चंद्रमा की लालिमा कितनी गहरी होगी, यह वातावरण के प्रदूषण स्तर और आच्छादित मेघों पर निर्भर
चंद्रग्रहण देखने की जिज्ञासा चंद्रमा की लालिमा कितनी गहरी होगी, यह वातावरण के प्रदूषण स्तर और आच्छादित मेघों पर निर्भर
डिजिटल डेस्क, भोपाल। वैसे तो अनेक हिस्सों में प्रदेश में चंद्रग्रहण आठ नवम्बर को दिखाई देगा, लेकिन राजधानी भोपाल में इसका समय शाम 5:36 से 7:26 रहेगा। यह आंखों के लिए बिना किसी विशेष सुरक्षा प्रबंध के देखा जा सकेगा। चंद्रग्रहण की उज्जवलता पूर्ण चंद्र से भी कम रहेगी। यह तथ्य पुणे के एस्ट्रोनॉमर्स ग्रुप के सीनियर मेम्बर और विद्यार्थियों को खगोल विज्ञान की विशेषताएं बताने सिखाने वाले भोपाल निवासी युवा एस्टोनामर रमित मनवानी ने उजागर किया। रमित ने बताया कि चंद्रग्रहण उस खगोलीय स्थिति को कहा जाता है जब चन्द्रमा, पृथ्वी के ठीक पीछे उसकी प्रच्छाया में आ जाता है। ऐसा तभी हो सकता है जब सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा इस क्रम में लगभग एक सीधी रेखा में होते हैं। रमित ने बताया कि चंद्रमा के इस रूप को “ब्लड मून” भी कहा जाता है, क्योंकि चंद्रग्रहण के समय चंद्रमा एकदम काला न दिखाई देकर धुंधला लाल या ताम्बे के रंग का दिखाई देता है। चंद्रमा के रेडिश दिखने का कारण है रेले स्कैटरिंग। चंद्रमा की यह अवस्था अर्थात रेले स्कैटरिंग फिजिक्स के कॉनसेप्ट के कारण है। इस कांसेप्ट के अनुसार ग्रहण के समय पृथ्वी के वायुमंडल से केवल अपवर्तित प्रकाश ही चंद्रमा तक पहुंचता है। उस प्रकाश में लाल तरंग दैर्घ्य (लाल वेवलेंथ) छनकर चंद्रमा पर दिखाई देती है।
रमित ने बताया कि हमें इसलिए सूर्यास्त के समय सूर्य लाल नजर आता है। यही स्थिति चंद्रमा के साथ होती है। चंद्रमा कितना लाल दिखाई देगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वातावरण में कितना प्रदूषण या बादल छाए हुए हैं। इसके अतिरिक्त चन्द्रग्रहण को, सूर्यग्रहण के विपरीत, आँखों के लिए बिना किसी विशेष सुरक्षा के देखा जा सकता है, क्योंकि चन्द्रग्रहण की उज्ज्वलता पूर्ण चन्द्र से भी कम होती है। इस खगोलीय गतिविधि के प्रति सभी आयु वर्ग में जिज्ञासा देखी जा रही है। रमित ने बंगलौर, मुम्बई और पुणे में हजारों विद्यार्थियों को खगोल विज्ञान की रोचक बातों को निरंतर साझा किया है।