खेल के माध्यम से आदिवासी बच्चों में शिक्षा की अलख जगा रही इशिता
गड़चिरोली खेल के माध्यम से आदिवासी बच्चों में शिक्षा की अलख जगा रही इशिता
डिजिटल डेस्क, अहेरी(गड़चिरोली)। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद अधिकांश युवा अपने करियर की ओर ध्यान देते हैं। लेकिन इनमें ऐसे भी कुछ युवा हैं जो अपने करियर की ओर ध्यान देते हुए वंचित घटक के विद्यार्थियों की मदद करने में अपनी खुशी मानते हंै। ऐसी ही एक कहानी दक्षिण गड़चिरोली की है। आदिवासी बहुल, अतिदुर्गम और नक्सलग्रस्त क्षेत्र के नन्हे बच्चों में शिक्षा का अलख जगाने और शिक्षा से वंचित बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए पिछले कुछ दिनों से इशिता काले नामक युवती प्रयास कर रही है। साॅफ्टवेयर इंजीनियर बनने के बाद बड़े वेतन में इशिता अपना करियर उज्जवल बना सकती थी, लेकिन उसने ऐसा न करते हुए कुछ समय वंचित बच्चों को देने का निर्णय लिया है। वर्तमान में इशिता जिले के दक्षिणी क्षेत्र के गांवों में पहुंचकर आदिवासी बच्चों को खेल के माध्यम से शिक्षा के गुर सिखा रही है।
बता दें कि, राज्य के शिक्षा मंत्रालय ने सर्व शिक्षा अभियान आरंभ कर सभी बच्चों को शिक्षा का अधिकार प्रदान किया है। इसके लिए शिक्षा विभाग ने "जहां गांव-वहां शाला' तर्ज पर प्राथमिक शालाएं आरंभ की है। विभाग के इन प्रयासों के बाद भी जिले के अतिदुर्गम गांवों में अनेक बच्चे शिक्षा की मुख्य धारा से जुड़ नहीं पाये है। ऐसे बच्चों में ही शिक्षा की अलख जगाने का कार्य इशिता कर रहीं है। किसी भी प्रकार के लोभ की इच्छा न करते हुए वह पिछले 10 वर्ष से यह कार्य कर रहीं है। मूलत: चंद्रपुर जिले के राजुरा तहसील की निवासी इशिता के पिता कोल माइन्स में कर्मचारी थे। उसने अपनी शिक्षा चंद्रपुर जिले में ही पूर्ण की है। अमरावती विश्व विद्यालय से इशिता ने अभियांत्रिकी की डीग्री हासिल की है। महाविद्यालय में शिक्षा ग्रहण करते समय राष्ट्रीय सेवा योजना के माध्यम से उसमें समाज कार्य की रुचि निर्माण हुई।
सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनने के लिए इशिता को एक बड़ी कंपनी में नौकरी भी मिली। इस नौकरी से उसने अपने भविष्य को पुन: निखार सकती थी। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। अपना कुछ समय नौकरी को देने के बाद उसने अधिकांश समय आदिवासी क्षेत्र के बच्चों को देने का निर्णय लिया। सर्वप्रथम इशिता ने राजुरा तहसील के इंदिरानगर के नन्हे बच्चों के लिए कार्य किया। जिसके बाद वह गड़चिरोली जिले में दाखिल हुई। वर्तमान में वह अहेरी समेत एटापल्ली, भामरागढ़ जैसी आदिवासी बहुल और नक्सलग्रस्त तहसील के गांवों में पहुंचकर नन्हे बच्चों को शिक्षा के गुर सिखा रहीं है। जिले के अतिदुर्गम क्षेत्र में मूलभूत सुविधाओं का अभाव होने के बाद भी इशिता का कार्य लगातार 10 वर्षों से बदस्तूर जारी है। कई दफा सुदूर गांवों में पहुंचने के लिए समय लगता हैं, ऐसे में कई बार इशिताऔर उसके सहयोगी संबंधित गांव में ही निवास करते हंै। किसी भी व्यक्तियों से पैसे की मांग न करते हुए इशिता अपने वेतन से 10 फीसदी और पिता की पेंशन से 10 फीसदी रकम से यह कार्य कर रही है। आदिवासी क्षेत्र के बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए इशिता बच्चों को विभिन्न प्रकार के खिलौने और शिक्षापयोगी वस्तुओं का वितरण भी करती है। जैसे ही इशिता और उसके सहयोगी किसी गांव में पहुंचते हैं, ग्रामीणों समेत गांव के नन्हे बच्चों के चेहरों में खुशियां झलकने लगती हंै।