कई सरकारी बैंक कमजोर संपत्ति व उच्च ऋण लागत से परेशान

कई सरकारी बैंक कमजोर संपत्ति व उच्च ऋण लागत से परेशान
कई सरकारी बैंक कमजोर संपत्ति व उच्च ऋण लागत से परेशान
एसएंडपी कई सरकारी बैंक कमजोर संपत्ति व उच्च ऋण लागत से परेशान
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  • कई सरकारी बैंक कमजोर संपत्ति व उच्च ऋण लागत से परेशान : एसएंडपी

डिजिटल डेस्क, चेन्नई। सरकार के स्वामित्व वाले भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) और प्रमुख निजी बैंकों ने अपनी संपत्ति की गुणवत्ता की चुनौतियों का समाधान किया है, लेकिन अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। यह बात वैश्विक बैंकिंग परि²श्य पर अपनी नवीनतम शोध रिपोर्ट में एस एंड पी ग्लोबल रेटिंग्स ने कही। रिपोर्ट के अनुसार कई बड़े पीएसबी अभी भी कमजोर संपत्ति, उच्च ऋण लागत और निम्न कमाई से जूझ रहे हैं।

रिपोर्ट में भारतीय बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र के बारे में कहा गया है, हम वित्त कंपनियों (फिनकोस) के लिए मिक्स्ड-बैग परफॉमेंस की उम्मीद करते हैं। इन फिनकोस की संपत्ति की गुणवत्ता अक्सर प्रमुख निजी क्षेत्र के बैंकों की तुलना में कमजोर होती है।

वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ने कहा कि वित्तीय वर्ष 2024-2026 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में सालाना 6.5 प्रतिशत से 7 प्रतिशत की वृद्धि के साथ, मध्यम अवधि में भारत की आर्थिक वृद्धि की संभावनाएं मजबूत रहनी चाहिए। एस एंड पी ग्लोबल ने कहा, हम अनुमान लगा रहे हैं कि 31 मार्च, 2024 तक बैंकिंग क्षेत्र के कमजोर ऋण सकल ऋण के 4.5 प्रतिशत से 5 प्रतिशत तक गिर जाएंगे।

इसी तरह, हम वित्त वर्ष 2023 के लिए ऋण लागत के 1.2 प्रतिशत के सामान्य होने और अगले कुछ वर्षों के लिए लगभग 1.1 प्रतिशत से 1.2 प्रतिशत पर स्थिर होने का अनुमान लगाते हैं। यह ऋण लागत को अन्य उभरते बाजारों और भारत के 15 साल के औसत के बराबर बनाता है। एस एंड पी ग्लोबल को उम्मीद है कि अगले कुछ वर्षों में भारत में ऋण वृद्धि कुछ हद तक सांकेतिक सकल घरेलू उत्पाद अनुरूप बनी रहेगी, और खुदरा क्षेत्र में ऋण वृद्धि कॉपोर्रेट क्षेत्र से अधिक रहेगी।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कॉपोर्रेट उधारी भी गति पकड़ रही है, लेकिन अनिश्चित वातावरण पूंजीगत व्यय से संबंधित विकास में देरी कर सकता है। एसएंडपी ग्लोबल ने कहा, कैपिटल मार्केट फंडिंग से बैंक फंडिंग में बदलाव भी कॉरपोरेट लोन ग्रोथ में तेजी ला रहा है। डिपॉजिट को रफ्तार बनाए रखना मुश्किल हो सकता है, जिससे क्रेडिट-टू-डिपॉजिट अनुपात कमजोर हो सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक कुछ सालों में क्रेडिट-टू-डिपॉजिट अनुपात में सुधार हुआ है।

सोर्सः आईएएनएस

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Created On :   19 Nov 2022 1:00 PM IST

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