Article : गरीबों के लिए सार्वजनिक सेवाओं में बदलाव
Article : गरीबों के लिए सार्वजनिक सेवाओं में बदलाव
सार्वजनिक सेवाओं की सुविधाजनक, आसान और विश्वसनीय प्रणाली तैयार करने का कार्य अक्सर इस आधार पर छोड़ दिया जाता है कि यह सब निजी क्षेत्र कर लेगा क्योंकि सार्वजनिक व्यवस्थाओं से गुणवत्तापूर्ण सेवाओं की प्रदायगी कराना कठिन ही नहीं, लगभग असंभव है। भारत जैसे विशाल देश में सर्वाधिक वंचित परिवारों तक जरूरी सेवाओं की समता और न्याय आधारित प्रदायगी अनिवार्य रूप से (i) लाभार्थियों के साक्ष्य-आधारित चयन, (ii) भलीभांति किए गए अनुसंधान के आधार पर नीतिगत उपायों, (जिनमें समय पर सुधारात्मक कार्यों का प्रावधान हो), (iii) सूचना – प्रौद्योगिकी से जुडे संसाधनों की उपलब्धता और उनके पूर्ण उपयोग के जरिए मानवीय हस्तक्षेप को कम से कम करने, और (iv) अन्य के साथ-साथ संघीय संरचना में काम करने वाली विभिन्न एजेंसियों के साथ ठोस तालमेल पर निर्भर करती है। बुनियादी ढांचागत कमियों, विस्तृत भौगोलिक क्षेत्रों और देश के कई दुर्गम भूभागों में दूर-दूर बसी विरल आबादी को ध्यान में रखते हुए यह कार्य और भी जरूरी हो जाता है। वास्तव में इतने बड़े पैमाने पर अपेक्षित सेवाओं की संकल्पना, योजना तैयार करना और सेवाएं प्रदान करना गैर-सरकारी एजेंसियों के लिए असंभव है। हालाँकि निजी क्षेत्र और स्थानीय/राज्य स्तरों पर कुछ उल्लेखनीय उपलब्धियां प्राप्त हुई हैं। तथापि, “सबका साथ सबका विकास” के व्यापक फ्रेमवर्क में “सभी के लिए आवास”, “सभी के लिए स्वास्थ्य”, “सभी के लिए शिक्षा”, “सभी के लिए रोजगार” जैसे महत्त्वाकांक्षी राष्ट्रीय लक्ष्यों की पूर्ति और “नए भारत” का स्वप्न साकार करने के लिए सार्वजनिक सेवाओं की पर्याप्त व्यवस्था बहुत जरूरी है, ताकि अखिल भारतीय आधार पर कार्यक्रमों की आयोजना, वित्तपोषण, कार्यान्वयन और निगरानी के साथ उनमें समय-समय पर अपेक्षित बदलाव किए जा सकें। इस संबंध में निम्नलिखित गतिविधियां आवश्यक और महत्वपूर्ण हैं:-
I. परिवारों में अभाव की स्थिति के निर्धारण के लिए अखिल भारतीय स्तर पर अचूक सर्वेक्षण की आयोजना और संचालन तथा स्थानीय सरकारों से उस सर्वेक्षण की पुनरीक्षा कराना;
II. पिछले अनुभवों और सर्वोत्तम राष्ट्रीय एवं वैश्विक पद्धतियों से सीख लेते हुए कार्यक्रमों की रूप रेखा तैयार करना, ताकि आवश्यकतानुसार कार्यक्रम सुनिश्चित किए जा सकें;
III. भली-भांति तैयार किए गए कार्यक्रमों के लिए पर्याप्त वित्त-पोषण की व्यवस्था करना;
IV. अनुभवों से सीख लेते हुए प्रशासन के विभिन्न स्तरों पर तालमेल बनाना तथा कार्यान्वयन के दौरान तत्काल सुधारात्मक उपाय करना। गरीबी उन्मूलन का अंतिम लक्ष्य हासिल करने के वास्ते भारत के एक बड़े अभावग्रस्त जनसमुदाय के लिए सेवाएं सुनिश्चित करने हेतु उपर्युक्त व्यवस्थाएं अपरिहार्य हैं। हाल ही के सफल अनुभव से साबित होता है कि हम इन्हें किसी भी कीमत पर नजर अंदाज नहीं कर सकते।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान ग्रामीण विकास के क्षेत्र में चलाए गए ग्राम स्वराज अभियान जैसे कार्यक्रम पूरी तरह पारदर्शी रहे हैं। वास्तव में ये कार्यक्रम समुदाय के प्रति पूरी जवाबदेही के साथ अपेक्षित परिणाम हासिल करने के लिए भरोसेमंद सार्वजनिक सेवा प्रणाली तैयार करने के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
