इंजीनियरिंग से हुआ मोहभंग, 37 हजार कम मिले आवेदन
इंजीनियरिंग से हुआ मोहभंग, 37 हजार कम मिले आवेदन
डिजिटल डेस्क, नागपुर। प्रदेश में 2 से 13 मई के बीच होने वाली महाराष्ट्र स्टेट कॉमन एंट्रेंस टेस्ट के लिए इस वर्ष करीब 4 लाख 13 हजार स्टूडेंट्स ने रजिस्ट्रेशन कराया है। बीते वर्ष राज्य में 4 लाख 50 हजार से ज्यादा स्टूडेंट्स ने पंजीयन कराया था। राज्य में दिनों दिन इंजीनियरिंग के प्रति कम होते रुझान का एक मुख्य कारण इंजीनियरिंग पढ़ाई पूरी करने के बाद स्टूडेंट्स को प्लेसमेंट न मिलना भी है। खराब प्लेसमेंट के चलते विद्यार्थी वर्ग तेजी से इंजीनियरिंग को छाेड़ अन्य पाठ्यक्रमों की ओर रुख कर रहे हैं। ऐसे में आगामी शैक्षणिक सत्र में भी इंजीनियरिंग कॉलेजों में बड़ी संख्या में सीटें खाली रहने की नौबत आ सकती है। इंजीनियरिंग से मोह भंग के पीछे क्षेत्र में सिमटती नौकरियां भी जिम्मेदार हैं। बीते पांच वर्षों के आंकड़ों पर नजर डालें तो नजर आता है कि पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों में से 25 प्रतिशत विद्यार्थियों को ही नौकरियां मिल पाई हैं।
शिक्षा पद्धति भी जिम्मेदार
जानकारों के अनुसार, प्रदेश के इंजीनियरिंग कॉलेजों में पढ़ाया जाने वाला आउटडेटेड सिलेबस इसके काफी हद तक जिम्मेदार है। वहीं, शिक्षक भी नई तकनीक से अवगत नहीं हैं, इसलिए भी विद्यार्थियों को प्लेसमेंट नहीं मिल पाता। इंडस्ट्री में हर साल तकनीक अपडेट हो रही है। तीन-चार वर्षों तक किसी ने सोचा भी नहीं था कि आर्टिफिशिअल इंटेलिजेंस का हर जगह बोल बाला होगा, लेकिन आज ऐसी ही स्थिति देखने को मिल रही है। हमारे विद्यार्थी आज भी आउटडेटेड सिलेबस पढ़ रहे हैं, इसलिए वे अपडेट नहीं हैं। वहीं, उद्योगों और इंडस्ट्रियों की अपेक्षाएं कहीं अधिक है। मौजूदा वक्त में स्थिति यूं है कि विद्यार्थियों को प्लेसमेंट देने के बाद कंपनियों को उन्हें 6 माह की ट्रेनिंग देनी पड़ती है। उनकी इस ट्रेनिंग में कई विद्यार्थी खरे नहीं उतर पाते। ऐसे में कंपनियों का भी इसमें समय व्यर्थ होता है। यदि विद्यार्थी अपडेट होंगे, उन्हें आधुनिक तकनीक का ज्ञान होगा, तो कंपनियां उन्हंे आसानी से नौकरियां देगी। वायकर के अनुसार विश्वविद्यालयों को अपना सिलेबस अपडेट करने पर जोर तो देना ही चाहिए। साथ ही नई तकनीकों का प्रैक्टिकल ज्ञान विद्यार्थियों को मिले इसके प्रबंध करने चाहिए।
यह 4 स्टेप जरूरी स्थिति सुधारने के लिए
बड़ी वजह और परिणाम
इसकी सबसे बड़ी वजह यह रही कि उद्योगों और संस्थानों के बीच मांग और आपूर्ति में फासला बढ़ा है। बेरोजगार और अप्रशिक्षित इंजीनियरिंग स्नातकों की एक पूरी फौज खड़ी हो गई है।
इसके पीछे के कारण
भारत के इंजीनियरिंग कॉलेजों में पाठ्यक्रम कम से कम दो दशक पुराने हैं, इसलिए उद्योग जगत की आज की जरूरत के हिसाब से छात्रों को नवीनतम ज्ञान नहीं मिल पाता है।
अब आवश्यकता है इसकी
उद्योग और शैक्षिक संस्थानों के मध्य एक साझा प्लेटफॉर्म बनाने का प्रयास सरकारी और निजी दोनों स्तर पर बेहद जरूरी, ताकि औद्योगिक विशेषज्ञों के निर्देशन में प्रशिक्षण प्राप्त करने का मौका मिल सके।
कदम विद्यार्थी भी बढ़ाएं
व्यवस्था ऐसी हो कि विद्यार्थी उद्योग से सीधे जुड़ें, तभी वे खुद को उद्योग जगत की जरूरत के मुताबिक ढाल पाएंगे। उनकी पढ़ाई में जो कमी रह जाती है, वह व्यावहारिक ज्ञान से पूरी हो जाएगी।