ममता ने निपुणता से तृणमूल में पनपे विद्रोह को शांत किया

पश्चिम बंगाल सियासत ममता ने निपुणता से तृणमूल में पनपे विद्रोह को शांत किया

Bhaskar Hindi
Update: 2022-02-20 12:00 GMT
ममता ने निपुणता से तृणमूल में पनपे विद्रोह को शांत किया

डिजिटल डेस्क, कोलकाता। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शुक्रवार को अभिषेक बनर्जी को पार्टी के अखिल भारतीय महासचिव के रूप में बहाल करते हुए राष्ट्रीय कार्य समिति का गठन किया। ऐसा कर तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ने अपने वफादारों को कार्य समिति के सभी स्तरों में शामिल कर अभिषेक के अधिकारों को सीमित करते हुए न केवल पार्टी में पनप रहे असंतोष को शांत किया बल्कि संगठन पर काफी हद तक अपना नियंत्रण भी स्थापित कर लिया है।

ममता बनर्जी ने पहले सभी पदों को भंग कर दिया था लेकिन अब 20 सदस्यीय कार्य समिति का गठन कर अभिषेक बनर्जी को अखिल भारतीय महासचिव के रूप में बहाल किया है। लेकिन तीन राष्ट्रीय उपाध्यक्षों -सुब्रत बख्शी, चंद्रिमा भट्टाचार्य और यशवंत सिन्हा को शामिल कर उन पर एक तरह से नकेल कस दी है। ये तीनों ममता बनर्जी के करीब माने जाते हैं।

नई कार्य समिति में मुख्यमंत्री के भरोसेमंद सहयोगियों अमित मित्रा, पार्थ चटर्जी, सुदीप बंदोपाध्याय,अनुब्रत मंडल,अरूप विश्वास,फिरहाद हाकिम ,सुखेंदु शेखर रॉय, काकोली घोष दस्तीदार और महुआ मोइत्रा को जगह मिली है। अभिषेक बनर्जी के प्रति निष्ठा रखने वाले सौगत रॉय, डेरेक ओब्रायन और कुणाल घोष जैसे नेताओं को समिति से बाहर कर दिया गया है। फिरहाद हाकिम को पार्टी अध्यक्ष के साथ समन्वय स्थापित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मत है कि सावधानीपूर्वक तरीके से बनाई गई यह कार्यसमिति निकट भविष्य में किसी भी प्रकार के विद्रोह को दबाने का एक प्रयास है। राजनीतिक विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती ने कहामुख्यमंत्री के अलावा पार्टी में कोई वन-मैन शो नहीं होगा और सभी पद पूरी तरह संतुलित हैं। सबसे दिलचस्प बात यह है कि फिरहाद हाकिम की नई जिम्मेदारी पार्टी के भीतर वर्तमान संकट की उपज है और भविष्य में इस तरह के संकट से बचने के लिए एक पहल है।

वर्ष 1997 में तृणमूल कांग्रेस की स्थापना के बाद से यह पहली बार नहीं है कि ममता बनर्जी को पार्टी के भीतर विद्रोह का सामना करना पड़ा है और ज्यादातर मामलों में यह विरोधी उनके करीबी सहयोगी ही रहे हैं। इस मामले में चाहे मुकुल रॉय ,सुवेंदु अधिकारी, सुदीप बंद्योपाध्याय या सुब्रत मुखर्जी हो, ममता बनर्जी ने बहुत ही निपुणता के साथ उनके विरोधी स्वरों को कुंद कर दिया है। पार्टी बनाने के बाद ममता को सबसे पहले अजीत पांजा की चुनौती का सामना करना पड़ा जो सबसे कद्दावर नेताओं में थे और पार्टी के संस्थापक सदस्य भी थे। पांजा का बनर्जी से तब मतभेद हो गया जब ममता ने 2001 में तहलका कांड को लेकर राजग को छोड़ने का फैसला किया।

बनर्जी के खिलाफ पांजा ने विद्रोही रूख अपनाया था और उन्हें पागल तक कह दिया था । इसके बाद तृणमूल सुप्रीमो ने उन्हें अप्रैल 2001 में पार्टी की नीति निमाण वाली संस्था के अध्यक्ष सहित सभी पदों से हटा दिया और जुलाई में उन्हें निलंबित कर दिया। वर्ष 2004 में उन्हें पार्टी में वापस ले लिया गया और पांजा ने कलकत्ता उत्तर पूर्व सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। वर्ष 2008 में पांजा का निधन हो गया था।

पंकज बनर्जी -ममता बनर्जी के सबसे भरोसेमंद सहयोगियों में से एक माने जाते थे और ममता ने 1 जनवरी, 1998 को औपचारिक रूप से पार्टी के गठन के बाद उन्हें अध्यक्ष बनाया था। वह भी पार्टी से बाहर हो गए थे और उसी साल जून में कांग्रेस में चले गए। इसके बाद वापिस आने पर ममता ने उन्हें फिर से पार्टी की नीति निर्माता संस्था का अध्यक्ष बनाया और 2001 के विधानसभा चुनाव के बाद उन्हें राज्य विधानसभा में विपक्ष का नेता बनाया। पंकज बनर्जी और ममता बनर्जी के बीच 2006 में फिर से मतभेद हुए और इसके बाद पंकज ने पूरी तरह से राजनीति से संन्यास ले लिया।

