सनातन की पहचान है भारतबोध- डॉ. कृष्णगोपाल मिश्र

मध्य प्रदेश सनातन की पहचान है भारतबोध- डॉ. कृष्णगोपाल मिश्र

Bhaskar Hindi
Update: 2022-07-25 14:20 GMT
सनातन की पहचान है भारतबोध- डॉ. कृष्णगोपाल मिश्र

डिजिटल डेस्क, भोपाल। आज एमजीएम कॉलेज इटारसी में आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलित कर किया गया। प्राचार्य डॉ. राकेश मेहता ने स्वागत उद्बोधन दिया। जबकि कार्यक्रम का संचालन डॉ. संतोष अहिरवार और आभार प्रदर्शन प्रोफेसर ओ.पी. शर्मा ने किया। इस कार्यक्रम में वरिष्ठ प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष हिन्दी शासकीय नर्मदा महाविद्यालय डॉ. कृष्णगोपाल मिश्र भी शामिल हुए। उन्होंने कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि भारतवर्ष की पाँच हजार वर्ष से अधिक पुरानी विरासत को जानना और समझना ही भारत बोध है। भौगोलिक दृष्टि से भारतीय सीमाओं के साथ-साथ चार धाम, बारह ज्योतिर्लिंग और बाबन शक्तिपीठों को जाने बिना हम भारत के भूगोल को नहीं समझ सकते।  

यहां के पर्वतों, नदियों और महान तीर्थों की यात्रा भारत-बोध का प्रमुख भौगोलिक आयाम है। भारतीय वीरों की लंबी यशगाथा इतिहास के पृष्ठों में भारत बोध कराती है। सब जीवों में एक ही चेतना का दर्शन, शस्त्र और शास्त्र का  विवेक पूर्ण उपयोग, देश की मिट्टी के प्रति मातृभाव, स्वाधीनता और स्वाभिमान के साथ वैचारिक गतिशीलता भारतबोध के सांस्कृतिक पक्ष हैं।

यूरोपीय इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास में  भ्रांतियां सृजित की हैं। आर्यों के बाहर से आकर भारत में बसने जैसी कल्पित कथाएं और द्रविड़-आर्य संघर्ष जैसी घटनाएं भारतीय समाज को विघटित करने के लिए गढ़ी गई हैं। अपनी ज्ञान परंपरा की उपेक्षा, कोरी आदर्शवादिता, आत्ममुग्धता और अदूरदर्शिता सनातन भारत की दुर्बलताएं हैं जिनके कारण उसके गुण ही उसके लिए संकट बनते रहे हैं। अहिंसा का अमृत उसकी स्वतंत्रता के लिए हलाहल बन गया।

शक, हूण, कुषाण आदि बर्बर हिंसक जातियों को पराजित करने वाला महात्मा बुद्ध से पहले का शक्तिशाली भारत बुद्ध के पूरवर्ती काल में अहिंसा की काल्पनिक आदर्श वादी नीति की भेंट चढ़ गया। देश की सामरिक शक्ति और संगठन सूत्र दुर्बल हो गए तथा अरबी लुटेरों को देश लूटने का अवसर मिल गया। अपनी शक्ति को पहचान कर दुर्बलताओं को दूर कर भारतवर्ष के स्वर्णिम भविष्य को साकार करने के शुभ संकल्प में ही भारतबोध की सार्थकता है।

 इस अवसर पर वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. रश्मि तिवारी, डॉ. अरविंद शर्मा, डॉ. पवन अग्रवाल समेत बड़ी संख्या में छात्र उपस्थित रहे। छात्रों ने डॉ मिश्रा के उद्बोधन को काफी गंभीरता से सुना।

Tags: