राजभवन, सीएम और पूर्व मुख्यमंत्री एक साथ आए सामने
आरक्षण पर रार राजभवन, सीएम और पूर्व मुख्यमंत्री एक साथ आए सामने
डिजिटल डेस्क, रायपुर। आरक्षण पर ‘रार जारी है। इसे लेकर राजभवन से लेकर सीएम और पूर्व मुख्यमंत्री की बयानबाजी तेज हो गई है। सरकार ज्यादा आक्रामक है और पौने दो महीने से राजभवन में अटके आरक्षण विधेयकों पर सरकार की ओर से हो रहे सवाल राज्यपाल और भाजपा दोनों को चुभ रहे हैं। सबसे पहले मंगलवार को राजभवन की ओर से कहा गया कि ‘कुछ लोगों द्वारा संवैधानिक प्रमुख के लिए अमर्यादित भाषा का प्रयोग उचित नहीं है। इसके बाद बुधवार को पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने मुख्यमंत्री पर आरोप लगाया कि वे एक आदिवासी महिला राज्यपाल पर आरोप मढ़ रहे हैं। रमन के बयान के तत्काल बाद ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का बयान आया। उन्होंने अपने आरोप दोहराते हुए पूछा कि ‘बिल’ पर हस्ताक्षर करने में राज्यपाल को तकलीफ क्यों हो रही है?
यह बोले रमन सिंह
भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने बुधवार को सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डालते हुए लिखा, दशकों की सत्ता के बाद कांग्रेस ने संवैधानिक पदों को अपनी विरासत समझ लिया है। एक समय था जब राहुल गांधी ने देश के सामने अपनी सरकार का अध्यादेश फाडक़र प्रधानमंत्री पद का अपमान किया था। एक आज का छत्तीसगढ़ है जहां दाऊ भूपेश बघेल आदिवासी महिला राज्यपाल पर आए दिन आरोप मढ़ रहे हैं।
बघेल ने यह जवाब दिया
जगदलपुर रवाना होने से पहले रायपुर हेलीपैड पर प्रेस ने इस बयान को लेकर सवाल किया तो मुख्यमंत्री बघेल ने कहा, रमन सिंह को हर बात तोड़-मरोडक़र बोलने की आदत है। वह कुछ और बिल था (जिसकी कॉपी राहुल गांधी ने फाड़ी थी)। यह कुछ और बिल है। यह विधानसभा से पारित बिल है। यह आरक्षण है, यह देश में लागू है। कर्नाटक में आप बढ़े हुए आरक्षण बिल पर वहां हस्ताक्षर कर सकते हैं, लेकिन यहां (छग में) हस्ताक्षर नहीं करेंगे। यह दोहरा चरित्र कैसे चलेगा।
राजभवन ने कहा, सरकार ने 10 सवालों का संतोषजनक जवाब नहीं दिया
मंगलवार को राजभवन की ओर से कहा गया, राज्यपाल ने 22 जनवरी को प्रेस के आरक्षण विधेयक संबंधी एक सवाल पर कहा था कि मार्च तक इंतजार करिये। इसका आशय यह था कि 58 प्रतिशत आरक्षण खत्म करने के हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। न्यायालय ने चार मार्च तक सभी पक्षकारों से जवाब मांगा है और 22-23 मार्च तक सुनवाई कर फैसला देने की बात कही है। राज्यपाल ने इसी आशय से यह बात कही थी, जिसे लंबित आरक्षण विधेयक से जोड़ दिया गया। यह भी कहा गया, राज्यपाल ने क्वांटिफायबल डाटा आयोग की रिपोर्ट मांगी थी जो नहीं मिली। वहीं 10 सवालों का संतोषजनक जवाब भी नहीं मिला है।