प्रदर्शन करने का अधिकार, लेकिन ध्वनि प्रदूषण के नियमों की न हो अनदेखी - HC

प्रदर्शन करने का अधिकार, लेकिन ध्वनि प्रदूषण के नियमों की न हो अनदेखी - HC

Bhaskar Hindi
Update: 2019-04-19 10:34 GMT
प्रदर्शन करने का अधिकार, लेकिन ध्वनि प्रदूषण के नियमों की न हो अनदेखी - HC

डिजिटल डेस्क, मुंबई।  बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि नागरिकों को सार्वजनिक जगहों पर शांतिपूर्ण ढंग से रैली निकालने व विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार है, लेकिन इस दौरान ध्वनि प्रदूषण से जुड़े नियमों का पालन होना जरुरी है। पुलिस गैर साइलेंस जोन में नागरिकों को जरूरी शर्तों के साथ  प्रदर्शन की अनुमति दे सकती है। प्रदर्शनकारियों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए की उनकी रैली व सभा  से आवागमन व ट्रैफिक बाधित न हो। पेशे से वकील आभा सिंह की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने उपरोक्त बातें कही। याचिका में मुख्य रुप से पुलिस की ओर से जमावबंदी के संबंध में जारी किए जानेवाले आदेश पर सवाल उठाए गए थे। याचिका में दावा किया गया था कि पुलिस अधिकारी मनमाने तरीके से राज्य सरकार की अनुमति के बिना जमाव बंदी के आदेश को जारी करते हैं। जिससे नागरिकों को संविधान के तहत मिले अभिव्यक्ति के अधिकार का उल्लंघन होता है। याचिका में मुख्य रुप से महाराष्ट्र पुलिस एक्ट की धारा 37 को चुनौती दी गई थी। याचिका में दावा किया गया था कि अंग्रेजो के शासनकाल में भी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोगों को लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की इजाजत दी जाती थी। सुनवाई के दौरान अधिवक्ता आभा सिंह ने खंडपीठ के सामने कहा कि मैंने पिछले साल एक बच्ची के दुष्कर्म के मामले को लेकर बांद्रा के कार्टररोड इलाके में सभा के लिए पुलिस से लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की इजाजत मांगी थी लेकिन पुलिस ने अनुमति देने से इंकार कर दिया। यह नियमों के खिलाफ था। इन दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि नागरिकों को सार्वजिक सभा और प्रदर्शन का अधिकार है। सिर्फ वे शांत क्षेत्र में ऐसा नहीं कर सकते हैं। पुलिस युक्तिसंगत शर्तों के तहत नागरिकों को सभा के लिए लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की इजाजत दे सकती है। यह कहते हुए खंडपीठ ने याचिका को समाप्त कर दिया। 

बगैर सही फैसले के लिए दूसरे कार्य के लिए इस्तेमाल नहीं हो सकती है खास निधिः हाईकोर्ट

बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि एक खास उद्देश्य के तहत आवंटित निधि को तब तक दूसरे उद्देश्य के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, जब तक की इसके लिए सही ढंग से निर्णय न लिया जाए। हाईकोर्ट ने यह बात अनुसूचित जाति उपाय योजना के तहत आवंटित निधि को दूसरे काम के लिए इस्तेमाल किए जाने की आशंका को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कही। सामाजिक कार्यकर्ता रोहिदास शिंदे ने इस विषय पर जनहित याचिका दायर की है। याचिका में दावा किया गया था कि अनुसूचित जाति उपाय योजना के तहत सरकार ने सीसीटीवी के लिए 75 लाख रुपए आवंटित किए हैं। यह सीसीटीवी ऐसे इलाकों में लगाए जाने हैं जहां गरीब तबके के लोग रहते हैं। लेकिन अब सरकार सीसीटीवी लगाने के लिए आवंटित निधि का इस्तेमाल किसी अन्य उद्देश्य के लिए करना चाहती है। यह नियमों के विपरीत है। मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नांदराजोग व न्यायमूर्ति एनएम जामदार की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने कहा कि याचिका में अनुसूचित जाति उपाय योजना के तहत आवंटित 75 लाख रुपए की निधि को दूसरे कार्य के इस्तेमाल करने की आशंका व्यक्त की गई है। लेकिन यह निधि किस दूसरे उद्देश्य अथवा कार्य के लिए इस्तेमाल की जानी है इसका जिक्र नहीं किया गया है अौर न ही इस संबंध में कोई दस्तावेज जोड़ा गया है। इसलिए हम याचिका पर सुनवाई नहीं कर सकते है। खंडपीठ ने कहा कि यदि किसी उद्देश्य के लिए कोई निधि आवंटित की गई है तो उसका इस्तेमाल उसी उद्देश्य के लिए होना चाहिए। खास उद्देश्य के तहत आवंटित निधि को तभी दूसरे उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है जब इसके लिए उचित ढंग से निर्णय लिया जाए। यह कहते हुए खंडपीठ ने याचिका को समाप्त कर दिया। 

