पंजाब चुनाव में भईया के वोट क्यों हैं अहम? यूपी बिहार के भईया पंजाब की इन सीटों पर रखते हैं दबदबा

भईया पड़ेंगे भारी! पंजाब चुनाव में भईया के वोट क्यों हैं अहम? यूपी बिहार के भईया पंजाब की इन सीटों पर रखते हैं दबदबा

Bhaskar Hindi
Update: 2022-02-19 11:01 GMT
पंजाब चुनाव में भईया के वोट क्यों हैं अहम? यूपी बिहार के भईया पंजाब की इन सीटों पर रखते हैं दबदबा

डिजिटल डेस्क, चंडीगढ़। पंजाब विधानसभा चुनाव की वोटिंग 20 फरवरी को होगी। सभी राजनीतिक दल सत्ता में वापसी के लिए पूरी ताकत के साथ चुनाव प्रचार किए हैं। इस दौरान सभी दल एक-दूसरे के ऊपर आरोप-प्रत्यारोप करते रहे। पिछले दिनों पंजाब चुनाव प्रचार करने के दौरान ही मुख्यमंत्री चरण जीत सिंह चन्नी की जुबान फिसल गई और विपक्षी पार्टियों ने हंगामा करना शुरू कर दिया था। चन्नी ने कहा था कि यूपी, बिहार और दिल्ली के भइयों को यहां पर राज नही करने देना है। चन्नी के इस बयान के बाद विपक्ष को मुद्दा मिल गया फिर विपक्ष कहां पीछे हटने वाला।

चन्नी के इस बयान को लेकर विपक्ष हमलावर रहा। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चन्नी पर निशाना साधा और कहा कि यहां के लोगों ने अपने खून और पसीने से पंजाब को बेहतर बनाया है और बदले में उन्हें कुछ नहीं मिला है।  किसी को इस तरह की बयानबाजी से बचना चाहिए। इसके बाद देश के प्रधानमंत्री समेत दूसरे दलों के नेता ने भी चन्नी के इस बयान की निंदा की और भइयों के ताकत का एहसास कराया। इसके बाद राजनीतिक रूप से घिरता देख चन्नी ने एक वीडियो संदेश जारी कर बताया कि उन्होंने प्रवासियों के लिए कुछ नहीं कहा बल्कि केजरीवाल और संजय सिंह जैसे लोगों के लिए ऐसी बात कही थी।

जानें भईया के बारे में

सीएम चरण जीत सिंह चन्नी के भईया वाले बयान के बाद सियासत में हंगामा शुरू होने के बाद भईया को लोगों के मन में सवाल खड़ा हुआ कि आखिर में पंजाब में यूपी व बिहार के लोगों को भईया क्यों कहा जाता है? इस लोगों का कहना है कि 1960 के दरमियान हरित क्रांति के बाद से ही बिहार और यूपी से बड़ी संख्या में प्रवासी रोजगार के लिए पंजाब जाते हैं।

वहां पर पंजाब की कृषि, इंडस्ट्री और सर्विस को आगे बढ़ाने में प्रवासियों ने काफी मेहनत किया और अहम भूमिका निभाई। उस दौरान कहा जाता है कि पूर्वांचल के लोग आपस में बात करते वक्त एक-दूसरे को भईया कहकर बुलाते थे। इसीलिए पंजाब के लोग वहां पर यूपी व बिहार के लोगों को भईया कहकर पुकारते हैं। धीरे-धीरे ये शब्द पंजाब में प्रवासी मजदूरों की पहचान बन गई।

पंजाब का विकास भईया बिना अधूरा

सीएम चन्नी जिन यूपी व बिहार के लोगों को भईया कहकर पुकार रहे थे। उनकी पंजाब में कमी के कारण वहां की अर्थव्यवस्था घुटनों के बल आ गई थी। इन प्रवासियों के बिना पंजाब का विकास अधूरा माना जाता है। जिसकी हकीकत लॉकडाउन के दौरान पता चली।

पंजाब में लॉकडाउन के दौरान करीब 18 लाख प्रवासी मजदूरों ने घर लौटने के लिए पंजाब सरकार की वेबसाइट पर आवेदन किया था। इनमें से 10 लाख प्रवासी केवल यूपी से ही थे जबकि 6 लाख बिहार जाने वाले थे। भईया लोग पंजाब की अर्थव्यवस्था में सेवा सेक्टर, इंडस्ट्री और कृषि महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कोरोना काल में भईया लोगों के पंजाब छोड़ने के बाद इन  तीनों सेक्टर पर बुरा प्रभाव पड़ा। 

चुनाव में रहता है दबदबा

पंजाब विधानसभा चुनान में प्रवासी मजदूरों का दबदबा कायम रहता है। एक तरफ पंजाब के विकास में अपना अहम योगदान देते हैं तो दूसरी तरफ पार्टियों को सत्ता में पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाते हैं। गौरतलब है कि लुधियाना की पांच सीटों लुधियाना पूर्व, लुधियाना उत्तर, लुधियाना दक्षिण, लुधियाना पश्चिम और  साहनेवाल में प्रवासी मतदाताओं की काफी आबादी है।

पंजाब में 50,000 से ज्यादा प्रवासी मतदाता साहनेवाल में रहते हैं। बठिंडा, फतेहगढ़ साहिब, फगवाड़ा, जालंधर,  होशियारपुर, अमृतसर इलाकों में भी इनका असर है, लेकिन सबसे ज्यादा असर लुधियाना में ही है। इन्हीं वजहों के कारण पंजाब में चुनाव के दौरान प्रचार के लिए भोजपुरी स्टार, बिहार और UP के नेता भी आते हैं। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पंजाब में भईया का चुनावों अपना दबदबा रहता है। 

पंजाब में अर्थव्यस्था को मजबूती देने वाले भईया को क्या मिलता?

पंजाब के विकास में अपना अहम योगदान देने वाले भईया पर पंजाब यूनिवर्सिटी पटियाला के कुछ प्रोफेसर्स ने एक शोध किया। जिसमें पंजाब के करीब 1567 मजदूरों को शामिल किया था। जिसके जरिए इन मजदूरों के पंजाब में रहन-सहन तथा उनकी आमदनी की जानकारी हासिल की गई थी। शोध में पाया गया कि पंजाब में दिन-रात परिश्रम करने वाले 58 फीसदी से ज्यादा प्रवासियों की आमदनी 8 हजार रूपए से भी कम है।

ईपीएफ के तहत भविष्य निधि में केवल 5.55 फीसदी प्रवासी मजदूरों का पैसा जमा होता है। केवल 18.39 फीसदी प्रवासी कामगारों को सप्ताह में एक दिन की छुट्टी मिल पाती है। रिसर्च में ये भी दावा किया है कि प्रवासी मजदूरों को 14 फीसदी ही साफ पीने का पानी मिलता है। 

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