सफेद सोने की भूमि खरगोन की चुनावी राजनीति में चलता है चेहरा और जातियों का जादू

  • खरगोन जिले में 6 विधानसभा सीट
  • 2 एसटी,1 एससी, 3 सामान्य वर्ग के सुरक्षित
  • जिले में जातियों का मिश्रित समीकरण

Bhaskar Hindi
Update: 2023-08-12 05:54 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मध्यप्रदेश के खरगोन जिले में विधानसभा की 6 सीट है। जिनमें भीकनगांव, बड़वाह, महेश्वर, कसरावद, खरगोन, भगवानपुरा। इनमें से दो सीट भीकनगांव और भगवानपुरा अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। वहीं महेश्वर विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। बची तीन सीट बड़वाह,कसरावद और खरगोन विधानसभा सीट सामान्य के लिए सुरक्षित है। खरगोन जिले में पाटीदार समाज के मतदाता है, इसके चलते यहां की राजनीति में गुजरात के पाटीदारों का असर देखने को मिलता है।

खरगोन निमाड़ के अंतर्गत आता है। 25 मई 1998 को पश्चिमी निमाड़ को दो जिलों खरगोन और बड़वानी जिले में विभाजित कर दिया था। खरगोन में कपास और मिर्ची का उत्पादन अधिक होता है। यहां मूंगफली का उत्पादन भी अच्छा होता है। खरगोन में कई जिनिंग फेक्टरी है। खरगोन जिले में बेड़िया में एशिया की दूसरी सबसे बड़ी मिर्ची मंडी है। 2018 के विधानसभा चुनाव में 6 में से पाचं सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, जबकि एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार निर्वाचित हुआ था।

भीकनगांव विधानसभा सीट

साल1962 में भीकनगांव विधानसभा सीट अस्तित्व में आई थी।1977 में ये सीट अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षित हुई थी। भीकनगांव सीट आदिवासी बाहुल्य सीट है। यहां ढ़ाई लाख से अधिक मतदाता है। भीकनगांव महाराष्ट्र की सीमा से सटा हुआ है। क्षेत्र में भिलाला , बारेला जनजाति की बहुलता के अलावा अन्य कई समाज भी रहते हैं। जो चुनाव में अहम भूमिका में रहते है।

2018 में कांग्रेस से झूमा सोलंकी

2013 में कांग्रेस से झूमा सोलंकी

2008 में बीजेपी के धूल सिंह डावर

2003 में बीजेपी के धूल सिंह डावर

1998 में बीजेपी से लाल सिंह

1993 में कांग्रेस से जवान सिंह

1990 में बीजेपी से डोंगर सिंह

1985 में कांग्रेस से जुवान सिंह

1980 में बीजेपी से डोंगर सिंह

1977 में जेएनपी से डोंगर सिंह

1972 में कांग्रेस से राणा बलबहादुर सिंह

भगवानपुरा विधानसभा सीट

भगवानपुरा विधानसभा सीट पर अनुसूचित जनजाति वर्ग का दबदबा है। एसटी वोटर्स ही यहां चुनावी भविष्य तय करते है। आदिवासियों में से भी बारेला और भिलाला समुदाय के मतदाता प्रभुत्व रखते है। सेगांव क्षेत्र में गुर्जर व यादव समुदाय के मतदाता प्रभावी भूमिका में रहते है।

2018 में निर्दलीय केदार सिंह डाबर

2013 में कांग्रेस से विजय सिंह सोलंकी

2008 में बीजेपी से जमना सिंह सोलंकी

बड़वाह विधानसभा सीट

बड़वाह विधानसभा का अधिकतर क्षेत्र नर्मदा किनारे बसा है, बड़वाह मिर्च उत्पादन के लिए मशहूर है। बड़वाह सीट पर गुर्जर समुदाय का दबदबा है। गुर्जर बाहुल्य होने से चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाता है। राजपूत वोटर्स भी अहम रोल में होता है।

