अमेरिका को समझना होगा कि मित्र को कमजोर नहीं करना चाहिये
- अमेरिका को समझना होगा कि मित्र को कमजोर नहीं करना चाहिये : सीतारमण
डिजिटल डेस्क, वाशिंगटन। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यूक्रेन पर हमले के कारण रूस पर लगायी गयी पाबंदियों के बावजूद उससे संबंध बनाये रखने की भारत की नीति को स्पष्ट करते हुये कहा कि यह पड़ोस की सुरक्षा चुनौतियों पर आधारित है और अमेरिका को यह समझना चाहिये कि अगर उसे मित्र चाहिये तो वह कमजोर मित्र नहीं हो सकता है और न ही मित्र को कमजोर करना चाहिये।
वित्त मंत्री ने शुक्रवार को कहा कि उन्होंने विश्व बैंक समूह की स्प्रिंग मीटिंग्स के लिये अमेरिका की अपनी वर्तमान यात्रा के दौरान की गयी बातचीत से यह बात समझी है।
अमेरिका में भारतीय राजदूत तरनजीत सिंह संधू द्वारा आयोजित रात्रिभोज में उन्होंने कई अमेरिकी अधिकारियों से मुलाकात की, जिनमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन और अन्य अधिकारी भी शामिल थे।
अपनी यात्रा के समापन पर आयोजित संवाददाता सम्मेलन में सीतारमण ने कहा, भारत निश्चित रूप से एक मित्र बनना चाहता है लेकिन अगर अमेरिका भी एक मित्र चाहता है, तो वह कमजोर मित्र नहीं हो सकता है और मित्र को कमजोर किया भी नहीं जाना चाहिये।
उसने कहा, इसलिये हम निर्णय ले रहे हैं। हम सोच समझकर अपना रूख स्पष्ट कर रहे हैं क्योंकि हमें भौगोलिक स्थिति की वास्तविकताओं को देखते हुये यानी जहां हम हैं, वहां मजबूत होने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि चीन के साथ उत्तरी सीमा पर तनाव है, जो कोविड -19 महामारी के बावजूद जारी है, पाकिस्तान के साथ पश्चिमी सीमा पर लगातार तनावपूर्ण स्थिति है। अफगानिस्तान में आतंकवादी रोधी कार्रवाईयों के लिये भेजे जाने वाले सैन्य उपकरण पड़ोसी देश के रास्ते भारत भेज दिये जाते हैं।
सीतारमण ने कहा, आपका पड़ोस वह है, जो आपके आसपास मौजूद है। आप जब रिश्तों के बारे में बात कर रहे हों तो आपको इसे ध्यान में रखना होगा।
अमेरिका भारत पर लगातार यह दबाव बना रहा है कि वह रूस के हमले के खिलाफ अधिक सख्त रुख अपनाये और उसके साथ अपने व्यापारिक संबंधों, विशेष रूप से ऊर्जा आयात को रोके या कम करे। अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के एक वरिष्ठ अधिकारी ने तो भारत को परिणाम भुगतने तक की धमकी दे दी।
भारत ने न तो रूस के हमले की प्रत्यक्ष निंदा की है और न ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उसके खिलाफ लाये गये प्रस्तावों के पक्ष में वोट दिया है। हर बार भारत ने रूस के मसले पर खुद को वोटिंग से दूर रखा है।
भारत ने बातचीत के जरिये इस समस्या का हल निकालने का आह्वान किया है। इसके अलावा भारत ने यूक्रेन को मानवीय सहायता भेजी है।
भारत ने हालांकि बूचा में हुये नरसंहार की निंदा की है और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस द्वारा इसकी स्वतंत्र जांच कराने के आह्वान का समर्थन किया है।
परिणाम भुगतने की धमकी देने के बावजूद अमेरिका का जो बाइडेन प्रशासन रूस को लेकर भारत की स्थिति को समझने की बात करता रहता है।
रूस-यूक्रेन युद्ध का परिणाम शेष देशों की तरह भारत भी भुगत रहा है। युद्ध के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है और भारत भी इसका हिस्सा है। केंद्रीय वित्त मंत्री ने कहा कि यूक्रेन से सूरजमुखी के तेल की आपूर्ति और रूस से उर्वरकों की आपूर्ति की बाधा ऐसी कई चुनौतियों में से एक है।
सीतारमण विश्व व्यापार संगठन द्वारा भारतीय अनाज के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने की संभावना को लेकर सबसे अधिक उत्साहित थीं।
उन्होंने कहा, डब्ल्यूटीओ की निदेशक नाइजीरिया की न्गोजी ओकोंजो-इवेला ने कहा है कि आप इस मुद्दे को उठायें। हम इसे सकारात्मक रूप से देख रहे हैं और उम्मीद है कि इसका हल निकाल लिया जायेगा।
आईएएनएस
Created On :   23 April 2022 2:00 PM IST