गौरतलब है कि हमारी यह यात्रा जुलाई, 2015 में सामाजिक - आर्थिक और जाति आधारित जनगणना (एसईसीसी) 2011 के आंकड़ों को अंतिम रूप दिए जाने के साथ शुरू हुई। गरीबों के लिए चलाए जाने वाले लोक कल्याण कार्यक्रमों में अभावग्रस्त परिवारों का सटीक और उद्देश्य-परक निर्धारण किया जाना आवश्यक था। गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने वालों की वर्ष 2002 में तैयार की गई बी.पी.एल. सूची ग्राम प्रधान का विशेषाधिकार बन चुकी थी और इससे गरीब अक्सर छूट जाते थे। एसईसीसी के तहत अभाव के पैरामीटरों की पहचान करना आसान है। आंकड़े एकत्रित किए जाने के समय लोगों को यह जानकारी नहीं थी कि एसईसीसी का इस्तेमाल क्या और किस तरह होगा। इसके आधार पर तैयार की गई रिपोर्टें वास्तविकता के बहुत नजदीक हैं। परिवारों की गरीबी के पैरामीटरों को तैयार किए जाने के बाद ग्राम सभा के माध्यम से पुष्टि की प्रक्रिया ने इस डाटाबेस में समुदाय आधारित सुधार का अवसर दिया । एलपीजी कनेक्शन के लिए उज्ज्वला, बिजली के नि:शुल्क कनेक्शन के लिए सौभाग्य, मकान की व्यवस्था के लिए प्रधान मंत्री आवास योजना-ग्रामीण (पीएमएवाई-जी), अस्पताल में चिकित्सीय सहायता के लिए आयुष्मान भारत जैसे कार्यक्रमों के अंतर्गत लाभार्थियों का चयन एसईसीसी के अभाव संबंधी मानदंडों के आधार पर किया गया। यह डाटाबेस धर्म, जाति और वर्ग निरपेक्ष है। यह गरीबी के विभिन्न आयामों को दर्शाने वाले अभाव संबंधी पैरामीटरों पर आधारित है जिनका सत्यापन आसानी से किया जा सकता है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के अंतर्गत राज्यों के श्रम बजटों के निर्धारण तथा दीन दयाल अंत्योदय योजना – राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डीएवाई-एनआरएलएम) के अंतर्गत महिला स्व-सहायता समूहों (एसएचजी) के गठन में सभी अभावग्रस्त परिवारों के समावेशन के लिए एसईसीसी के आंकड़ों का उपयोग किया गया।
गरीबी के सटीक निर्धारण, आँकड़ों में सुधार और उन्हें अद्यतन बनाने में ग्राम सभाओं की भागीदारी से आधार, आईटी/डीबीटी, परिसंपत्तियों की जियो-टैगिंग, कार्यक्रमों के लिए राज्यों में एक नोडल खाते, पंचायतों को धनराशि खर्च करने का अधिकार दिए जाने किंतु नकद राशि न देने, सार्वजनिक वित्त प्रबंधन प्रणाली (पीएफएमएस) जैसे प्रशासनिक और वित्तीय प्रबंधन सुधारों को अपनाया जा सका। इसके परिणामस्वरूप लीकेज की स्थिति में बड़ा बदलाव आया। गरीबों के जन-धन खाते और अन्य खाते भी बिना बिचौलियों के प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के माध्यम बन गए। इससे व्यवस्था में काफी सुधार हुआ। पंचायत के खाते में नकद राशि अंतरण किए जाने की बजाय केवल पंचायत के निर्वाचित नेता के प्राधिकार से मजदूरी और सामग्री के लिए भुगतान इस प्रणाली के माध्यम से किए जा सकते हैं।