2018 में कांग्रेस से सचिन बिरला

2013 में बीजेपी से हितेंद्र सिंह सोलंकी

2008 में बीजेपी से हितेंद्र सिंह सोलंकी

2003 में बीजेपी से हितेंद सिंह सोलंकी

1998 में कांग्रेस से जगदीश

1993 में कांग्रेस से ताराचंद शिवाजी पटेल

1990 में बीजेपी से चंद्रकात गुप्ता

1985 में कांग्रेस से राणा बालबहादुर सिंह

1980 में बीजेपी से कैलाश पंडित

1977 में जेएनपी से रमेश शर्मा

1972 में कांग्रेस से अमोलक चाजेड

महेश्वर विधानसभा सीट

खरगोन जिले की महेश्वर विधानसभा सीट एससी वर्ग के लिए सुरक्षित है। अब तक 15 चुनावों में से 9 बार कांग्रेस और एक -एक बार जनसंघ और जनता पार्टी के अलावा चार बार बीजेपी ने जीत दर्ज की थी। सीट पर राजनीतिक और जातीय समीकरण की बात की जाए तो यहां दो लाख के करीब मतदाता है। अनुसूचित जाति के वोटर्स की संख्या यहां सबसे अधिक है।पाटीदार, वैश्य और ब्राह्मण समाज के मतदाताओं की बड़ी संख्या है।

यहां की समस्याओं की बात की जाए तो रोजगार, सड़कें, शिक्षा, अवैध उत्खनन है। निमाड़ उत्सव की जगह बदला जाना भी एक बड़ा चुनावी मुद्दा है, साथ ही महेश्वर साड़ी के बुनकरों को बाजार उपलब्ध नहीं होना और सरकार का संरक्षण न मिलना एक मुद्दा है।

2018 में कांग्रेस से डॉ विजय लक्ष्मी साधौ

2013 में बीजेपी से मेव राजकुमार

2008 में कांग्रेस से डॉ विजय लक्ष्मी साधौ

2003 में बीजेपी से भूपेंद्र आर्य

1998 में डॉ विजय लक्ष्मी साधौ

1993 में कांग्रेस से विजयलक्ष्मी साधौ

1990 में बीजेपी से मदन वर्मा

1985 में कांग्रेस से विजयलक्ष्मी साधौ

1980 में कांग्रेस सीताराम साधौ

1977 में जेएनपी से नाथूभाई सावले

1972 में कांग्रेस से सीताराम साधुराम

कसरावद विधानसभा सीट

कसरावद सीट पर यादव समाज का बाहुल्य है, यहां पाटीदार, राजपूत, व पटेल समुदाय भी रुतबा रखता है। कसरावद सीट पर यादव समाज का बाहुल्य है, यहां पाटीदार, राजपूत, व पटेल समुदाय भी रुतबा रखता है। कसरावद सीट 1977 में अस्तित्व में आई थी, मध्यप्रदेश में सहकारिता का जनक पूर्व डिप्टी सीएम दिवंगत कांग्रेस नेता सुभाष यादव का यहां अच्छा खासा दबदबा रहा था।   1993, 19098, 2003 में यादव यहां से लगातार चुनाव जीते थे। लेकिन वो 2008 में अपना अंतिम चुनाव भीतरघात के कारण हार गए थे।

2018 में कांग्रेस से सचिन यादव

2013 में कांग्रेस से सचिन यादव

2008 में बीजेपी में आत्मा राम पटेल

2003 में कांग्रेस से सुभाष यादव

1998 में कांग्रेस से सुभाष यादव

1993 में कांग्रेस से सुभाष यादव

1990 में बीजेपी से गजानंद जिनवाला

1985 में कांग्रेस से रमेशचंद्र मंडलोई

1980 में कांग्रेस से रमेशचंद्र मंडलोई

1977 में जनता पार्टी से बंकिम जोशी

खरगोन विधानसभा सीट

सफेद सोने यानी कपास के लिए मशहूर खरगोन में उत्तर व दक्षिण प्रदेशों को जोड़ने वाले प्राकृतिक मार्ग व्यवसाय के लिए अहम है। खरगोन में किसानों को फसल के उचित दाम नहीं मिलते, बेरोजगारी एक समस्या है। पाटीदार और यादव समुदाय के मतदाता यहां निर्णायक भूमिका में होते है।

2018 में कांग्रेस के रवि रमेशचंद्र जोशी

2013 में बीजेपी के बालकृष्ण पाटीदार

2008 में बीजेपी के बालकृष्ण पाटीदार

2003 में बीजेपी के बाबू लाल महाजन

1998 में कांग्रेस से पाराश्रम बाबूलाल

1993 में कांग्रेस से पाराश्रम बाबूलाल

1990 में बीजेपी से राय सिंह राठौर

1985 में कांग्रेस से करूणा दांगी

1980 में कांग्रेस से चंद्र कांत

1977 में जेएनपी से नवनीत महाजन

1972 में कांग्रेस से चंद्रकात

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