यूपी में बच्चों को मिलेगा दिल की जन्मजात बीमारियों का इलाज
उत्तर प्रदेश यूपी में बच्चों को मिलेगा दिल की जन्मजात बीमारियों का इलाज
डिजिटल डेस्क, लखनऊ। दिल की जन्मजात बीमारियों के शिकार होने वाले बच्चों को यूपी सरकार इलाज मुहैया कराएगी। मुख्यमंत्री योगी के मार्गदर्शन में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2023 के लिए निवेश जुटाने को यूएस गए प्रतिनिधिमंडल ने प्रदेश सरकार सलोनी हार्ट फाउंडेशन के साथ एक एमओयू साइन किया है। इसके तहत एसजीपीजीआई में सेंटर फॉर एक्सीलेंस इन पीडियाट्रिक कॉर्डियोलॉजी यूनिट की स्थापना की जाएगी। इस यूनिट में प्रति वर्ष 5 हजार बच्चों की सर्जरी और 10 हजार बच्चों का इलाज हो सकेगा।
फाउंडेशन के एक्सपर्ट्स समय-समय पर यूनिट की विजिट करेंगे और ऑनलाइन जरूरी सलाह भी देंगे। 480 करोड़ रुपए की लागत से 200 बेड वाले इस पीडियाट्रिक कॉर्डियोलॉजी सेंटर बनने से प्रदेश के बच्चों को काफी राहत मिलने की उम्मीद है। एम्स दिल्ली की पूर्व डीन एवं पंडित बीडी शर्मा यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर प्रो. अनीता सक्सेना के अनुसार, देश में हर साल 2 लाख 40 हजार बच्चे हार्ट डिजीज के साथ जन्म लेते हैं। इनमें से 20 प्रतिशत बच्चों को जीवित रहने के लिए पहले साल में ही हार्ट की सर्जरी की आवश्यक्ता होती है। इलाज न मिल पाने की वजह से इनमें से कई की मौत हो जाती है। इनमें सबसे ज्यादा बच्चे यूपी, बिहार, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली से होते हैं।
जीआईएस 2023 के यूएस दौरे में कैलिफोर्निया में रहने वाले भारतीय मूल के हिमांशु सेठ ने लखनऊ के एसजीपीजीआई में एक सेंटर फॉर एक्सीलेंस इन पीडियाट्रिक कॉर्डियोलॉजी यूनिट बनाने के लिए प्रदेश सरकार के साथ 480 करोड़ रुपए का एक एमओयू साइन किया है। इसे 30 बेड से शुरू किया जाएगा, जिसके लिए एसजीपीजीआई के डायरेक्टर आरके धीमान ने स्वीकृति दे दी है। इसके सफल क्रियान्वयन के बाद दूसरे चरण में 100 और तीसरे चरण में यूनिट का विस्तार 200 बेड तक कर दिया जाएगा। यहां पर दिल की जन्मजात बीमारियों से जूझने वाले पांच हजार बच्चों की सर्जरी और 10 हजार बच्चों का इलाज संभव हो सकेगा। इस यूनिट के पूर्ण रूप से संचालित होने के बाद बीएचयू के साथ मिलकर सलोनी हार्ट फाउंडेशन एक और यूनिट का भी निर्माण कर सकती है।
यूएस दौरे पर गए वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने मुख्यमंत्री को बताया कि फाउंडेशन की फाउंडर एवं प्रेसीडेंट मिली सेठ दिल्ली की रहने वाली हैं। वह दिल्ली में अपनी फर्म चलाती थीं, जबकि उनके पति हिमांशु सेठ मल्टीनेशनल आईटी कंपनी में काम करते थे। वर्ष 2005 में उनकी छोटी बेटी सलोनी का जन्म हुआ, जिसे जन्मजात कंजेनाइटल हार्ट डिजीज (पैदाइशी दिल का रोग) की समस्या थी। दिल्ली में 2007 में पहले गलत इलाज और फिर 2010 में उसे लाईलाज घोषित कर दिया गया।
इस बीमारी का भारत में इलाज संभव नहीं हो सका था। इसके चलते दंपत्ति को यूएस शिफ्ट होना पड़ा, जहां 2011 में सलोनी को स्टैनफोर्ड चिल्ड्रेंस हॉस्पिटल ने बचाया और वह ठीक हो गई। परंतु 2018 में पहले के इलाज की देरी की वजह से हुई कॉम्प्लिकेशंस से उन्होंने सलोनी को खो दिया। इसके बाद दंपत्ति ने अपनी बेटी के नाम से वर्ष 2019 में सलोनी हार्ट फाउंडेशन की नींव रखी। तब से यह फाउंडेशन भारत में इस तरह की बीमारी से जूझने वाले नवजात बच्चों के इलाज का प्रबंध कर रहा है। वित्त मंत्री के अनुसार, फाउंडर मिली सेठ का कहना है कि भारत में इस तरह की बीमारियों के लिए ट्रेनिंग इंफ्रास्ट्रक्च र और स्पेशलाइजेशन की कमी है। वहीं, यूएस के टॉप अस्पतालों की कमान भारतीय मूल के डॉक्टर संभाल रहे हैं जो उनकी मुहिम से जुड़कर भारत में इस कमी को पूरा करने को तैयार हैं।
सलोनी हार्ट फाउंडेशन की फाउंडर मिली सेठ ने बताया कि उनकी संस्था से दुनिया के 23 सुपर स्पेशियलिस्ट पीडियाट्रिक कॉर्डियोलॉजिस्ट और पीडियाट्रिक कार्डियोथोरोसिक सर्जन जुड़े हुए हैं। इनके जरिए वह भारत में इस रोग से संबंधित बच्चों के परिजनों को फ्री मेडिकल सलाह उपलब्ध कराती हैं। यूएस में डॉक्टर की इस एक सलाह की कीमत 2 हजार डॉलर यानी डेढ़ लाख रुपए से भी ज्यादा है। इसके साथ ही वह पैनल के डॉक्टर्स के माध्यम से बच्चों की सर्जरी भी कराते हैं।
(आईएएनएस)
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