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महिला दिवस: दूसरों के जीवन में सप्तसुरों का रस घोल रही दृष्टिहीन गांधारी, कर रही राहें रोशन
- पद्मश्री डॉ. शंकरबाबा पापड़कर बने हैं बचपन से उसकी लाठी
- दृष्टिहीन गांधारी दूसरों के जीवन में सप्तसुरों का रस घोल रही
- पद्मश्री डा. शंकरबाबा पापड़कर बने हैं बचपन से उसकी लाठी
डिजिटल डेस्क, अमरावती। जन्म से ही दृष्टिहीन होने के कारण माता-पिता ने केवल 2-3 वर्ष की जिस नन्हीं बच्ची को पंढरपुर के चंद्रभागा नदी किनारे लावारिस छोड़ दिया था। आज वहीं दृष्टिहीन व लावारिस गांधारी शंकरबाबा पापलकर अपनी दिव्यांगता को मात देकर दूसरों के लिए एक प्रेरणा बनी हैं। कठिन परिश्रम कर संगीत के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। संभवत: वह देश अथवा महाराष्ट्र की पहली शत-प्रतिशत नेत्रहीन और लावारिस होगी, जिसने अपनी इच्छाशक्ति के भरोसे संगीत में विशारद की और अब परतवाड़ा के सरकारी उप जिला अस्पताल में संगीतीय उपचार (म्यूजिक थेरेपी) से प्रसूता वार्ड में प्रसूताओं की सेवा कर अपने जीवन को सार्थक कर रही है।
दोनों हाथों से भी है कमजोर : अमरावती जिले के परतवाड़ा निकट बसे वज्जर में स्व. अंबादासपंत वैद्य मतिमंद-मूकबधिर लावारिस दिव्यांग बालगृह में पद्मश्री डॉ. शंकरबाबा पापलकर की देखरेख में पली-बड़ी नेत्रहीन व लावारिस गांधारी के संघर्ष की कहानी बड़ी ही मार्मिक है। डॉ. शंकरबाबा पापलकर बताते हैं कि वर्ष 1996-97 में बाल विकास कल्याण समिति ने 2-3 वर्ष की एक मासूम बच्ची वज्जर में उनके बालगृह भेजी।
जन्म से ही दोनों आंखों से दृष्टिहीन इस बच्ची को उन्होंने गांधारी का नाम दिया। पिता की जगह अपना नाम लगाया। बालगृह में अन्य लावारिस बालिकाओं के साथ पली-बड़ी गांधारी के दोनों हाथों में इतनी भी ताकत नहीं है कि वह रोटी बेल सके। जिसके कारण इस नेत्रहीन व हाथों से कमजोर बालिका के पालन-पोषण को लेकर बाबा ने विशेष ध्यान दिया।
देश भक्ति के गीत कंठस्थ
कहते हैं कि मन में कुछ कर गुजरने का जोश और जुनून हो तो हर मुश्किल राह आसान हो जाती है। गांधारी ने भी नेत्रहीन होने का दर्द भूला दिया। धोतरखेड़ा के अंध विद्यालय में प्राथमिक शिक्षा के बाद उसे अमरावती के नरेंद्र भिवापुरकर अंध विद्यालय में सातवीं तक शिक्षा दिलवाई। पश्चात आठवीं से बारहवीं तक गांधारी ने सामान्य विद्यार्थी की तरह परतवाड़ा के आईएस ब्वाइज एण्ड गर्ल्स हाईस्कूल से बारहवीं तक शिक्षा ग्रहण की। इस बीच उसका संगीत के प्रति लगाव देखकर डॉ. शंकरबाबा ने उसे परतवाड़ा के तलवी गुरुजी के पास संगीत में प्रशिक्षित करवाया। तलवी गुरुजी के प्रयासों से मुंबई के बाल गंधर्व संगीत विद्यालय से गांधारी ने संगीत में विशारद की। बालगृह की अधीक्षक प्रमिला नगाटे व वार्डन वर्षा काले ने बचपन से गांधारी की हर तरह से सहायता की। उसने देश भक्ति के लगभग सभी गीत कंठस्थ किए हैं। हाल ही में मुंबई में एक बड़े सरकारी समारोह में उसने अपनी मधुर आवाज में ये मेरे वतन के लोगों, यह गीत गाकर अपनी प्रतिभा से सभी को हतप्रभ कर दिया था। वर्ष 2019 में जिला सरकारी अस्पताल में उसे ठेका पद्धति पर संगीतीय उपचार के लिए नियुक्त किया गया। वहां से अब उसका तबादला परतवाड़ा के उप जिला सरकारी अस्पताल में हो गया है। जहां वार्ड क्रमांक 18 में प्रसूताओं को संगीतीय उपचार से सेवा दे रही है। डा. शंकरबाबा पापलकर बचपन से उसकी लाठी बने हंै। वे कहते है कि अब इस होनहार 28 वर्षीय बच्ची के विवाह की चिंता है। कोई योग्य वर मिल जाए तो चिंता दूर हो जाए।
Created On :   8 March 2024 4:45 PM IST