बड़ी संख्या में हर साल दम तोड़ देते हैं मासूम, बीमारी की दशा में जिला अस्पताल होते हैं रैफर
सिवनी बड़ी संख्या में हर साल दम तोड़ देते हैं मासूम, बीमारी की दशा में जिला अस्पताल होते हैं रैफर
डिजिटल डेस्क, सिवनी। आज शिशु सुरक्षा दिवस है। हर साल 7 नवंबर को शिशुओं की सुरक्षा, संवर्धन और विकास के बारे में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से शिशु संरक्षण दिवस मनाया जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि अगर शिशुओं की रक्षा की जाती है तो वे इस दुनिया का भविष्य बनेंगे क्योंकि वे कल के नागरिक हैं लेकिन जिले की बात करें तो यहां शिशु रोग विशेषज्ञों के अधिकतर पद खाली हैं। खासकर प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में। जबकि औसतन हर माह एक तहसील में तीन सैकड़ा या अधिक बच्चों का जन्म होता है। ऐसे में किसी भी अनहोनी की दशा में इन बच्चों को जिला अस्पताल रैफर किया जाता है।
हर जगह खाली है पद
जिले की बात करें तो जिला अस्पताल में सात-आठ शिशु रोग देखने वाले डॉक्टर कार्यरत हैं लेकिन तहसील मुख्यालयों में स्थिति काफी चिंताजनक है। केवलारी मुख्यालय में स्थित सिविल अस्पताल में एक शिशु रोग विशेष5 का पद है जो अर्से से खाली चल रहा है। इसी प्रकार बरघाट के सिविल अस्पताल में स्वीकृत शिशु रोग विशेषज्ञ प्रथम श्रेणी का पद खाली है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र गोपालगंज में शिशु रोग विशेषज्ञ का कोई पद ही स्वीकृत नहीं है। इसी प्रकार सामुदायिक स्वास्थ्य केंद कुरई में भी कोई पद स्वीकृत नहीं है। घंसौर में शिशु रोग विशेषज्ञ का एक पद स्वीकृत जरूर है लेकिन फिलहाल खाली है। धनौरा, छपारा में भी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में कोई पद स्वीकृत नहीं है। लखनादौन सिविल अस्पताल में शिशु रोग विशेषज्ञ के दो पद स्वीकृत हैं लेकिन दोनों ही खाली हैं।
छह सौ बच्चों की हो जाती है मौत
आंकड़ों की बात करें तो जिले में हर साल बड़ी संख्या में शिशुओं की मौत हो जाती है। २०१९-२० में ७०६ शिशुओं की मौत हुई थी। वहीं इसके अगले साल ६७५ बच्चों की मौत हुई थी। वर्ष २०२१-२२ में ५७९ बच्चों की मौत हुई थी। बच्चों की मौत का कारण एनीमिया या रक्त की कमी, डायरिया, मलेरिया, निमोनिया के अलावा संस्थागत प्रसव न हो पाना बताया गया था।
मुख्यालय से हैं काफी दूरी
आंकड़ों को देखें तो हर माह तहसील मुख्यालयों में तीन सौ से अधिक शिशुओं का प्रसव होता है। इन मुख्यालयों में शिशु रोग विशेषज्ञ न होने पर किसी भी बीमारी, परेशानी की दशा में जिला अस्पताल रैफर किया जाता है। जिले के अंतिम ग्राम की बात करें तो इनकी दूरी सवा सौ किलोमीटर तक है। ऐसे में बच्चे को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और फिर वहां से जिला अस्पताल आने में कितना वक्त लगता है इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। जिससे बच्चे की हालत और बिगड़ जाती है।