पश्चिम बंगाल : बालीगंज उपचुनाव पर सबकी निगाहें, मतदाता फैसला करने को तैयार
पश्चिम बंगाल पश्चिम बंगाल : बालीगंज उपचुनाव पर सबकी निगाहें, मतदाता फैसला करने को तैयार
- उपचुनाव में विजेता के लिए लड़ाई
डिजिटल डेस्क, कोलकाता। पश्चिम बंगाल के बालीगंज विधानसभा क्षेत्र के मतदाता मंगलवार को होने वाले उपचुनाव में विजेता तय करने के लिए तैयार हैं। इस क्षेत्र में अब लाउडस्पीकर नहीं बज रहे हैं, क्योंकि प्रचार का दौर थम चुका है। हालांकि सड़कों पर रंगारंग जुलूस सोमवार को भी निकाले गए।
सट्टेबाजों ने तृणमूल कांग्रेस पर अपना दांव लगाया है। लेकिन राजनीतिक पर्यवेक्षक इस अनुमान को खतरे में डालने से इनकार करते हैं कि सत्ताधारी पार्टी का क्लीन स्वीप होगा या कड़ी लड़ाई होगी। इस विधानसभा क्षेत्र को रिकॉर्ड मतों से जीतने का रिकॉर्ड रखने वाले दिवंगत सुब्रत मुखर्जी की जगह तृणमूल के बाबुल सुप्रियो भर पाएंगे या नहीं, इस पर अटकलें लगाई जा रही हैं, वहीं वाम मोर्चे पर भी लोगों की नजर है। लोगों में खासकर माकपा की उम्मीदवार सायरा शाह हलीम को लेकर उत्सुकता है।
कुछ लोगों का कहना है कि सायरा सिर्फ डार्क हॉर्स बनकर उभर सकती हैं। दरअसल, उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं है। 2021 में उनके पति फुआद हलीम माकपा के लिए मुश्किल से 5.61 प्रतिशत वोट हासिल करने में सफल रहे थे। लेकिन उस समय फुआद सुब्रत मुखर्जी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे, जिन्हें 70.60 फीसदी वोट मिले थे। 2021 में माकपा के लिए जो सबसे अधिक परेशान करने वाला था, वह अकेले वोट शेयर नहीं था, बल्कि यह कि पार्टी तीसरे स्थान पर चली गई और दूसरे स्थान पर भाजपा रही थी।
केंद्र की भाजपा सरकार की अल्पसंख्यक विरोधी और सांप्रदायिक राजनीति के खिलाफ मुखर कार्यकर्ता सायरा भले ही पार्टी के वोट शेयर को बढ़ाकर दूसरे स्थान पर ले जाएं, लेकिन वह बंगाल के राजनीतिक नक्शे पर अपनी छाप छोड़ेंगी। लेकिन ऐसी कौन सी चीजें हैं, जो सायरा के पक्ष में काम कर सकती हैं? सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि बाबुल सुप्रियो सुब्रत मुखर्जी नहीं हैं और उन्हें टिकट मिलने को लेकर स्थानीय तृणमूल नेताओं में काफी असंतोष है।
निर्वाचन क्षेत्र के अल्पसंख्यक मतदाता यह भी नहीं भूल सकते कि सुप्रियो बहुत पहले भाजपा के सांसद थे। अगर भाजपा 20-21 फीसदी के अपने वोट शेयर को बनाए रखने में सफल हो जाती है और कांग्रेस को 17-18 फीसदी मिल जाती है, तो यह एक बड़ी लड़ाई मानी जाएगी। एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, बोगतुई की घटना और कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा सीबीआई जांच का आदेश निश्चित रूप से मतदाताओं के दिमाग में रहेगा। सायरा की पृष्ठभूमि शिक्षित मध्यम वर्ग को भी आकर्षित करेगी।
सायरा लेफ्टिनेंट जनरल जमीर उद्दीन शाह की बेटी हैं, जो डिप्टी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ के रूप में सेवानिवृत्त हुए और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति बने। सायरा अभिनेता नसीरुद्दीन शाह की भतीजी भी हैं। नसीरुद्दीन और उनकी पत्नी रत्ना पाठक शाह दोनों ने बालीगंज में प्रचार के दौरान वीडियो संदेशों के माध्यम से मतदाताओं से सायरा का समर्थन करने का आग्रह किया है।
मध्यम आयु वर्ग के अधिकांश बंगालियों के दिलों में अभिनेता का एक विशेष स्थान है। सायरा के पिता, जिन्होंने कई वर्षो तक कोलकाता में बंगाल क्षेत्र के जनरल ऑफिसर कमांडिंग के रूप में सेवा की, मगर वह बेटी के लिए समर्थन मांगने से दूर रहे। उन्होंने सिर्फ ट्वीट किया : सायरा की अपनी उपलब्धियां हैं और वह माता-पिता की बैसाखी का सहारा नहीं लेती हैं। मैं उनके स्वतंत्र रवैये का समर्थन करता हूं। सेवानिवृत्त जनरल ने बाद में सायरा को शुभकामनाएं देने वाले एक ट्वीट के जवाब में लिखा : डेविड बनाम गोलियत एक तरह की प्रतियोगिता। धन्यवाद।
(आईएएनएस)