पार्टी के गठन के समय तृणमल में शामिल होने वाले चार कांग्रेसी विधायकों में से एक,सुदीप बंद्योपाध्याय 1999 से लोकसभा में पार्टी के मुख्य सचेतक थे और पार्टी वर्ष 2003 में पार्टी फिर से राजग में शामिल हो गई। ममता को इस तरह की सूचना मिलने के बाद कि भाजपा उन्हें कैबिनेट मंत्री और सुदीप को कनिष्ठ मंत्री के रूप में शामिल करने की योजना बना रही है पार्टी में फिर समस्याएं उभरनी शुरू हो गई थी।

सुदीप बंद्योपाध्याय के साथ ममता का मतभेद हो गया क्योंकि उनके तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी के साथ अच्छे संबंध थे। ममता ने सोचा था कि हर चीज के पीछे सुदीप का हाथ है और आडवाणी पार्टी के आंतरिक मामलों में दखल दे रहे हैं और उनसे सलाह किए बिना फैसले ले रहे हैं। ममता ने अपने पद को स्वीकार करने से इनकार करते हुए बंद्योपाध्याय को पार्टी से निष्कासित कर दिया था।

बंद्योपाध्याय ने वर्ष 2006 में,कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीता। हालांकि, वर्ष 2008 में ममता ने उन्हें वापस पार्टी में लिया और 2009 में उन्हें लोकसभा चुनाव का टिकट दिया। वह संसद में 2011 से पार्टी नेता के रूप में काम कर रहे हैं। इसके अलावा वर्ष 2014 में ममता ने नैना बंद्योपाध्याय को विधानसभा उपचुनाव का टिकट भी दिया था जो इस समय विधायक बनी हुई हैं।

उनकी पार्टी के एक अन्य संस्थापक सदस्य, मुकुल रॉय 1997 के बाद से शायद उनके सबसे करीबी थे। उन्हें सत्ता में आने से पहले और 2011 के बाद भी पार्टी में नंबर दो के रूप में जाना जाता था। हालांकि अभिषेक बनर्जी के बढ़ते राजनीतिक कद के कारण मुकुल ने उन्हें अपनी संगठनात्मक शक्ति के लिए खतरा माना और इसी के चलते 2017 में ममता और रॉय के बीच अनबन चरम पर पहुंच गई और उन्हें 2017 में बाहर कर दिया गया। इसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए लेकिन वर्ष 2021 के विधानसभा चुनावों के बाद फिर से उनकी घर वापसी हुई।

ये केवल कुछ सबसे प्रमुख नेता हैं, लेकिन कई और भी हैं जो पार्टी से अलग हो गए थे। दिलचस्प बात यह है कि उनमें से ज्यादातर पार्टी में लौट आए हैं और ममता बनर्जी ने उन्हें कभी नहीं छोड़ा, चाहे वह राजीव बनर्जी हों या सब्यसाची दत्ता हो। ये वह नेता हैं जिन्होंने कभी पार्टी की सेवा की थी लेकिन कुछ मतभेदों के कारण इसे छोड़ दिया था। मगर जब उन्होंने वापस आने का फैसला किया तो उन्हें हमेशा सम्मान का स्थान मिला। लोकसभा के 2019 के चुनावों में पार्टी के कमतर प्रदर्शन के मद्देनजर तृणमूल के साथ काम करने के लिए राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर को लाने के बाद, अभिषेक को पार्टी की 2021 की जीत के सफल नीतिकारों में से एक माना जाता था और पार्टी प्रमुख ने शायद सोचा था कि यह उत्तराधिकार प्रक्रिया शुरू करने का सही समय है।

पिछले एक महीने में हुई घटनाओं ने हालांकि उनके संबंधों में खटास का संकेत दिया, जिसकी परिणति अभिषेक के रूख से हुई कि वह पद छोड़ सकते हैं। ममता बनर्जी ने इसे ब्लैकमेल करने की चाल के रूप में लिया है लेकिन इतिहास इस बात का गवाह है कि उन्होंने कभी भी ब्लैकमेलिंग को हल्के में नहीं लिया। ममता बनर्जी के मंत्रिमंडलीय सहयोगी एक मंत्री ने कहा पिछले हफ्ते सभी पदों को भंग करके ममता बनर्जी ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अभी भी पार्टी में सर्वोच्च हैं। उन्होंने अभिषेक को अखिल भारतीय महासचिव के रूप में बहाल कर एक स्पष्ट संदेश दिया कि उन्होंने उन्हें माफ कर दिया है, लेकिन अभिषेक को उनकी वरिष्ठता को स्वीकार करना होगा।

(आईएएनएस)

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