मनरेगा जैसे कार्यक्रमों से गरीबों के खातों में धनराशि के अंतरण, टिकाऊ परिसंपत्तियों के सृजन और आजीविका सुरक्षा सहित प्रमुख सुधारों को बढ़ावा मिला। मांग के अनुसार दिहाड़ी मजदूरी के लिए रोजगार उपलब्ध कराना जरूरी है, साथ ही यह भी आवश्यक है कि मजदूरी आधारित इस रोजगार के परिणामस्वरूप गरीबों की आय और दशा में सुधार लाने वाली टिकाऊ परिसंपत्तियों का सृजन भी हो। ग्राम पंचायत स्तर पर मजदूरी और सामग्री के 60:40 के अनुपात जैसे नियमों में बदलाव कर इसे जिला स्तर पर भी लागू किया गया। गरीबों के लिए स्वयं अपने मकान के निर्माण कार्य में 90/95 दिन के कार्य के लिए सहायता के रूप में व्यक्तिगत लाभार्थी योजनाएं शुरू की गईं। इन योजनाओं में गरीबों के साथ सीमांत एवं छोटे किसानों को भी शामिल कर, मनरेगा के अंतर्गत पशुओं के बाड़े बनाए गए, कुएं और खेत तालाब खोदे गए और पौधरोपण कार्य किए गए। प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन (एनआरएम) तथा कृषि और इससे जुड़े कार्यकलापों पर अधिक जोर देते हुए सामुदायिक परिसंपत्तियों का निर्माण भी जारी रखा गया। हमने मनरेगा के अंतर्गत लीकेज पर पूरी तरह अंकुश लगाने और गुणवत्तापूर्ण परिसंपत्तियों के सृजन के लिए साक्ष्यों का सहारा लिया। वर्ष 2018 में आर्थिक विकास संस्थान के अध्ययन में पाया गया कि बनाई गई 76 प्रतिशत परिसंपत्तियां अच्छी या बहुत अच्छी थीं । केवल 0.5% परिसंपत्तियां असंतोषजनक पाई गईं। मनरेगा और इसके सुचारू कार्यान्वयन के लिए विश्वसनीय सार्वजनिक व्यवस्था तैयार करना एक महत्वपूर्ण कदम है। यह वही कार्यक्रम है जिसमें संदीप सुखतांकर, क्लीमेंट इम्बर्ट इत्यादि द्वारा वर्ष 2007 से 2013 के दौरान कराए गए अध्ययनों में बड़े पैमाने पर लीकेज का पता चला था। निधियों को उचित और पारदर्शी तरीके तथा सही तकनीकी सहायता के साथ खर्च करने की योग्यता से पहले ही मनरेगा को निधियां मिल चुकी थीं। हमने प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के लिए एक तकनीकी दल गठित कर साक्ष्य आधारित कार्यक्रम लागू करने के लिए इस प्रौद्योगिकी का उपयोग किया। अब इसके परिणाम दिखाई दे रहे हैं। 15 दिनों के भीतर ही भुगतान आदेशों की संख्या 2013-14 के मात्र 26 प्रतिशत से बढ़ कर 2018-19 में 90 प्रतिशत से अधिक हो गई। इस वर्ष हम यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं कि भुगतान आदेश न केवल समय पर जारी हों, बल्कि धनराशि पंद्रह दिन के भीतर ही खाते में जमा हो जाए।
