक्षण देखे जाते हैं।
ये उपाय करें: मई माह में भूमि की गहरी जुताई करनी चाहिए। घरेलू बीजों के उपयोग से बीमारियों और कीटों का प्रसार कम हो जाता है। साथ ही सोयाबीन के बीज बोते समय उपजाऊ मिट्टी, ट्राइकोडर्मा, राइजोबियम से बीजोपचार करना चाहिए। खेत को खरपतवार से मुक्त रखना बहुत जरूरी है और निराई-गुड़ाई भी जरूरी है। पहला छिड़काव 20-25 दिन बाद नीम के अर्क के साथ अन्य जैविक आदानों का करना चाहिए। 18-20 एकड़ के खेत में पक्षियों के रुकने के लिए जगह-जगह पीले और नीले चिपचिपे जाल बनाए जाने हैं। और प्रति एकड़ 8-10 पौधे लगाने हैं। प्रत्येक स्प्रे के साथ नीम के अर्क का उपयोग किया जाना चाहिए। ट्रैप फसल लगाने के लिए भी मिश्रित फसल प्रणाली अपनाना जरूरी है। रोगग्रस्त क्षेत्रों से सोयाबीन के बीज को दोबारा बोने से बचना चाहिए।
Created On :   18 July 2024 12:32 PM IST