पेंगुलिन को बचाने के लिए पहला इकोलॉजिकल कंजर्वेशन, शिकारियों और रेस्क्यू कर बचाए गए पेंगोलिन को कर रहे सेफ
सिवनी पेंगुलिन को बचाने के लिए पहला इकोलॉजिकल कंजर्वेशन, शिकारियों और रेस्क्यू कर बचाए गए पेंगोलिन को कर रहे सेफ
डिजिटल डेस्क, सिवनी। वन्यजीवों में सबसे दुर्लभ और संकटापन्न प्रजाति पेंगुलिन को बचाने के लिए भारत का पहला पेंगुलिन इकोलॉजिकल कंजर्वेशन प्रोजेक्ट वन विभाग और वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन ट्रस्ट(डब्लूसीटी) द्वारा चलाया जा रहा है। संस्था द्वारा अब तक आठ पेंगुलिन रेडियो टेग लगाकर छोड़े गए हैं। अब ये सुरक्षित हैं और ब्रीडिंग( प्रजनन) कर रहे हैं। वन विभाग के अनुसार आमतौर पर रेस्क्यू और शिकारियों से बचाए गए वन्यजीव जंगल में छोडऩे के बाद अधिक समय तक जीवित नहीं रह पाते। ऐसे में पेंगुलिन को बचाने के लिए इस प्रोजेक्ट के तहत काम हो रहा है। ज्ञात हो कि पेंगुलिन के शिकार कर उनके अंगों को चोरी छिपे बेच दिया जाता है। कई शिकारियों को पकड़ा भी गया है जिसमें उनके तार अंतर्राष्ट्रीय स्तर से भी जुड़े मिले थे।
बढ़ गया सक्सेस रेट
डब्लूसीटी की रिसर्च में यह बात सामने आई है कि शिकारियों छुड़ाए गए या रेस्क्यू से पकड़े गए पेंगुलिन को बेहतर स्थान और उनकी मॉनीटरिंग करने से वे बेहतर वृद्धि कर जीवन जी रहे हैं। इसमें इस काम का सक्सेस रेट(सफलता दर) १०० प्रतिशत मिला है।जबकि अफ्रीका में किसी अन्य संस्था द्वारा किए किए गए इस काम का सक्सेस रेट ४० प्रतिशत था। पेंगुलिन को बेहतर आवास मिलने पर उनका जीवनकाल आम दिनों की तरह ही रहता है।
स्निफर डॉग और रेडियो टेग की मदद
बाहर से लाए गए पेंगुलिन को जंगल में छोडऩे से पहले उनको रेडियो टेग लगाया जाता है। इसके बाद उन्हें उस स्थानों पर छोड़ा जाता है जहां उनको छिपने और सुरक्षित तरीके से भोजन पानी मिल सके। रेडियो टेग से उनकी लोकेशन पर पूरी नजर रखी जाती है। यहां तक की उनको तलाशने के लिए स्निफर डॉग भी रखे गए हैं। ये डॉग इतने प्रशिक्षित हैं वे पेंगुलिन के ठिकाने तक पहुंच जाते हैं। खास बात यह है कि जहां से भी पेंगुलिन को लाया जाता है उसके टांसपोर्टिंग भी इतनी सुरक्षित रहती है कि उसे स्पेशल बॉक्स में लाया जाता है।
दे चुके हैं बच्चे जन्म
शिकारियों से बचाए गए एक पेंगुलिन ने तो अपना परिवार भी बसा लिया। मादा पेंगुलिन ने बच्चे को जन्म भी दिया है यह तस्वीर भी संस्था के कैमरे में कैद हुई है। अभी भी पेंगुलिन के रहवास और और उसके जीवन जीने को लेकर पूरी जानकारी सामने नहीं आई है। जिन पेंगुलिन को जंगल में छोड़ा जाता है यह भी देखा जा रहा है कि किहीं अन्य पेंगुलिन तो वहां पर नहीं जो उसे मार दे या भगा दे। जानकारी के अनुसार आठ प्रकार पेंगुलिन पाए जाते हैं। इसमें से इंडियन पेंगुलिन का आकार बड़ा होता है।
इनका कहना है
सिवनी के पेंच टाइगर रिजर्व डिप्टी डायरेक्टर रजनीश कुमार सिंह ने कहा कि शिकारियों और रेस्क्यू से बचाए गए पेंगुलिन को सुरक्षित रखने के लिए डब्लूसीटी संस्था द्वारा इकोलॉजिकल कंजर्वेशन प्रोजेक्ट पर कम हो रहा है। पेंगुलिन का सक्सेस रेट भी बढ़ा है। अभी तक सभी पेंगुलिन सुरिक्षत हैं और ग्रोथ कर रहे हैं।