ग्रामीण आवास कार्यक्रम में पिछले 5 वर्षों के दौरान 15 मिलियन से अधिक मकान बनाए गए हैं और चरण-वार जियो-टैग किए गए चित्र भी pmayg.nic.in वेबसाइट पर पब्लिक डोमेन में डाल दिये गये हैं । सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञों ने देश भर में विविधता को बढ़ावा देने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में पारंपरिक मकान के डिजाइनों का अध्ययन किया। स्थानीय सामग्री के उपयोग को बढ़ावा देने के साथ राजमिस्त्रियों को कारगर तरीके से प्रशिक्षित किया गया। मौजूदा समय में सभी प्रकार की राशि इलेक्ट्रॉनिक तरीके से सत्यापित बैंक खातों में अंतरित की जाती है। सम्पूर्ण प्रक्रिया की निगरानी उचित समय पर वेबसाइट पर उपलब्ध डैशबोर्ड के जरिए की जाती है। प्रौद्योगिकी के प्रभावी उपयोग से मकानों का निर्माण कार्य पूरा होने की वार्षिक दर में 5 गुना वृद्धि हुई है। इससे हमारा यह विश्वास मजबूत हुआ है कि सभी के लिए 2022 तक मकान का लक्ष्य प्राप्त करना पूरी तरह संभव है। इन मकानों को तालमेल के जरिये स्वच्छ भारत शौचालय, सौभाग्य बिजली कनेक्शन, उज्ज्वला एलपीजी कनेक्शन और मनरेगा योजना के अंतर्गत 90 दिन का काम भी मिला है। कई व्यक्ति आयुष्मान भारत के भी लाभार्थी हैं और महिलाएं डीएवाई-एनआरएलएम के अंतर्गत बैंक लिंकेज वाले स्व-सहायता समूह की सदस्य हैं। बहुआयामी प्रयासों के जरिए गरीबों की जीवन दशा निश्चित रूप से बदली है। बीमारू कहे जाने वाले राज्यों में ज्यादातर लोग जर्जर कच्ची झोपडि़यों में रहते हैं। ऐसे राज्यों ने प्रधानमंत्री आवास योजना – ग्रामीण के अंतर्गत उत्कृष्ट काम कर अन्य राज्यों के लिए मिसाल पेश की है। यह भारत का एकमात्र ऐसा कार्यक्रम है, जहां बीमारू राज्यों ने आगे कदम बढ़ाकर परिवर्तन की अगुवाई की है।
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत एसएचजी के माध्यम से महिलाओं की सामुदायिक एकजुटता उल्लेखनीय रहने के बावजूद आजीविका में विविधता लाने और बैंक लिंकेज प्रदान करने के लिए अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। बैंक लिंकेज पर जोर दिए जाने से पिछले 5 वर्षों में एनआरएलएम के अंतर्गत लगभग तीन करोड़ महिलाओं के लिए दो लाख करोड़ रू. से अधिक के ऋण की मंजूरी मिल चुकी है। इससे आजीविका में बड़े पैमाने पर विविधता आई है। महिलाओं को सार्वजनिक परिवहन, बैंकिंग करेस्पॉन्डेंट और कस्टम सेंटर के स्वामित्व जैसे विभिन्न नए कार्यकलाप शुरू करने के अवसर मिले हैं। आजीविका मिशन से जुड़ी 6 करोड़ से अधिक महिलाएं बगैर किसी पूंजीगत सब्सिडी के, गरीबों का भाग्य बदल रही हैं। उनकी नॉन-परफॉर्मिंग परिसंपत्तियां (एनपीए) वर्ष 2013 की 7 प्रतिशत से घटकर आज 2 प्रतिशत से कुछ ही ज्यादा रह गई हैं। नि:संदेह ये महिलाएं हमारी सर्वश्रेष्ठ कर्जदार हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में रचनात्मक बदलाव के लिए इस बात की जरूरत है कि उनके नैनो उद्यमों को मदद दी जाए ताकि वे आने वाले वर्षों में सूक्ष्म और लघु उद्यम का रूप ले सकें। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने उद्यमों के विकास के लिए डीडीयू-जीकेवाई के अंतर्गत 67 प्रतिशत से अधिक रोजगार और आरएसईटीआई कार्यक्रम के अंतर्गत दो तिहाई से अधिक नियोजन सुनिश्चित किया है। इस योजना में नियोजन आधारित रोजगार और ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थानों (आरएसईटीआई) के तहत स्वरोजगार पर जोर देने के लिए कौशल विकास कार्यक्रमों में सुधार किए गए है।
