मानवता की मिसाल: अमरावती के वझ्झर मॉडल को समूचे देश में लागू करने के दिये संकेत

  • केन्द्रीय समिति ने की मुलाकात
  • अनाथों के नाथ पद्मश्री पापलकर से की मंत्रणा
  • अधिकारियों ने पूरे क्षेत्र का किया भ्रमण

सागर पुरोहित , अचलपुर (अमरावती)। अनाथों के नाथ कहे जाने वाले शंकरबाबा पापलकर के वझ्झर मॉडल को देशभर में लागू करने के बारे में सांसद डॉ. अनिल बोंडे द्वारा की गई मांग पर केन्द्र सरकार ने गंभीर पहल की है। इसका अध्ययन करने के लिए केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की ओर से केंद्रीय समिति ने मंगलवार को वझ्झर का दौरा किया। अधिकारियों ने पूरे क्षेत्र का भ्रमण करते हुए जहां हर बारीक चीजों को समझा, वहीं पद्मश्री शंकरबाबा पापलकर के साथ चर्चा भी की।

दिल्ली से आयी इस टीम में राष्ट्रीय न्यास के कार्यक्रम अधिकारी नवनीत कुमार, सलाहकार तुकाराम गायकवाड़, सीआरसी नागपुर के संचालक प्रफुल्ल शिंदे और जिला समाज कल्याण अधिकारी पुंड शामिल थे। टीम ने विद्यालय के मूक-बधिर मानसिक रूप से विक्षिप्त बालक-बालिकाओं से मुलाकात की। इस समिति के माध्यम से केंद्र सरकार के स्तर पर वझ्झर मॉडल कैसे बनाया जाएगा? इसकी पूरी जानकारी दी जाएगी। अनाथ मानसिक रूप से दिव्यांगों के स्थायी पुनर्वास के मुद्दे पर भी चर्चा की गई। यहां के कार्य से प्रभावित होकर डॉ. अनिल बोंडे ने केन्द्र सरकार से इसका अध्ययन करने का आग्रह किया था।

खास बात यह है कि इस आश्रम के क्षेत्र में मानसिक रूप से विक्षिप्त, दिव्यांग और निराश्रित लड़के-लड़कियों द्वारा हजारों पेड़ लगाए गए हैं। परतवाड़ा से निकलने के बाद इसी सतपुड़ा पर्वत की तलहटी में वझ्झर नामक गांव है जो न केवल महाराष्ट्र में बल्कि पूरे भारत में प्रसिद्ध हो गया है। 1990 में शुरू हुए स्व.अंबादासपंत वैद्य अंध अपंग, मूक-बधिर, अनाथ बालक आश्रम है। यहां 123 दिव्यांग, मानसिक रूप से मंद, मूक-बधिर बच्चों का जीवन संवारने का काम यहां होता है।

पद्मश्री शंकरबाबा पापलकर कई वर्षों से इन अनाथ मानसिक रूप से कमजोर बच्चों के पुनर्वास की मांग कर रहे हैं। इन बच्चों को आरक्षण नहीं बल्कि पुनर्वास की जरूरत पर उन्होंने बल दिया। समिति अपनी पूरी समीक्षा केंद्र सरकार को सौंपने जा रही है। इसके बेहतरीन संकेत मिल रहे हैं। ऐसा होने पर लाखों अनाथ, िदव्यांगों का जीवन संवरने में मदद मिलेगी।

समिति प्रभावित : वझ्झर में हुआ काम देखकर केन्द्र सरकार की समिति भी प्रभावित हुई। अनाथ, लावारिस बच्चों के पिता के रूप में पद्मश्री शंकरबाबा पापलकर ने अपना नाम दिया है। हरा-भरा और पर्यावरण से ओतप्रोत है। समिति के सदस्य यहां के कामकाज से प्रभावित हुए। इससे सकारात्मक रिपोर्ट केन्द्र को देने और केन्द्र से भी वर्षों पुरानी बाबा की यह मांग पूरी होने की आस जगी है।

Created On :   11 Sept 2024 5:33 AM GMT

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