लगातार बढ़ रहा कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन , मुश्किल है पौधों का जीवित रह पाना
लगातार बढ़ रहा कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन , मुश्किल है पौधों का जीवित रह पाना
डिजिटल डेस्क, नागपुर। भारत में बढ़ती जनसंख्या की तुलना में सीमित संसाधन भविष्य में फूड सिक्योरिटी के क्षेत्र में नई चुनौतियां पेश कर सकते हैं। देश में दुनिया की 70 फीसदी जनसंख्या निवास करती है, जबकि संसाधन का 4 फीसदी ही है। जनसंख्या के बढ़ते दबाव के कारण संसाधन निर्माण के लिए पर्याप्त समय उपलब्ध नहीं हो रहा है। ऐसे में सस्टेनेबल इनवॉयरमेंट व फूड सिक्योरिटी के लिए साइंस व टेक्नोलॉजी की भूमिका अहम है। ये विचार प्रोफेसर स्वप्न कुमार दत्ता ने नीरी की ओर राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किए। कोलकाता विश्वविद्यालय में डीबीटी-डिस्टिंग्विस बायोटेक्नोलॉजी के रिसर्च प्राेफेसर दत्ता खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए धान के जेनेटिक मोडिफिकेशन में किए गए कार्यों के लिए विश्व स्तर पर पहचान रखते हैं। कार्यक्रम में नीरी के वैज्ञानिक डॉ. हेमंत पुराेहित, डॉ. जेएस पांडेय भी उपस्थित थे।
कार्बन डाईऑक्साइड का बढ़ता उत्सर्जन खतरनाक
प्राे. दत्ता ने बताया कि दुनिया भर में कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन लगातार बढ़ रहा है। फिलहाल इसकी दर 380 पीपीएम(पार्ट्स पर मिलियन या 10 लाख है। यह कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन को दैनिक औसत मात्रा के आधार पर मापने की इकाई है।) वर्ष 2050 तक इसके 500 से ऊपर पहुंचने की आशंका है। इस स्तर पर पौधों का अस्तित्व संभव नहीं होगा।
विपरीत परिस्थितियों को सहन करने की क्षमता बढ़ाने पर ध्यान
प्रो. दत्ता ने बताया कि जलवायु परिवर्तन और बढ़ती लवणता के बीच आज पाैधों में ऐसे गुण विकसित किए जाने की जरूरत है, जिनसे वे इन परिस्थितियों में न सिर्फ जी सकें, बल्कि अधिक फसल प्रदान करने में भी सक्षम हों। मक्के की कम पानी में रहने के गुण को जेनेटिक्स की मदद से धान में लाकर उसे कम पानी में उगाया जा सकता है। इसके साथ ही उच्च लवण वाले इलाकों में पाए जाने वाले पौधों के गुण काे भी जेनेटिक्स की मदद से सामान्य इलाकों में पौधों में विपरीत परिस्थितियों में जीवित रहने की क्षमता बढ़ाई जा सकती है।
जैविक कृषि बेहतर विकल्प
प्रो. दत्ता के अनुसार, कीटनाशकों और रासायनिक खादों का बढ़ता उपयोग भी नई तरह की चुनौतियां पेश कर रहा है। मिट्टी की उर्वरता में लगातार कमी आ रही है। इसके कारण उपयोग में लाए जा रहे उर्वरकों के रासायन का इस्तेमाल पौधे नहीं कर पाते हैं। यह समस्या कुछ समय बाद इतनी अधिक हो सकती है कि उर्वरकों के उपयोग का कोई फायदा ही नहीं होगा। रासायनिक खादों में मौजूद रासायन पर्यावरण में रह कर उसे और अधिक नुकसान पहुंचाएगा। ऐसे में जैविक कृषि बेहतर विकल्प साबित हो सकता है लेकिन भारत जैसे देश में जैविक कृषि में होने वाला कम फसल अलग चुनौती पेश कर सकता है।