ओवैसी के एम वाई बयान से क्या अखिलेश और ओवैसी के बीच हो सकता है गठबंधन
यूपी विधानसभा चुनाव ओवैसी के एम वाई बयान से क्या अखिलेश और ओवैसी के बीच हो सकता है गठबंधन
डिजिटल डेस्क, लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जीत पाने के लिए सभी पार्टियों की नजर हर धर्म और जातियों के वोट बैंक पर है। हैदराबाद और बिहार समेत कुछ राज्यों में अपनी धमक दिखा चुके ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन चीफ असदुद्दीन ओवैसी भी इस बार यूपी की धरती पर ताल ठोक रहे हैं। एक के बाद एक धड़ाधड़ चुनावी सभाएं और रैलियां कर रहे ओवैसी का साफ कहना है कि वह बीजेपी और कांग्रेस को छोड़कर किसी भी पार्टी से गठबंधन करने के लिए तैयार हैं। हालांकि, उन्होंने सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर के साथ पहले ही भागीदारी संकल्प मोर्चा बना रखा है। लेकिन राजभर का बीजेपी के साथ गठबंधन भागीदारी संकल्प मोर्चा में दरार पैदा कर सकता है।
चंद्रशेखर को माया ने नकार दिया तो अखिलेश क्यों देंगे ओवैसी को हिस्सा"?
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार अतुल चौरसिया ने अपनी बात स्पष्ट करने के लिए बसपा प्रमुख मायावती और आजाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर आजाद का उदाहरण बताया। वे कहते हैं कि दलितों के लीडर बन चुके चंद्रशेखर को बसपा सुप्रीमो ने सिरे से नकार दिया। पिछले तीन चार दशक में मायावती ने जिस तरह दलितों को अपना वोट बैंक बनाया है, उसे वे चंद्रशेखर के साथ क्यों बांटने के लिए तैयार होंगी? चंद्रशेखर को अपनी जमीन खुद बनानी होगी। इसी तरह ओवैसी का मामला भी है। सपा ने भी इतने सालों में मुस्लिमों के बीच अपनी जो पैठ बनाई है, उसमें वह किसी से हिस्सा नहीं बांटेंगी।"
किसी बाहरी खिलाड़ी के साथ मैदान में नहीं उतरेंगे अखिलेश
एआईएमआईएम से गठबंधन करने पर सपा को क्या फायदा हो सकता है? इस पर वरिष्ठ पत्रकार अतुल चौरसिया कहते हैं- "आखिर अखिलेश यादव ओवैसी की पार्टी से हाथ क्यों मिलाएंगे? इसमें उनको कोई फायदा नहीं है। अखिलेश को जिस वोट वर्ग में अपना एकाधिकार लगता रहा है, उसमें वह एक पार्टनर क्यों जोड़ेंगे? एक बाहरी खिलाड़ी को अपने साथ क्यों खिलाएंगे? जब तक कि ओवैसी यूपी में अपने आपको साबित ना कर दें, तब तक सपा ही नहीं, अन्य पार्टियां भी एआईएमआईएम के साथ गठबंधन नहीं करेंगे। अखिलेश को विश्वास है कि वह अकेले दम पर मुस्लिमों का पूरा वोट हासिल कर सकते हैं तो ऐसी परिस्थिति में मुझे नहीं लगता कि वह ओवैसी को भाव देंगे। इसके बावजूद यह राजनीति है और राजनीति में संभावनाएं कभी खत्म नहीं होती हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में आखिरी दो महीनों के दौरान सपा और कांग्रेस ने कैसे गठबंधन किया था, यह हम सबने देखा है।"
गाजियाबाद की एक सभा में ओवैसी ने इशारों ही इशारों में अखिलेश यादव की तरफ दोस्ती का पासा फेंका है। ओवैसी ने कहा- "यूपी में मुस्लिम-यादव कॉम्बिनेशन से बीजेपी को हराया नहीं जा सकता। बीजेपी को हराने के लिए A से Z कॉम्बिनेशन तैयार करना होगा। अगर अखिलेश यादव सोचेंगे कि 19 प्रतिशत मुसलमान उनको वोट देता रहेगा और वे इन्हीं वोटों पर राजनीति करेंगे तो ऐसा नहीं हो सकता। गौरतलब है कि मुलायम सिंह यादव के जमाने से ही सपा मुस्लिम औऱ यादवों के सहारे वोट हासिल करती आई है। इन दोनों वर्गों को सपा का मजबूत वोटर तबका माना जाता है।
अब यूपी राजनीति में ये चर्चा होने लगी कि क्या अब अखिलेश यादव औऱ एआईएमआईएम क् बीच गठबंधन हो सकता है। इस संबंध में वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस का मानना है कि ओवैसी और अखिलेश यादव का मिलना नदी के दो किनारों के मिलने जैसा है। अखिलेश जिस आधार पर यूपी में अपनी राजनीति कर रहे हैं, उसी आधार पर ओवैसी राजनीति कर रहे है यानी मुस्लिम वर्ग। जब अखिलेश अन्य पिछड़े वर्गों को भी साधने में सफल रहते हैं, तभी उन्हें जीत हासिल होती है। ओवैसी के साथ गठबंधन करने का मतलब है कि अपनी जमीन का हिस्सा उनको देना, जो अखिलेश यादव कभी नहीं चाहेंगे।
गिव एंड टेक फॉर्म्यूले पर होता है गठबंधन
सांसद औवैसी का यह कहना कि अखिलेश सिर्फ मुस्लिम और यादवों के सहारे राजनीति नहीं कर पाएंगे, इसके पीछे क्या वजह है? इस पर सिद्धार्थ कलहंस कहते है कि ओवैसी 2019 लोकसभा चुनाव का उदाहरण सामने रख रहे हों। उस समय सपा ने मुस्लिम और यादव के अलावा दलितों का कॉम्बिनेशन बनाया था पर वह बीजेपी को नहीं हरा पाए थे। यहां तक कि बीजेपी का वोट शेयर 40 प्रतिशत तक पहुंच गया था। ओवैसी का यूपी में कोई संगठन नहीं है और न ही उन्होंने यहां कोई काम किया है। गठबंधन हमेशा गिव एंड टेक फॉर्म्यूले पर किया जाता है यानी दोनों पार्टियों को एक-दूसरे से कुछ फायदा होता हो पर ओवैसी से गठबंधन कर अखिलेश को कोई फायदा नहीं होने वाला है।
क्या आगामी चुनाव में ओवैसी किसी भी बड़ी पार्टी के साथ गठबंधन कर पाने में सफल रहेंगे ? इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस का कहना है- "बिहार में बसपा ने एआईएमआईएम के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था पर यूपी में उसने ओवैसी से किनारा कर लिया है। इसी तरह, तेलंगाना में औवेसी की लड़ाई कांग्रेस से होती है। कांग्रेस और ओवैसी का गठजोड़ होगा नहीं। इसके अलावा बीजेपी के साथ ओवैसी जाएंगे नहीं। ऐसे में ओवैसी अकेले ही चुनावी रण में उतरेंगे।