ऑर्डनेंस फैक्टरी का निगमीकरण, यंत्र इंडिया लिमिटेड से होगा काम
आयुध निर्माणी का 56 साल का इतिहास बदला ऑर्डनेंस फैक्टरी का निगमीकरण, यंत्र इंडिया लिमिटेड से होगा काम
डिजिटल डेस्क, नागपुर। नागपुर के अंबाझरी स्थित आयुध निर्माणी का 56 साल का इतिहास बदल गया है। केंद्र सरकार ने निगमीकरण कर इसे ऑर्डनेंस फैक्टरी के स्थान पर ‘यंत्र इंडिया लिमिटेड’ कर दिया है। अब यहां के कर्मचारी नई कंपनी के लिए काम करने लगे हैं। कर्मचारी निगमीकरण को निजीकरण का पहला कदम बता रहे हैं, जबकि सरकार ने दावा किया है कि इस कदम से आयुध निर्माणी आत्मनिर्भर हो जाएगी।
भविष्य की सताने लगी चिंता
नागपुर में 3615 स्थायी व 1500 से अधिक अस्थायी कर्मचारी हैं। निगमीकरण से वे निराश हैं। वर्तमान बदलाव से कर्मचारियों को भविष्य की चिंता सताने लगी है। मजदूर संगठनों ने इसका विरोध किया है। उनका आरोप है कि निजीकरण की शुरुआत निगमीकरण से की गई है। ऑर्डनेंस फैक्टरी में एम्यूनेशन हार्डवेयर तैयार किए जाते हैं। यह फैक्टरी 24 घंटे उत्पादन करती है। यहां इलेक्ट्रॉनिक टूल्स, ईआरएफबी शेल्स, 120 एमएम शेल्स, पिनाका रॉकेट, केएल ब्रिज, एएन 32 प्लेटफॉर्म आदि तैयार होते हैं। थल सेना को इसकी आपूर्ति की जाती है।
1964 में हुई थी स्थापना
देशभर की कुल 41 आर्डनेंस फैक्टरी का 220 साल का इतिहास है। नागपुर स्थित आर्डनेंस फैक्टरी की स्थापना 1964 में हुई थी। केंद्र सरकार ने इस संगठन को समाप्त कर 7 निगम बनाए हैं। इसमें से एक निगम ‘यंत्र इंडिया लिमिटेड’ है। नागपुर की ऑर्डनेंस फैक्टरी का नया नाम ‘यंत्र इंडिया लिमिटेड’ हो गया है। कर्मचारियों को शुरुअात के 2 साल के लिए डेप्यूटेशन पर रखा जाएगा। उनकी सेवा शर्तें बदली नहीं जाएंगी। दो साल बाद कर्मचारी को सरकारी सेवा में बने रहने या नए निगम में हमेशा के लिए जाने का विकल्प दिया गया है। यदि वे सरकारी सेवा में जाने का निर्णय लेते हैं, तो सरप्लस कर्मचारी की श्रेणी में आ जाएंगे। उन्हें आवश्यकतानुसार सेवा सौंपी जाएगी। निगम की तरफ से दिया जाने वाला पैकेज सरकारी वेतनमान से कम नहीं होगा। उन्हें पेंशन व अन्य लाभ जस के तस मिलता रहेगा।
2014 से चर्चा मेें मुद्दा
सूत्रों के अनुसार निगमीकरण का मुद्दा 2014 से चर्चा में आया। तबसे लगातार इसका विरोध हो रहा है। इस पर रोक लगाने के लिए इसी साल एक अध्यादेश लाया गया और हड़ताल करने पर रोक लगा दी गई। जो हड़ताल करेगा, उसे जेल भेजने का प्रावधान किया गया। निगमीकरण से पैदा होने वाली चुनौतियां भी कम नहीं हैं। कर्मचारियों के अनुसार जिन कंपनियों का निगमीकरण हुआ, उनका अस्तित्व खत्म हो चुका है या वे मरणासन्न स्थिति में हैं।
किसी को भी बेच सकते हैं
अब तक ऑर्डनेंस फैक्टरी में बनने वाले सामान सेना को दिए जाते थे। निगमीकरण होने से यह सामग्री किसी को भी बेची जा सकती है। उन सामग्रियों का उपयोग कैसे होगा, इसके परिणाम की परवाह नहीं की जाएगी। सरकारी नियंत्रण कम होने से रोजगार के अवसर भी कम होंगे। दो साल तक सरकार लोन या अन्य माध्यम से आर्थिक मदद करेगी। इसके बाद खुद कमाना व खर्च निकालना होगा। किसी भी ऑर्डर पर एडवांस राशि लेकर काम करना होगा, तभी फैक्टरी चल पाएगी। कर्मचारी इसे घातक निर्णय बता रहे हैं।
फैक्टरी रहेंगी या नहीं, गारंटी नहीं
सरकार ने निगमीकरण कर बड़ी चूक की है। भविष्य में इसका निजीकरण होगा। ऑर्डनेंस फैक्टरी बड़ी कंपनियों के हाथ चली जाएंगी। यहां उत्पादित सामग्री सेना के अलावा दूसरे ग्राहकों को बेचने से देश की सुरक्षा को खतरा पैदा होगा। कर्मचारियों को दो साल के बाद रोजगार मिलेगा या नहीं, और फैक्टरी बचेंगी या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं है। -आशीष पाचघरे, लीडर साप्ताहिक जेसीएम फोर (रेड यूनियन)
निगमीकरण से सुरक्षा को खतरा
देशभर की 41 फैक्टरियों को 7 भागों में बांटकर निगमीकरण किया गया है। देशभर में 74 हजार कर्मचारी हैं। अकेले नागपुर में ही 5115 कर्मचारी हैं। दो साल के बाद उनके साथ क्या होगा, नियमों में क्या बदलाव होंगे, यह चिंता का विषय है। सरकार ने निगमीकरण कर देश की सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है। अब तक उत्पादित सामग्री सेना को दी जाती थी, अब इसे खुले बाजार में बेचा जा सकेगा।
-सुभाष पडोले, अध्यक्ष इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक)