ग्राउण्ड रिपोर्ट: केंद्रीय मंत्री कुलस्ते मोदी में तो कांग्रेस विधायक ओमकार छठी अनुसूची में ढूंढ रहे जीत की राह

केंद्रीय मंत्री कुलस्ते मोदी में तो कांग्रेस विधायक ओमकार छठी अनुसूची में ढूंढ रहे जीत की राह
  • प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में अपनी जीत की राह तलाश रहे हैं कुलस्ते
  • खुद की गलती से विधानसभा चुनाव हारे- कुलस्ते
  • अमित शाह की सभा से राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ गई

डिजिटल डेस्क, मंडला/कपिल श्रीवास्तव। महाकोशल के चार जिलों मंडला, डिंडोरी, सिवनी तथा नरसिंहपुर की आठ विधानसभा सीटों से मिल कर बने मंडला लोकसभा क्षेत्र में राजनीतिक गतिविधियं तथा भाजपा व कांग्रेस के बड़े नेताओं की सतत आवाजाही से राजनीतिक तापमान बढ़ा हुआ है। सप्ताह भर से लगभग हर दिन हो रही बारिश व ओलावृष्टि भी दोनों दलों के प्रत्याशियों तथा कार्यकर्ताओं का हौसला कम नहीं होने दे रही। मंडला व सिवनी जिले की सीमा पर बसे आदिवासी बहुल धनौरा में कांग्रेस के पूर्व उपाध्यक्ष राहुल गांधी की सभा के बाद संसदीय क्षेत्र मुख्यालय मंडला में केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह की सभा से राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ गई हैं। बावजूद इसके क्षेत्र के विकास की बात जुबां पर रखने वाले भाजपा प्रत्याशी केन्द्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते तथा कांग्रेस प्रत्याशी डिंडोरी विधायक ओमकार सिंह मरकाम के पास ऐसा कोई बड़ा मुद्दा नहीं है जिसे लेकर वे चुनाव मैदान में हों। पानी तथा महंगाई जैसे जनता से जुड़े मुद्दे पर सत्ता पक्ष तो बात करने से कतरा ही रहा है, विपक्ष भी इसे तवज्जो नहीं दे रहा। खुद के रणनीतिक कौशल पर भरोसा रखने वाले कुलस्ते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में अपनी जीत की राह तलाश रहे हैं।

यह बात वे खुद कहते हैं कि ‘मोदी के रहते मेरे सामने कोई चुनौती नहीं है।’ इधर, अपनी अत्यंत गोपनीय रणनीति के सहारे चार बार विधानसभा चुनाव जीत चुके कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व मंत्री तथा डिंडोरी विधायक ओमकार सिंह मरकाम विधानसभा की तरह लोकसभा चुनाव भी ‘छठी अनुसूची’ के वादे पर जीतना चाह रहे हैं। विधानसभा चुनाव के समय ओमकार ने मंडला में प्रियंका गांधी से पहली बार कांग्रेस की सरकार बनने पर आदिवासियों के लिए ‘छठी अनुसूची’ लागू करने का ऐलान करवाया था। यही ऐलान उन्होंने 8 अपैल को धनौरा में राहुल गांधी से करवाया। यह बात अलग है कि स्वयं क्षेत्र के कई कांग्रेसी और आम वर्ग ‘छठी अनुसूची’ की व्यवस्था से इत्तेफाक नहीं रखता। इसी वजह से हालिया विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को शहपुरा व मंडला जहां दीगर वर्ग के मतदाताओं की भी बड़ी संख्या है, हार का समाना करना पड़ा था।

एससी वर्ग के लिए आरक्षित गोटेगांव भी उसके हाथ से निकल गया। डिंडोरी, बिछिया और लखनादौन पाटी प्र्रत्याशियों के व्यक्तिगत संपर्क और भाजपा संगठन की कमजोरी की वजह से कांग्रेस बचा ले गई थी। केवलारी और निवास भाजपा प्रत्याशियों की खुद की गलती तथा मिस मैनेजमेंट की वजह से भाजपा ने खोई थीं। केन्द्रीय मंत्री कुलस्ते ने भी यह स्वीकारा कि वे ‘खुद की गलती से विधानसभा चुनाव हारे थे।’

मोदी पर भरोसे की वजह

कांग्रेस के गढ़ डिंडोरी के ग्रामीण क्षेत्रों विशेष रूप बैगा चक में भाजपा ने बहुत खामोशी से प्रवेश किया है। चाडा हो या पचगवां रैयत और माल जहां पहले केवल माई इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, बहू सोनिया, बाबा राहुल व बेटी प्रियंका का नाम ही लोग जानते थे, आज उनकी जुबां पर मोदी का नाम भी है। वे मानते हैं कि उन्हें रहने के लिए मकान और खाने के लिए अनाज मोदी दे रहे हैं। पहले जिन इलाकों में वोट देने के नाम पर हर मुहं से ‘पंजा’ निकलता था, वहां कमल या भाजपा नहीं कुछ लोग मोदी का भी नाम लेने लगे हैं। बैगा चक के 52 ग्रामों के करीब 12-15 प्रतिशत वोटर का झुकाव मोदी की ओर है। यहां आदिवासियों की लंबी लड़ाई लडऩे वाले जिला पंचायत अध्यक्ष रूदेश परस्ते कांग्रेस छोड़ भाजपा में जा चुके हैं तथा मोदी सरकार के काम आदिवासियों को बता रहे हैं। इसका असर शहपुरा के विक्रमपुरा व शाहपुर के साथ अंतिम छोर पर बसे नरसिंहपुर जिले के गोटेगांव में भी देखने को मिला। कांग्रेस नेता तथा पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति के प्रभाव वाले गोटेगांव में ज्यादातर लोग सांसद कुलस्ते द्वारा कोई बड़ा काम न कराए जाने से नाखुश हों लेकिन मोदी के नाम पर उनका झुकाव भाजपा की ओर दिख रहा है। हाल यह कि मवई, घुघरी, डिठोरी, पचगवां, माल व रैयत जैसे कई पठारी तथा सुदूरवर्ती आदिवासी गांवों में पीने व खेती के लिए पानी नहीं है। खेत सूख रहे हैं। झिरिया में पानी न निकले तो कंठ भी सूख जाते हैं लेकिन वोट देने की बात पर ज्यादातर लोगों की जुबां पर अपने सांसद कुलस्ते के बजाय मोदी या फिर भाजपा का नाम है। यही वजह है कि भाजपा के कुलस्ते को खुद व किए गए कामों से ज्यादा ‘मोदी पर भरोसा है।’

छठी अनुसूची यानि सब कुछ तुम्हारा

कांग्रेस के ओमकार संसदीय क्षेत्र की 8 में से 5 सीटों खासतौर पर सामान्य वर्ग की केवलारी में पार्टी की जीत को बड़ी ताकत मानते हैं। वे यह मानते हैं कि संसदीय क्षेत्र की 8 मे से 6 आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित सीटों पर ‘छठी अनुसूची’ की बात पहुंचा कर वे 2019 के एक लाख 2 हजार मतों के अंतर को पाटते हुए अपनी जीत के लिए जरूरी वोट जुगाड़ लेंगे। डिंडोरी और शहपुरा को लेकर वे बेफिक्र हैं। टिकट मिलने के बाद से ही वे मंडला तथा सिवनी जिले की पांचों विधानसभा सीटों, के ग्रामीण क्षेत्रों में बने हुए हैं। वे घर-घर जा रहे हैं और आदिवासी मतदाताओं को समझा रहे हैं कि दिल्ली में कांग्रेस की सरकार बन जाएगी तो यहां तुम्हारा राज हो जाएगा। जल, जंगल, जमीन ही नहीं शासन-प्रशासन भी तुम्हारा होगा। तुम्हारी खुद की सरकार होगी। अपने फैसले खुद लोगे। पैसा कहां, कैसे खर्च करना है तुम्हीं तय करोगे। वो मतदाताओं को यह भी बता रहे हैं कि जब वे कांग्रेस सरकार में 15 महीने मंत्री रहे थे तो उन्होंने अपने आदिवासी भाइयों के लिए क्या-क्या किया। यह बात अलग है कि तीन सप्ताह की दौड़-भाग के बाद भी मरकाम ग्रामीणों की जुबां पर ‘छठी अनुसूची’ का नाम नहीं ला पाए हैं। आदिवासी बहुल पचगवां रैयत के फागूलाल, चैतराम, गरबू सिंह आदि से जब इस बावद पूछा तो उन्होंने कहा, ये क्या है हम नहीं जानते। मरकाम की एक और ताकत कांग्रेस संगठन और उसका कार्यकर्ता भी है। पार्टी के शेष चारों विधायक और संसदीय क्षेत्र के सभी पूर्व विधायक एकजुट हो पार्टी को जिताने में लगे हैं। भले ही जनसंपर्क की व्यस्तता तथा भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिशों के बीच मरकाम पार्टी के स्थानीय नेताओं, पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं को फोन पर भी समय न दे पा रहे हों।

‘नाम’ नहीं अब ‘निशान’ पहचान

मंडला तथा डिंडोरी के ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा तथा कांग्रेस के प्रचार वाहन घूम रहे हैं। खास बात यह कि इन पर पार्टी प्रत्याशी की फोटो, नाम, नारे आदि के बैनर या पंपलेट नहीं ले हैं। प्रचार वाहन पर केवल पार्टी के चुनाव चिन्ह् वाला झंडा लगा है। यह प्रयोग संभवत: इसलिए भी हो रहा है क्योंकि 6 बार के सांसद कुलस्ते और 4 बार के विधायक मरकाम को लेकर जनता में बहुत नाराजगी है। इसलिए ऐसे इलाकों में दोनों ही दलों ने नाम व चेहरे पर नहीं बल्कि पार्टी के निशान (चुनाव चिन्ह्) को आगे रखते हुए प्रचार करना शुरू कर दिया है।


Created On :   13 April 2024 4:39 PM IST

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