दो साल में सीखे खेती के तौर तरीके, अब रिकार्ड उत्पादन पर दे रहे जोर
छिंदवाड़ा दो साल में सीखे खेती के तौर तरीके, अब रिकार्ड उत्पादन पर दे रहे जोर
डिजिटल डेस्क, छिंदवाड़ा। बहुफसलीय खेती के लिए विख्यात छिंदवाड़ा जिले के किसान अब औषधीय खेती की ओर बढ़ रहे हैं। दरअसल चौरई क्षेत्र के किसान प्रयोगधर्मी किसानों ने दो साल पहले अश्वगंधा की खेती शुरू की। अनाज और सब्जी फसलों की तुलना में अश्वगंधा की खेती से अच्छी आमदनी हासिल हुई तो अन्य किसानों ने भी अश्वगंधा की खेती शुरू की कर दी। इस साल जिले में कई किसानों ने अश्वगंधा के बीज की खरीदी कर ली है।
जिले के किसान मक्का, सोयाबीन का बंपर उत्पादन कर प्रदेश में अव्वल स्थान हासिल कर चुके हैं तो वहीं सब्जी उत्पादन में भी जिले के किसानों ने अलग ही पहचान बना ली है। ग्रामीण क्षेत्र के प्रयोगधर्मी किसान अब औषधीय और मसाला खेती की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। बीते साल चौरई के प्रयोगधर्मी किसानों को अश्वगंधा की खेती में मिली सफलता से चौरई के बिलंदा, सलखनी सहित चांद तहसील के गांवों मेंं भी अश्वगंधा की खेती के प्रति किसानों का रुझान बढ़ गया है। जानकारों के अनुसार इस साल जिले में 50 हेक्टेयर से अधिक रकबे में अश्वगंधा की रोपणी होगी।
गेहं से ज्यादा होती है आमदनी
बीते साल चौरई के सावरी निवासी किसान नीरज शर्मा ने तीन एकड़ रकबे में अश्वगंधा की खेती का नवाचार किया। उन्होंने बताया कि खेती का अनुभव नहीं होने के कारण आवश्यकता से कम बीजों का छिडक़ाव किया। इससे पौधों की संख्या लगभग ७० प्रतिशत ही रही। इसके बाद कुछ हिस्से में पौधे भी खराब हो गए। इसके बावजूद प्रति एकड़ लगभग 50 हजार रुपए की आमदनी हुई। इस साल भी तीन एकड़ में अश्वगंधा की खेती के लिए तैयारी कर ली है। नीरज ने बताया कि रबी सीजन में गेहूं की फसल के मुकाबले अश्वगंधा की खेती लाभदायक है। इसमें सिंचाई के लिए पानी कम लगता है तो वहीं एक आमदनी भी ज्यादा होती है।
एक्सपर्ट व्यू
छिंदवाड़ा जिले के वनक्षेत्र में औषधीय प्रजातियों का अकूत भंडार हैं। इसमें शतावर, अश्वगंधा, सर्पगंधा, सफेद मूसली, काली मूसली, बिदारीकंद सहित अन्य कई महत्वपूर्ण औषधियां शामिल हैं। यहां मिट्टी और वातावरण अश्वगंधा और शतावर की खेती के लिए बेहद अनुकूल है। आगामी दिनों में यहां औषधीय फसलों का रकबा बढऩा तय है। अधिक उत्पादन होने पर अश्वगंधा के पंचांग और जड़ों की बिक्री के लिए स्थानीय कृषि उपज मंडी में या औषधीय कारोबारियों के माध्यम से व्यवस्था बन सकती है।
सुशील उपाध्याय, निदेशक राज्य वन अनुसंधान संस्थान, जबलपुर
इनका कहना है...
औषधीय खेती के लिए किसानों को देवारण्य योजना के तहत आयुष विभाग द्वारा सहयोग मिलता है तो वहीं लघु और सीमांत किसान मनरेगा से भी योजना का लाभ ले सकते हैं।
आरके कोरी, उप संचालक, उद्यानिकी विभाग