14वें वित्त आयोग के अंतर्गत बड़ी धनराशि का अंतरण किए जाने से ग्राम पंचायतें अब ग्रामीण सड़कों और नालियों के साथ जरूरत के मुताबिक अन्य ढांचागत सुधार कर सकती हैं। पिछले एक वर्ष से मनरेगा और पीएमएवाई-जी के अंतर्गत जियो-टैगिंग, आईटी/डीबीटी अंतरण और पीएफएमएस के जरिये पूरी प्रणाली को जवाबदेह एवं पारदर्शी बनाने की कोशिश की गई है। हमें पूरा विश्वास है कि पीआरआईएसॉफ्ट के अंतर्गत खातों की इलेक्ट्रॉनिक निगरानी, परिसंपत्तियों की जियो-टैगिंग, लेन-देन आधारित एमआईएस के जरिए निधियों के अंतरण और एकल नोडल खाते के माध्यम से पारदर्शिता बढ़ेगी। स्थानीय खातों में निधियों के नकद अंतरण से भ्रष्टाचार की गुंजाइश बढ़ती है। अगर प्राधिकरण ग्राम पंचायत में निधियां खर्च करें, लेकिन भुगतान इलेक्ट्रॉनिक तरीके से मजदूरों और विक्रेताओं के खाते में किया जाए, तो भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। वृद्धों, विधवाओं और दिव्यांगों को पेंशन देने के लिए राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम - एनएसएपी के अंतर्गत इसी प्रकार के प्रयास किए गए थे। उनके अभिलेखों को डिजिटल बनाया गया । आज अधिकांश राज्यों में प्रौद्योगिकी की मदद से गरीबों को उनके बैंक खातों और आईटी/डीबीटी प्लेटफॉर्म के जरिए प्रति माह पेंशन राशि अंतरित करने में मदद मिली है। नि:संदेह, महिला स्व-सहायता समूहों की मदद से दूरदराज के क्षेत्रों में बैंकिंग करेस्पॉन्डेंटों का विस्तार करने से वृद्ध और बीमार विधवाओं को उनके घर पर ही पेंशन उपलब्ध कराने का रास्ता खुलेगा। प्रौद्योगिकी, प्रभावी विश्वसनीय सार्वजनिक व्यवस्था तैयार करने में बहुत सहायक है। पिछले 4 वर्षों का अनुभव हमें विश्वास दिलाता है कि ऐसा कर पाना संभव है ।
ग्राम स्वराज अभियान सरकार के 7 प्रमुख जनकल्याण कार्यक्रमों के अंतर्गत देश के 63974 गांवों में सभी पात्र व्यक्तियों के सर्वव्यापी कवरेज का एक अनोखा प्रयास था। इस कार्यक्रम के तहत एलपीजी कनेक्शन के लिए उज्ज्वला, मुफ्त बिजली कनेक्शन के लिए सौभाग्य, मुफ्त एलईडी बल्ब के लिए उजाला, टीकाकरण के लिए मिशन इंद्रधनुष, बैंक खातों के लिए जन-धन तथा दुर्घटना बीमा एवं जीवन बीमा कार्यक्रमों को एक निर्धारित समय-सीमा के भीतर प्रभावी निगरानी प्रणाली के जरिये गरीबों के घर-घर पहुंचाया गया । इस काम में बड़ी संख्या में केंद्रीय कर्मचारियों की भी मदद ली गई। यह छह करोड़ महिला स्व-सहायता समूहों और पंचायती राज संस्थाओं के 31 लाख निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ केंद्र, राज्य और स्थानीय सरकारों के मिलकर काम करने का अनूठा सहयोगात्मक संघीय प्रयास था। इससे साबित हो गया कि अगर इच्छा-शक्ति हो, तो बड़े से बड़े लक्ष्य को भी प्राप्त कर पाना कठिन नहीं है ।
