बिना ड्राइवर दौड़ेगी मेट्रो, ऑटोमेटिक है सिस्टम
बिना ड्राइवर दौड़ेगी मेट्रो, ऑटोमेटिक है सिस्टम
डिजिटल डेस्क, नागपुर। नागपुर मेट्रो में विश्वव्यापी स्तर पर उपयोग की जाने वाली कम्युनिकेशन बेस्ड ट्रेन कंट्रोलिंग सिस्टम पर मेट्रो का परिचालन किया जाने वाला है। इसके लिए रोज टेस्टिंग की जा रही है। यह सिस्टम देश में चल रही अधिकांश मेट्रो में किया जा रहा है। यह पूरी तरह ऑटोमेटिक है। इसे पायलट लेस या ड्राइवर लेस ट्रेन कंट्राेलिंग सिस्टम भी कह सकते हैं। इसमें गाड़ी चलाने, गति, रोकने, गेट खोलने और बंद करने सहित अन्य सुरक्षा प्रणाली भी स्वचलित ही है।
यह विदेश की सिमेंस कंपनी की प्रणाली है। साथ ही नागपुर मेट्रो में इस प्रणाली के मुख्य कांट्रेक्टर यही है। इसके लिए इंडिया, जर्मनी और स्पेन की सिमेंस कंपनी एक साथ कार्य कर रही है। यह जानकारी मीडिया विजिट ने मेट्रो के प्रबंध निदेशक डाॅ. ब्रिजेश दीक्षित, सुनील माथुर और महेश कुमार ने दी। इस दौरान एस. सिवामथन, सुधाकर उरड़े, अनिल कोकाटे, देवेंद्र रामटेकेकर, महादेव स्वामी, अरुण कुमार और नरेश गुर्बानी मौजूद रहे।
1- एएम- ऑटोमेटिक मोड : एटीओ इसे ऑटोमेटिक ट्रेन ऑपरेशन कहते हैं। इसमें मेट्रो पूरी तरह ऑटोमेटिक मोड मंे चलती है। इसमें किसी भी तरह से ड्राइवर या पायलट की आवश्यकता नहीं होती है। इसमें टाइम और सभी तरह का इनपुट डालने पर यह स्वचलित कार्य करती है। यह स्टेशन से चलने, ट्रेन की गति, स्टॉपेज, स्टॉपेज टाइम, गेट खोलना, बंद करना और आपातकाल में सुरक्षित रूप से रुक जाती है।
2- एसएम-सुपरवाइज्ड मेनुअल मोड : एटीपी इसे ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटेक्शन कहते हैं। इसे सेमी मैन्युअल या सेमी ऑटोमेटिक भी कह सकते हैं। इस मोड में सुपरविजन के लिए ड्राइवर या पायलट की आवश्यकता होती है। इसमें ट्रेन ऑटोमेटिक मोड पर चलती है, लेकिन ड्राइवर उसमें अनुसार भी ऑपरेट कर सकता है। आवश्यकता होने पर ड्राइवर ट्रेन की स्पीड, स्टॉपेज, गेट खोलने और बंद होने के टाइम में भी बदलाव कर सकता है।
3- आरएम-रेस्ट्रिक्टेड मोड : यह पूरी तरह मैन्युअल मोड है। इसमें मेट्रो ट्रेन पूरी तरह ड्राइवर के नियंत्रण में रहती है। यदि ऑटोमेटिक सिस्टम में कुछ खराबी होती है या कुछ भी तकनीकी समस्या के कारण सिस्टम कार्य नहीं करता तो इस मैन्युअल मोड का उपयोग कर सकते हैं। इसमें ड्राइवर या पायलट का होना जरूरी होता है।
तीन हिस्सों के समन्वय से ऑटोमेटिक मोड : यह सिस्टम तीन हिस्सों के एक साथ कार्य करने से चलता है। इसे कम्युनिकेशन बेस्ड सिस्टम इसीलिए कहा जाता है, क्योंकि यह पूरी तरह ऑटोमेटिक कम्युनिकेशन पर कार्य करता है। इसमें तीन मुख्य हिस्से हैं। कंट्रोल सिस्टम जो कि स्टेशन पर या मुख्य नियंत्रण कक्ष में होता है। दूसरा बेस साइट इक्विपमेंट है इसमें ट्रेक पर सेंसर की तरह बेलिस लगे होते हैं। इन बेलिस पर ट्रेन गुजरते ही ट्रेन की लोकेशन का पता चल जाता है। यह ट्रैक पर एक निश्चित दूरी पर होते हैं। इससे एक ही ट्रेक पर एक से ज्यादा गाड़ियां चल सकती है।
यदि एक ही ट्रैक पर एक से ज्यादा गाड़ियां चलती हैं, तो इस बेलिस से कम्युनिकेशन कर सभी की स्पीड और दूरी ऑटोमेटिक नियंत्रित हो जाएगी इसी तरह ट्रैक पर एंटिना भी लगे हुए हैं, जो लगातार कम्युनिकेशन करते हैं। तीसरा ट्रेन सिग्नल है, इसमंे कंट्रोल रूम, बेस साइट इक्विपमेंट और ट्रेन में कम्युनिकेशन होता है। तीनों प्रणाली के समन्वय से ही ट्रेन ऑटोमेटिक मोड पर चलती है। यह सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर मिश्रित प्रणाली है।
मॉनिटरिंग के लिए होगा ड्राइवर : इस प्रणाली की टेस्टिंग लगातार जारी है। अगस्त माह तक टेस्टिंग पूरी करने के बाद इसे पूर्ण रूप से उपयोग किया जाएगा। इसमें ड्राइवर या पायलट की आवश्यकता नहीं है फिर भी एहतियातन ट्रेन में ड्राइवर भी मौजूद होगा, जो कि इस सिस्टम को लगातार मॉनिटर करेगा। जरुरत पड़ने पर वह ऑटोमेटक मोड से मैन्युअल मोड में डाल कर ऑपरेट करेगा। इसमें डाटा कम्युनिकेशन सिस्टम को एयर लिंक कहा गया है।
अतिरिक्त सुरक्षा प्रणाली : इसके साथ ही इसमें ट्रेक के पास एक्सेल काउंटर भी लगाए गए हैं। इन एक्सेल काउंटर का उपयोग रेलवे में भी किया जाता है। यदि सीबीटीसी सिस्टम में कुछ भी खराबी होती है तो यह एक्सेल काउंटर की मदद से मैन्युअली सिग्नलिंग और नियंत्रण किया जाएगा। इनके सामने से मेट्रो गुजरते ही मेट्रो की वास्तविक लोकेशन मिल जाएगी और उसे मैन्युअली ऑपरेट करके किसी भी दुर्घटना से बचा जा सकता है। इसे एक अतिरिक्त सुरक्षा प्रणाली कह सकते हैं।