गहलोत और पायलट को बागी बनाने में प्रदेश के सियासी हालात से ज्यादा गांधी परिवार जिम्मेदार! दोनों के बीच फिर क्यों बढ़ी दूरियां?

राजस्थान का सियासी संकट गहलोत और पायलट को बागी बनाने में प्रदेश के सियासी हालात से ज्यादा गांधी परिवार जिम्मेदार! दोनों के बीच फिर क्यों बढ़ी दूरियां?

Bhaskar Hindi
Update: 2022-09-27 09:52 GMT
गहलोत और पायलट को बागी बनाने में प्रदेश के सियासी हालात से ज्यादा गांधी परिवार जिम्मेदार! दोनों के बीच फिर क्यों बढ़ी दूरियां?
हाईलाइट
  • पार्टी को नए अध्यक्ष की तलाश

डिजिटल डेस्क, जयपुर। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच बनी दूरियों को गांधी परिवार ने और बढ़ा दिया है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी एक तरफ दक्षिण से उत्तर की ओर कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा निकाल रहे हैं। वहीं पार्टी  का नया अध्यक्ष बनने के लिए कांग्रेस ने चुनावी अधिसूचना जारी कर दी। एक तरफ राहुल भारत जोड़ो की बात कर रहे वहीं पार्टी के भीतर खींचतान चल रही है।  गहलोत और पायलट के बीच बनी पुरानी अदावत फिर देखने को मिल रही है। वो भी ऐसे समय में जब पार्टी को एक नए अध्यक्ष की तलाश है। 

राजस्थान में जैसे तैसे दो साल पहले पायलट और गहलोत के बीच मनमुटाव हुआ था। प्रियंका गांधी ने पायलट को भरोसे में लेकर गहलोत सरकार का समर्थन करवाया जिससे राजस्थान का सियासी संकट खत्म हुआ था। लेकिन ये सियासी बखेड़ा कांग्रेस अध्यक्ष बनने के चक्कर में फिर खड़ा हो गया। जिससे राजस्थान में कांग्रेस सरकार पर संकट मंडराने लगा है।

कांग्रेस आलाकमान की सोच थी कि गहलोत को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष की कमान सौंप दी जाए, और राजस्थान का सीएम सचिन पायलट को बना दिया जाए, लेकिन गहलोत चाहते थे कि सीएम और अध्यक्ष दोनों पद उनके हाथ में बने रहे। लेकिन पार्टी की एक व्यक्ति एक पद गाइडलाइन ने गहलोत के अरमानों पर पानी फेर दिया। चूंकि गहलोत राजस्थान सीएम की बागडोर अपने हाथों से छोड़ना नहीं चाहते। इसलिए वो अपने किसी नजदीकी को सीएम बनाने के पक्ष में थे। इसके चलते गहलोत पार्टी आलाकमान से ही बगावत कर बैठे। जिसके चलते अब माना जा रहा है कि पार्टी गहलोत से सीएम की कुर्सी भी छीन सकती है। और अध्यक्ष भी नहीं बनाएं जाएंगे। 

फैसले लेने में देरी!

गहलोत और पायलट के बीच बनी दूरीयों के लिए राजनीतिक विश्लेषक कांग्रेस  आला कमान की अनदेखी, दूरदर्शिता की कमी और समय पर निर्णय न लेने की पुरानी आदत को जिम्मेदार ठहरा रहे है। विश्लेषकों का मानना है कि राजस्‍थान में कांग्रेस की जो आज स्थिति पैदा हुई है, उसकी स्क्रिप्ट स्थानीय नेताओं ने नहीं बल्कि  खुद कांग्रेस आलाकमान ने  लिखी है।

मध्यप्रदेश  में ज्योतिरादित्य  सिंधिया और राजस्थान में सचिन पायलट की मेहनत की बदौलत ही कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की। लेकिन आलाकमान ने न तो सिंधिया को सीएम बनाया ना ही पायलट को । जिसके चलते सिंधिया-कमलनाथ, पायलट-गहलोत के बीच दूरियां बनी। जिसका खामियाजा कांग्रेस को मध्यप्रदेश में सत्ता गंवाने के रूप में हुआ। ऐसा ही 2020 में राजस्थान में  गहलोत सरकार के साथ होने से बचा। हालांकि उसे गहलोत की जादूगरी और राजनीति पकड़ के तौर पर देखा गया। कांग्रेस आलाकमान की गलती ये रही कि गहलोत और पायलट के बनी इस दरार का समाधान उन्होंने तीक्ष्ण समय के लिए निकाला। कांग्रेस का शीर्ष आलाकमान आखिरकार गहलोत को अध्यक्ष बनाने पर क्यों तुला है जब उनकी इच्छा ही नहीं है। 

ये हो सकता था विकल्प!

2018 में ही कांग्रेस नेतृत्व  पायलट को डिप्टी सीएम के साथ साथ राष्ट्रीय राजनीति में कोई अहम पद देकर दूरियां ही नहीं बनने देती। जिससे कभी बगावत ही नहीं पनपती। हर मौके पर गांधी परिवार  पार्टी की अंदरूनी खबर रखने में नाकाम रहा है। चाहे तो  2020 में पायलट की बगावत की बात हो या  गहलोत गुट के विधायकों का बागी तेवर दिखाते हुए विद्रोह करने की। 

सीएम नाम पर चर्चा करने के लिए दिल्ली से जयपुर आए पर्यवेक्षकों के सामने गहलोत ने विधायक दल की बैठक ही नहीं होने दी। जिससे नाराज होकर पर्यवेक्षक मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन ने सोनिया गांधी से शिकायत की। गहलोत की इस चालबाजी को सीधे तौर पर आलाकमान के खिलाफ देखा जा रहा है। पार्टी आलाकमान से बागी विधायकों ने मांग की है कि पायलट को  सीएम कैसे बनाया जा सकता है जिसकी वजह से दो साल पहले पार्टी मुसीबत में आ गई थी। बागी विधायकों की मांग है कि संकट के समय में सरकार का साथ देने वाले विधायकों में से ही सीएम बनाया जाए। कुछ विधायकों का कहना है कि नया सीएम अध्यक्ष चुनने के बाद बनाया जाए। वो भी गहलोत समर्थित।

 

 

 

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