केंद्रीय मंत्रीमंडल: कैबिनेट मंत्री और राज्य मंत्री में क्या होता है सामान्य अंतर ? समझिए मंत्री पद मिलने के बाद कैसे होती है वेतन में बढ़ोतरी
- कैबिनेट मंत्री और राज्य मंत्री में क्या होता है अंतर
- मंत्री पद मिलते ही वेतन में होती है बढ़ोतरी
- जानिए पूरी प्रकिया
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। एक बार फिर से केंद्र में एनडीए गठबंधन की सरकार बन गई है। नरेंद्र मोदी ने रविवार को तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। इस दौरान उनके साथ 71 सांसदों ने भी मंत्री पद की शपथ ली। इनमें से 30 कैबिनेट मंत्री और 5 राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) शामिल है। जबकि, 36 राज्य मंत्री बनाए गए हैं। क्या आप जानते हैं कि इन तीनों मंत्रियों में क्या अंतर होता है? आइए जानते हैं कि इन तीनों को बाकी सांसदों से क्या अलग वेतन और लाभ मिलते हैं
पिछले दो लोकसभा चुनाव की तुलना में इस बार मोदी सरकार का यह सबसे बड़ा मंत्रिमंडल है। साल 2014 में प्रधानमंत्री मोदी ने जब पहली बार पीएम की शपथ ली थी, तब उनके साथ 46 सांसद मंत्री बने थे। इसके बाद साल 2019 में नरेंद्र मोदी दूसरी बार पीएम बने। जिसमें उनके साथ 59 सांसदों ने मंत्री पद की शपथ ली थी। हालांकि, इस बार एनडीए सरकार के मंत्रिमंडल में प्रधानमंत्री समेत कुल 72 मंत्री शामिल हैं। जिसमें से 30 कैबिनेट मंत्री और 36 राज्य मंत्री हैं। जबकि, 5 ने राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के रूप में शपथ ली है।
हालांकि, मोदी कैबिनेट में सांसद से और 9 मंत्री बन सकते हैं, क्योंकि संविधान में 81 मंत्रियों की सीमा तय है। संविधान में 91वें संसोधन के मुताबिक, लोकसभा के कुल सदस्यों में से 15 प्रतिशत को ही मंत्रिमंडल में शामिल कर सकते हैं। ऐसे में लोकसभा की कुल 543 सीटों पर 81 मंत्री ही बन सकते हैं। संविधान के अनुच्छेद 75 के तहत, प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति मंत्रिमंडल का गठन करते हैं।
मंत्रिमंडल में सबसे ताकतवर कैबिनेट मंत्री होता है। इसके बाद दूसरे स्थान पर राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और तीसरे स्थान पर राज्य मंत्री आते हैं। जो भी सांसद मंत्रिमंडल में शामिल किया जाता है, उन्हें बाकी सांसदों की तुलना में अलग से भत्ता मिलता हैं।
कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और राज्य मंत्री में अंतर?
कैबिनेट मंत्री - कैबिनेट मंत्री सीधा प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करते हैं। इन्हें जो भी मंत्रित्व सौंपा जाता है, उसकी पूरी जिम्मेदारी इनकी ही होती हैं। कैबिनेट मंत्री को एक से ज्यादा मंत्रालय भी सौंपे जा सकते हैं। इसके साथ ही कैबिनेट मंत्रियों का बैठकों में शामिल होना भी आवश्यक होता है। सरकार अपने सभी फैसले कैबिनेट बैठक में ही लेती है।
राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) - राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) कैबिनेट मंत्रियों को जवाबदेह नहीं होते हैं। वह सीधे प्रधानमंत्री को ही रिपोर्ट करते हैं। इनके पास अपना मंत्रालय होता है। स्वतंत्र प्रभाव वाले राज्य मंत्री कैबिनेट मंत्रियों की बैठक में शामिल नहीं होते हैं।
राज्य मंत्री - कैबिनेट मंत्री की मदद के लिए राज्य मंत्री बनाए जाते हैं। इनकी रिपोर्टिंग कैबिनेट मंत्री को होती है। एक मंत्रालय में एक से ज्यादा राज्य मंत्री बनाए जा सकते हैं। जबकि, कैबिनेट मंत्री की गैरमौजूदगी में मंत्रालय की सारी जिम्मेदारियों को राज्य मंत्री ही संभालते हैं। राज्य मंत्री भी कैबिनेट बैठक में शामिल नहीं होते हैं।
क्या सुविधाओं में होती है बढ़ोत्तरी?
लोकसभा के हर सदस्य का वेतन और भत्ता तय होता है। लेकिन प्रधानमंत्री, कैबिनेट मंत्री और राज्य मंत्री को हर महीने सांसदों की तुलना में अलग से भत्ता मिलता है। सरकार को मिलने वाला वेतन और भत्ता सैलरी एक्ट के तहत तय होता है। इसके मुताबिक, लोकसभा के हर सांसद को प्रति माह 1 लाख रुपये की सैलरी मिलती है। इसके साथ ही 70 हजार रुपये निर्वाचन भत्ता और 60 हजार ऑफिस खर्च के लिए अलग से मिलते हैं। इसके अलावा सांसद सत्र चलने पर 2 हजार रुपये का प्रतिदिन भत्ता भी मिलता है।
प्रधानमंत्री और मंत्रियों को हर महीने सत्कार भत्ता भी मिलता है। प्रधानमंत्री को 3 हजार रुपये, कैबिनेट मंत्री को 2 हजार रुपये, राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) को 1 हजार और राज्य मंत्री को 600 रुपये मिलते हैं। ये भत्ता मंत्रियों से मुलाकत करने वाले लोगों की आवभगत और मनोरंजन के लिए दिया जाता है।
यदि इसे आसान शब्दों में समझे तो लोकसभा सांसद को वेतन और भत्ते मिलाकर हर महीने 2.30 लाख रुपये मिलते हैं। प्रधानमंत्री को 2.33 लाख, कैबिनेट मिनिस्टर को 2.32 लाख, राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) को 2.31 लाख और राज्य मंत्री को 2,30,600 रुपये मिलते हैं।
क्या सांसदों को टैक्स देना जरूरी होता है?
हां, चाहें सांसद हो या राष्ट्रपति या फिर प्रधानमंत्री सभी को इनकम टैक्स देना अनिवार्य होता है। हालांकि, इन्हें सिर्फ वेतन पर ही टैक्स देना पड़ता है। नियमों के मुताबिक, लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को सिर्फ सैलरी पर ही टैक्स देना होता है। बाकी जो अलग से अलाउंस मिलते हैं उनपर कोई टैक्स नहीं लगता है।
सांसदों की हर महीने की सैलरी 1 लाख रुपये होती है। इस हिसाब से साल की सैलरी 12 लाख के करीब रहती है। ऐसे में इन्हें 12 लाख रुपये के हिसाब से टैक्स देना पड़ता है। जबकि, सांसद, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति की सैलरी पर अन्य स्त्रोतों से प्राप्त आय के मुताबिक टैक्स लगाया जाता है।