जिले में उर्वरक पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध डीएपी से एनपीके बेहतर, बचत के साथ उत्पादन भी बढ़ेगा
जबलपुर जिले में उर्वरक पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध डीएपी से एनपीके बेहतर, बचत के साथ उत्पादन भी बढ़ेगा
डिजिटल डेस्क, जबलपुर। जबलपुर जिले में उर्वरक पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है और किसानों का उनकी जोत सीमा के अनुरूप उर्वरक उपलब्ध भी कराया जा रहा है। उपसंचालक किसान कल्याण एवं कृषि विकास डॉ. एसके निगम ने यह जानकारी देते हुए किसानों को सलाह दी है कि डीएपी के स्थान पर एनपीके का इस्तेमाल करें। यह डीएपी से बेहतर है और इसके उपयोग से जहां कृषि की लागत कम होगी वहीं अच्छी गुणवत्ता के साथ-साथ उत्पादन भी बढ़ेगा। उपसंचालक किसान कल्याण ने बताया कि जबलपुर जिले में 19 नवम्बर की स्थिति में 8 हजार 906 मैट्रिक टन यूरिया, 2 हजार 338 मैट्रिक टन डीएपी, 2 हजार 273 मैट्रिक टन एनपीकेएस, 1 हजार 030 मैट्रिक टन म्यूरेट ऑफ पोटाश तथा 5 हजार 602 मैट्रिक टन सुपर फास्फेट उपलब्ध है। उन्होंने उर्वरक को लेकर किसानों को किसी तरह की चिंता न करने का आग्रह करते हुए कहा कि उन्हें उनकी मांग के अनुरूप उर्वरक उपलब्ध कराया जायेगा। डॉ. निगम के अनुसार किसान डीएपी और यूरिया का प्राय: बहुतायत से इस्तेमाल करते हैं। खासतौर पर वर्षों से डीएपी का इस्तेमाल कर रहे किसान आदत में आ जाने के कारण इसके स्थान पर दूसरे और इससे बेहतर विकल्प का इस्तेमाल नहीं करना चाह रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस वजह से मांग बढ़ने के कारण कभी-कभी डीएपी की स्थानीय स्तर पर अनुपलब्धता से किसानों को परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है। उपसंचालक किसान कल्याण ने एनपीके को डीएपी से बेहतर उर्वरक बताते हुए कहा है कि किसान यदि डीएपी के स्थान पर सिंगल सुपर फास्फेट एनपीके (12:32:16), एनपीके (16:26:26) या एनपीके (14:35:14) का इस्तेमाल करते हैं तो इससे उन्हें आर्थिक लाभ होगा साथ ही अच्छी गुणवत्ता के साथ फसल के उत्पादन में भी वृद्धि होगी। उपसंचालक किसान कल्याण ने डीएपी की जगह एनपीकेएस के उपयोग में होने वाले फायदों की जानकारी देते हुए बताया कि डीएपी से केवल नत्रजन एवं स्फुर की आपूर्ति होती है जबकि कम्पोजिट उर्वरक एनपीकेएस से नत्रजन एवं स्फुर के साथ-साथ पोटाश एवं सल्फर की भी पूर्ति होती है, जो तुलनात्मक रूप से फसलों के लिए ज्यादा लाभकारी होता है। उन्होंने बताया कि डीएपी के स्थान पर एनपीकेएस के इस्तेमाल से होने वाले फायदों की जानकारी कृषकों तक लगातार पहुंचाई जा रही है और उन्हें इसका उपयोग करने की सलाह भी दी जा रही है। डॉ. निगम के मुताबिक कृषकों को निर्धारित दर पर एवं मानक स्तर का उर्वरक प्राप्त हो सके इसके लिए विभिन्न दल बनाकर सतत निगरानी भी रखी जा रही है।