मायावती का सियासी संकट,बसपा ने जिन्हें ठुकराया, उन्हें दूसरे दलों ने बनाया हीरो, बसपा के बागी नेताओं का अन्य दलों में जाकर ऐसा बढ़ा वर्चस्व
हाशिए पर 'हाथी'! मायावती का सियासी संकट,बसपा ने जिन्हें ठुकराया, उन्हें दूसरे दलों ने बनाया हीरो, बसपा के बागी नेताओं का अन्य दलों में जाकर ऐसा बढ़ा वर्चस्व
- कांग्रेस
- सपा भाजपा में बसपा के पुराने नेता
डिजिटल डेस्क, लखनऊ। उत्तरप्रदेश की राजनीति में बहुजन समाज पार्टी चीफ मायावती की राजनीति भले ही सिमटती जा रही है। लेकिन अन्य दलों में अचानक बसपा छोड़कर आए नेताओं को बहुत तवज्जो मिल रही है। उत्तप्रदेश विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने कुछ खास अच्छा प्रदर्शन नहीं किया। बसपा केवल एक सीट पर जीत दर्ज कर सकी। बीएसपी चीफ मायावती जनता के बीच कम ही दिखाई दीं, वे सिर्फ ट्विटर पर ही एक्टिव नजर आती रहीं।
बसपा नेताओं का जनता से जुड़ाव फीका पड़ता जा रहा है। उसके अलावा बसपा से अधिकतर पुराना नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। कांशीराम के साथ चलने वाले जमीनी जुड़ाव वाले नेताओं को बसपा में मायावती के दबदबे के साथ साथ कम आंका जाने लगा। कईयों को तो बीएसपी से अलग कर दिया। जिन नेताओं से बसपा ने नाता तोड़ लिया, उन्हें अन्य दल कांग्रेस भाजपा और सपा ने न केवल शरण दी थी,बल्कि बड़े बड़े पदों से नवाजा गया। चाहें बात योगी सरकार में शामिल डिप्टी सीएम बृजेश पाठक की हो या हाल ही में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बनें बृजलाल खाबरी और प्रांतीय अध्यक्ष नसीमुद्दीन सिद्दीकी, नकुल दुबे, वीरेंद्र चौधरी और अनिल यादव की। ये कभी बसपा में हुआ करते थे।
ऐसे में ये सवाल उठना लाजिमी है कि बसपा नेताओं को कांग्रेस, सपा और बीजेपी भी हाथों-हाथ क्यों ले रही है? इस सवाल के जवाब में आप पाएंगे कि बसपा के पुराने नेताओं का जनता के बीच जमीनी जुड़ाव था, काशीराम के साथ चलने वाले अधिकतर नेताओं का लोगों के साथ सीधा कनेक्शन था। बीएसपी नेताओं की अपने इलाके के वोटरों पर मजबूत पकड़ हुआ करती थी। यही मुख्य वजह है कि बसपा नेताओं को कांग्रेस, बीजेपी और सपा अधिक महत्व देती जा रही है। और बीएसपी कमजोर होती जा रही है। बीजेपी कांग्रेस और सपा को बसपा के पुराने नेताओं के सहारे उस समाज के वोटरों में पकड़ हो जाती है। कांग्रेस ने बृजलाल खाबरी और प्रांतीय अध्यक्ष नसीमुद्दीन सिद्दीकी, नकुल दुबे, वीरेंद्र चौधरी और अनिल यादव के जरिए दलित-मुस्लिम-ब्राह्मण-कुर्मी-यादव वोटरों पर फोकस किया है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बनें बृजलाल खाबरी कांशीराम के करीबी नेताओं में शुमार थे, वहीं नसीमुद्दीन सिद्दीकी और नकुल दुबे को मायावती का राइटहैंड माना जाता था।
अब सवाल ये है कि आखिरकार बसपा बैकग्राउंड वाले नेताओं का कांग्रेस से लेकर बीजेपी और सपा में दबदबा दिख रहा है। तमाम संगठन बसपा छोड़कर आए नेताओं पर भरोसा जता रहे हैं।
बीजेपी में बसपा नेता
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार में डिप्टी सीएम बृजेश पाठक किसी समय में बहुजन समाज पार्टी के दिग्गज नेता माने जाते थे। बृजेश पाठक मायावती के करीबी नेताओं में शामिल थे। पाठक ने बसपा में एक लंबी राजनीतिक पारी खेली और बसपा के टिकट पर लोकसभा और राज्यसभा के सांसद रह चुके हैं। पाठक ने 2017 के चुनाव से ठीक पहले बसपा छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया।
योगी सरकार में शामिल मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी, जयवीर सिंह, नंद गोपाल नंदी और दिनेश प्रताप सिंह भी बसपा में रह चुके हैं।
कांशीराम के साथ करने वाले बृजलाल खबरी
बृजलाल खबरी बसपा के राष्ट्रीय महासचिव रहे। 1999 में जालौन सीट से बसपा से सांसद बने। राज्यसभा सदस्य भी रहे।कांशीराम के साथ दलित मिशनरी से जुड़े। कम उम्र में ही घर छोड़ दिया।2016 में बीएसपी छोड़कर कांग्रेस दामन थाम लिया। और अब कांग्रेस ने दलित वोटरों को साधने के लिए उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया है।
मायावती के करीबी रहे नसीमुद्दीन- दुबे
बसपा के मुस्लिम चेहरा,मायावती के सबसे करीबी और विश्वास पात्र नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी मायावती सरकार में नंबर दो के नेता माने जाते थे। राष्ट्रीय महासचिव और कोऑर्डिनेटर रहे। 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद बसपा का अलविदा कह दिया और कांग्रेस का दामन थाम लिया।
बसपा के ब्राह्मण चेहरा और मायावती के करीबी नेता नकुल दुबे मायावती सरकार में कैबिनेट मंत्री थे, 2022 के चुनाव के बाद बसपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया।
विधायक वीरेंद्र चौधरी साल 2012 में बसपा छोड़कर कांग्रेस में आए थे।
अनिल यादव 1996 में इटावा के बसपा जिला अध्यक्ष हुआ करते थे।
सपा में फ्रंटलाइनर बने बसपा से आए नेता
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में मंच पर बसपा से आए नेताओं को फ्रंट पर जगह मिली। पहली लाइन में स्वामी प्रसाद मौर्य, लालजी वर्मा, रामअचल राजभर, इंद्रजीत सरोज और दारा सिंह चौहान जैसे नेता देखें गए। ये सभी बसपा के पुराने नेता थे। स्वामी प्रसाद मौर्य, इंद्रजीत सरोज और रामअचल राजभर तीनों बसपा के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं। तीनों को ही कांशीराम-मायावती के करीबी नेताओं में गिना जाता था। लालजी वर्मा सदन में बसपा के नेता रह चुके हैं।
अखिलेश यादव लोहिया और अंबेडकरवादी विचारधारा के मिशन पर काम कर रहे है। सपा दलित और ओबीसी समीकरण पर काम कर रही है।
सियासी तौर पर मायावती भले ही हाशिए पर हों लेकिन उन्हें छोड़कर गए नेताओं का सियासी वर्चस्व बरकरार है। बीजेपी, सपा और कांग्रेस में बसपा के पुराने नेताओं को काफी अहमियत दी जा रही है।