गत तीन साल में देश के आर्गेनिक उर्वरक उत्पादन में आयी तेज गिरावट

There has been a sharp decline in the organic fertilizer production of the country in the last three years
गत तीन साल में देश के आर्गेनिक उर्वरक उत्पादन में आयी तेज गिरावट
सीएसई गत तीन साल में देश के आर्गेनिक उर्वरक उत्पादन में आयी तेज गिरावट
हाईलाइट
  • इस साल आंध्र प्रदेश उत्पादन के मामले में दूसरे स्थान पर रहा था।

 डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली । वर्ष 2017-18 में देश में आर्गेनिक उर्वरक का उत्पादन 33.87 करोड़ टन था, जो तेजी से गिरता हुआ वर्ष 2020-21 में मात्र 38.8 लाख टन रह गया।

सेंटर फॉर साइंट एंड एन्वॉयरमेंट की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, साल 2017-18 में देश में सबसे अधिक ऑर्गेनिक उर्वरक का उत्पादन बिहार में हुआ। कुल उत्पादन में बिहार का योगदान 30 प्रतिशत रहा, जबकि गुजरात दूसरे और झारखंड तीसरे स्थान पर रहा।

वर्ष 2018-19 में बिहार को पीछे कर कर्नाटक ने बाजी मार ली और कुल उत्पादन में उसका योगदान 94 प्रतिशत रहा। इसके अगले साल भी कर्नाटक ही अव्वल रहा लेकिन इसका योगदान तेजी से घटकर 64 प्रतिशत रह गया। इस साल आंध्र प्रदेश उत्पादन के मामले में दूसरे स्थान पर रहा था।

साल 2020-21 में छत्तीसगढ़ पहले स्थान पर रहा और कर्नाटक एक पायदान पीछे चला गया। इस साल छत्तीसगढ़ का योगदान कुल उत्पादन में 63 प्रतिशत रहा था।

सीएसई का कहना है कि लेकिन इस दौरान देश में तरल जैव उर्वरक का उत्पादन 2014-15 की तुलना में करीब 552 प्रतिशत की तेजी के साथ वर्ष 2020-21 में करीब 26,442 किलोमीटर हो गया।

इस दौरान करियर आधारित ठोस उर्वरक का उत्पादन भी वर्ष 2018-19 की तुलना में 83 प्रतिशत बढ़कर करीब 1,34,323 टन हो गया।

सीएसई का कहना है कि वर्ष 2017 में देश में 424 विनिर्माण इकाइयां करियर आधारित ठोस उर्वरक बना रही थी जबकि 108 संयंत्र तरल जैव उर्वरक के उत्पादन से जुड़ी थीं।

सीएसई का कहना है कि सभी राज्य उत्पादन क्षमता का ठीक तरीके से दोहन नहीं कर रहे हैं। इसके अलावा इन कंपनियों, पंजीकृत जैव उर्वरक उत्पादों आदि के बारे में देशव्यापी जानकारी सीमित है।

रिपोर्ट के मुताबिक देश को आर्गेनिक और प्राकृतिक खेती की ओर ले जाने के लिये एक अच्छे फंड वाले राष्ट्रव्यापी अभियान की सख्त जरूरत है।

रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र सरकार ने जैव उर्वरक और आर्गेनिक उर्वरक को बढ़ावा देने के लिये कई योजनायें शुरू की हैं। इन योजनाओं में परंपरागत कृषि विकास योजना, पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिये मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अभियान और तिलहनों तथा पाम ऑयल पर आधारित राष्ट्रीय अभियान शामिल हैं।

सीएसई का कहना है कि लेकिन इन सभी योजनाओं पर किया जाना कुल व्यय रासायनिक उर्वरक के लिये दी जाने वाली सब्सिडी के सामने नगण्य दिखता है। इन योजनाओं के तहत की जाने वाली ऑर्गेनिक खेती देश के कुल बुवाई क्षेत्र यानी 14 करोड़ हेक्टेयर की करीब 2.7 प्रतिशत हिस्से में ही होती है।

साल 2018 से 2021 के बीच परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत मात्र 994 करोड़ रुपये, मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट के तहत 416 करोड़ रुपये और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अभियान के तहत जैव उर्वरक के लिये मात्र चार करोड़ रुपये जारी किये गये।

दूसरी तरफ रासायनिक उर्वरक के लिये दी जाने वाली सब्सिडी साल दर साल बढ़ती गयी। साल 2001-2002 में इस मद में 12,908 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी जाती थी, जो दस गुणा बढ़कर 2020-21 में 1,31,230 करोड़ रुपये हो गयी।

 

(आईएएनएस)

Created On :   25 April 2022 7:30 PM IST

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