प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) के अंतर्गत ग्रामीण सड़कों के लिए भी इसी प्रकार के प्रयास किए गए। इससे पिछले 1000 दिनों में प्रतिदिन 130-135 किमी. लंबाई की सड़कों का निर्माण हुआ जो प्रभावी निगरानी और राज्यों के साथ लगातार बातचीत के जरिए संभव हो पाया । बीमारू राज्यों के मैदानी क्षेत्रों में 500 से अधिक और पर्वतीय क्षेत्रों में 250 से अधिक आबादी वाली पात्र बसावटों को सड़कों से जोड़ने की एक बड़ी चुनौती सामने थी। उन्हें इस बात के लिए प्रेरित किया गया कि लगभग 97 प्रतिशत पात्र और व्यवहार्य बसावटों को मार्च, 2019 तक सड़कों से जोड़ दिया जाए। हालांकि मूल लक्ष्य मार्च, 2022 तक का था। ग्रामीण सड़क कार्यक्रम से इस बात की भी पुष्टि हुई है कि पीएमजीएसवाई जैसा लोक कार्यक्रम किस प्रकार निर्धारित समयसीमा के भीतर और उचित लागत पर सार्वजनिक सेवाएं प्रदान कर सकता है। इसमें कार्बन फुटप्रिंट कम करने और विकास को स्थायी आधार देने के लिए रद्दी प्लास्टिक जैसी हरित प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए 30,000 किमी. से अधिक सड़क मार्गों का निर्माण किया गया।
ग्रामीण कृषि बाजार (ग्राम), उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों, अस्पतालों को बस्तियों से जोड़ते हुए 1,25,000 किलीमीटर थ्रु और प्रमुख ग्रामीण सड़कों का 80,250 करोड़ रुपये की लागत से समेकन कार्य की मंजूरी सरकार ने दे दी है । सभी राज्यों को दिशानिर्देश भेज दिए गए हैं और परियोजनाओं की मंजूरी के लिए प्रारम्भिक कार्य भी शुरू हो चुके हैं ।
यह सच है कि हम सार्वजनिक सेवा प्रणलियों की सफलता का जिक्र करने में भी कोई रूचि नहीं लेते क्योंकि हम में से ज्यादातर लोगों की धारणा सरकारों को निष्क्रिय तथा निजी क्षेत्र को कारगर स्वरूप में देखने की बन चुकी है। इसमें कोई संदेह नहीं कि निजी क्षेत्र ने कई शानदार उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन हमें इसके साथ-साथ इसे भी समझना जरूरी है कि सामाजिक क्षेत्र में गरीबों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण कार्यक्रम जैसी अनेक सार्वजनिक सेवाओं में अब भी समुदाय के नेतृत्व और स्वामित्व वाली एक ऐसी सार्वजनिक सेवा प्रदायगी व्यवस्था की जरूरत है जो परिणामों पर केंद्रित हो और गरीबों की जीवन दशा में सुधार तथा कल्याण ही उसका अंतिम लक्ष्य हो। विश्वसनीय सार्वजनिक सेवा प्रणाली तैयार करने से अब पीछे नहीं हटा जा सकता, क्योंकि यह गरीबों की जीवन दशा में परिवर्तन और सुधार लाने के लिए अत्यंत आवश्यक है । प्रसन्नता की बात यह है कि केन्द्र में लोकप्रिय और यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में वर्तमान राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार शुरू से ही इसके लिए प्रयत्नशील रही है । इसके अनेक सुखद परिणाम सामने आए हैं और यह सिलसिला रूकने वाला नहीं है।
- नरेन्द्र सिंह तोमर
(कृषि एवं किसान कल्याण, ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री, भारत सरकार)