मेलघाट बफर जोन में रेल मार्ग बनने पर वन विभाग को भी आपत्ति

उधर बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में मेलघाट के जंगलों (बफर जोन) से रेलवे लाइन डालने का विरोध करती प्रमोद जुनघरे द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। इसमें मुद्दा उठाया गया है  कि, रेलवे लाइन के कारण वन्यजीवों को नुकसान होगा, बड़ी संख्या में पेड़ों की कटाई करनी पड़ेगी। इस मामले में वन विभाग ने अपना जवाब प्रस्तुत किया। इसमें कोर्ट को बताया गया कि, वन विभाग भी बफर जोन से रेल लाइन नहीं चाहता। वे याचिकाकर्ता के पक्ष से सहमत है। वन विभाग ने अपने हालिया सर्वे और रेलवे के खुद के वर्ष 2014 के सर्वे का हवाला दिया। जिसमें रेल लाइन को बफर जोन को छोड़ कर दूसरे लंबे रूट से ले जाने का पक्ष लिया गया था। हाईकोर्ट ने अब दो सप्ताह में याचिकाकर्ता से जवाब मांगा है। मामले में याचिकाकर्ता की ओर से एड. अश्विन इंगोले ने पक्ष रखा। 

ये है मामला
याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में दायर अपनी जनहित याचिका में दावा किया है कि, रेलवे ने मध्यप्रदेश के खंडवा से महाराष्ट्र के आकोट के बीच मीटरगेज रेलवे 1 जनवरी 2018 से बंद कर रखी है। इसका ब्रॉडगेज में रूपांतर किया जा रहा है। रेलवे ने इस प्रस्ताव को मान्यता दी है, लेकिन इस कार्य के चलते 51 किमी दूरी तक रेलवे रूट मेलघाट के व्याघ्र प्रकल्प से होकर गुजरेगा। बफर जोन से गुजरने वाले इस रूट से बाघ व अन्य वन्यजीवों को खासा नुकसान होगा। याचिकाकर्ता के अनुसार मेलघाट का व्याघ्र प्रकल्प मध्यप्रदेश के व्याघ्र प्रकल्प को जोड़ता है। प्राणी यहीं से आवागामन करते हैं। इस क्षेत्र में रेलवे लाइन के निर्माण से यह क्षेत्र तहस-नहस हो जाएगा। बड़ी संख्या मंे पेड़ काटने पड़ेंगे। कई वन्यजीवों से उनका निवासस्थान छिन जाएगा। और आए दिन रेलवे से प्राणियों की दुघर्टना होगी। याचिकाकर्ता का आरोप है कि, दक्षिण मध्य रेलवे ने इस क्षेत्र की जगह दूसरी ओर से यह लाइन ले जाने की तैयारी की थी। 21 जून 2018 को पर्यावरण मंत्रालय ने इसे मंजूरी भी दी थी, लेकिन फिर रेलवे लाइन को जंगल के बीच से ले जाने का निर्णय लिया गया। जिसे याचिककर्ता ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

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