सिंगल विंडो सिस्टम फेल, एजेंटों के माध्यम से ही आरटीओ दफ्तर में होते हैं काम
कटनी सिंगल विंडो सिस्टम फेल, एजेंटों के माध्यम से ही आरटीओ दफ्तर में होते हैं काम
डिजिटल डेस्क, कटनी। लोकायुक्त के छाप के बाद आरटीओ दफ्तर में उस सिस्टम की कहानी सबके सामने आ गई है। जिस सिस्टम को लेकर अक्सर लिपिक और एजेंट का नाम पूरे जिले भर में सुनाई देता था। दरअसल यहां पर वाहन संबंधी काम-काज सही समय पर हों। जिसके लिए आरटीओ कार्यालय में ही शासन की तरफ सिंगल विंडो सिस्टम खोला गया था, लेकिन यहां पर एजेंट और बिचौलियों के सिस्टम ने इसे ही कबाड़ा कर दिया। यदि कोई सीधे इस माध्यम से यहां पर काम-काज कराने पहुंचता था तो उसे यहां के कर्मचारी तारीख पर तारीख देते थे। जिससे थाका हारा आवेदक एजेंटों के पास पहुंचता था। जिसका फायदा यह होता था कि जिस काम को यहां के कर्मचारी महीनों लटका कर रखते थे। वह काम चंद दिनों में ही हो जाता था। यह बात अलग रही कि इस काम के लिए आवेदक एजेंट को मुंहमांगी रकम चुकाने में मजबूर होता था। मामले में रिश्वत देने वाला जो आवेदक शैलेन्द्र तिवारी रहा। वह भी एजेंट के रुप में लिपिक के पास एक मुश्त में करीब आधा सैकड़ा वाहनों का काम-काज कराने पहुंचा हुआ था। यहां पर एक सप्ताह पहले तक एचआरसी अपलोड नहीं होने से करीब 1800 वाहनों का रजिस्ट्रेशन लटका हुआ था।
बाहर से लेकर अंदर तक सिर्फ इन्हीं का रहता है बोलबाला
आरटीओ में एजेंट के कुप्रथा को बंद करने के लिए समय-समय पर शासन के द्वारा कई निर्णय लिए गए। इसके बावजूद यहां पर जितने भी अफसर आए, उन्होंने इसे बढ़ावा ही दिया। जिसका परिणाम रहा कि बाहर गुमठियोंं की संख्या एक-एक करके बढ़ते गई और दफ्तर के अंदर से लेकर बाहर तक सिर्फ एजेंटों का ही बोलबाला रहा। एजेंट भले ही सीधे रुप से आवेदकों तक न पहुंचते रहे हों, लेकिन अंदर पहुंचने पर आम आदमी इतना परेशान हो जाता था कि उसके पास एजेंट के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं बचता था। यहां तक की चाय-नाश्ते की दुकान के नाम पर भी एजेंट अपनी दुकानदार चला रहे थे।
लेन-देन को लेकर बिगड़ी थी बात
यहां पर कार्य करने वाले अन्य लोगों के बीच शुक्रवार को कार्यवाही के बाद यह चर्चा रही कि संभवत: लेन-देन के मामले को लेकर एजेंट शैलेन्द्र तिवारी और उक्त लिपिक के बीच कोई बात बिगड़ गई। अन्यथा अरसे से उक्त एजेंट यहां पर इसी तरह से कार्य कराता था। यदि उन फाइलों की विभागीय जांच कराई जाती है। जिन्हें पास करने के एवज में लिपिक ने रकम मांगी थी तो इससे एक बड़ी सच्चाई सामने आ सकती है। यदि इस कार्यालय में सब कुछ ठीक रहा तो फिर हितग्राहियों को एजेंट के पास पहुंचना समझ से परे है।
पंद्रह वर्ष से लिपिक की रहा पदास्थापना
उक्त लिपिक की यहां पर करीब पंद्रह वर्ष से पदास्थापना रही। यदि कभी स्थानांतरण भी हुआ तो फिर वह स्थानांतरण कुछ माह बाद रद्द हो गया। विधानसभा चुनाव के पहले भी इनका स्थानांतरण अन्य जिले के लिए हुआ था। वहां पर कुछ माह काम करने के बाद शासन स्तर पर फिर से इनकी पदास्थापना जिले में हो गई थी।