महाधिवक्ता राजेन्द्र तिवारी का शाम चार बजे राजकीय सम्मान के साथ होगा अंतिम संस्कार
महाधिवक्ता राजेन्द्र तिवारी का शाम चार बजे राजकीय सम्मान के साथ होगा अंतिम संस्कार
डिजिटल डेस्क, जबलपुर। महाधिवक्ता दिवंगत राजेंद्र तिवारी का सोमवार को संध्या 4 :00 बजे रानीताल श्मशान घाट में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा । अंतिम संस्कार में विधि क्षेत्र की नामचीन हस्तियों के साथ ही प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ एवं मुख्य सचिव के भी सम्मिलित होने की संभावना बताई जा रही है । इसके पूर्व आज प्रात: काल से ही दिवंगत महाधिवक्ता के अंतिम दर्शन के लिए नगर के गणमान्य नागरिकों के साथ ही अधिवक्ताओं की खासी भीड़ रही । देर रात उनका पार्थिव शरीर जबलपुर पहुंचा था । रास्ते में ग्वालियर में भी श्री तिवारी के अंतिम दर्शन के लिए विधि क्षेत्र के लोगों की काफी भीड़ देखी गई थी । गौरतलब है कि शनिवार की रात्रि महाधिवक्ता राजेंद तिवारी का गुडग़ांव स्थित मेदांता अस्पताल में स्वर्गवास हो गया था।
संवैधानिक, सिविल और सेवा मामलों के ज्ञाता थे
प्रदेश के दिवंगत महाधिवक्ता राजेन्द्र तिवारी संवैधानिक, सिविल और सेवा मामलों के ज्ञाता थे। उनके द्वारा की गई कानून की व्याख्या वकीलों का पथ प्रदर्शित करती है। वे अपनी बुलंद भाषण शैली के लिए जाने जाते थे। निर्विवाद व्यक्तित्व के धनी श्री तिवारी के निधन की खबर मिलते ही पूरे शहर मेें शोक की लहर दौड़ गई। बड़ी संख्या में अधिवक्ता और परिचित उनके निवास पर पहुँचने लगे।
1964 में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में वकालत की शुरूआत की
राजेन्द्र तिवारी का जन्म 14 अप्रैल 1936 को हुआ। वे 1956-57 में रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष भी रहे। बीए, एमए संस्कृत करने के बाद उन्होंने क्राइस्ट चर्च स्कूल में अध्यापन कार्य भी किया। श्री तिवारी ने 1964 में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में वकालत की शुरूआत की। वे 1985-88 तक प्रदेश के उप महाधिवक्ता भी रहे। उन्होंने 1993 में हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष पद का दायित्व भी सँभाला। 17 दिसंबर 2018 को उन्हें प्रदेश का महाधिवक्ता नियुक्त किया गया। श्री तिवारी शहर की कई साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़े हुए थे। वे महाकोशल शिक्षा प्रसार समिति और जबलपुर शिक्षा मंडल के अध्यक्ष थे।
चार भाषाओं पर समान अधिकार
तिवारी के व्यक्तित्व का विराट पहलू यह था कि वे चार भाषाओं के ज्ञाता थे। उनका हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत और उर्दू भाषाओं पर समान अधिकार था। उनकी चारों भाषाओं में घंटों व्याख्यान देने की क्षमता थी।