पांच साल पहले कांग्रेस ने भी काशी से किया था चुनावी आगाज, ये हुआ अंजाम
काशी में मोदी पांच साल पहले कांग्रेस ने भी काशी से किया था चुनावी आगाज, ये हुआ अंजाम
डिजिटल डेस्क, लखनऊ। यूपी के तख्तोताज तक पहुंचने का रास्ता पहले कभी अयोध्या से होकर गुजरता था। पर अब वहां सब कुछ ठीक है। राम लला के मंदिर बनने का रास्ता साफ हो चुका है। गोया ये कि अब मुद्दा अयोध्या नहीं है। तो हिंदुतत्व का मुद्दा क्या अब खत्म हो गया है। नहीं, अभी नहीं हुआ है। क्योंकि अयोध्या काशी जारी है मथुरा अभी बाकी है। यानि, जब हिंदुतत्व का मुद्दा उठाना होगा। वोटों के ध्रुवीकरण की जरूरत होगी मथुरा का मुद्दा काम आएगा। फिलहाल तो पूरी सियासत का फोकस काशी पर है। जहां बीते 24 घंटे से पीएम नरेंद्र मोदी की मौजूदगी दर्ज है। वो गंगा में डुबकी लगाते हैं। फूल बरसाते हैं। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनाने वाले विश्वकर्माओं का सम्मान करते हैं। उनके साथ भोजन करते हैं। और रात होते ही काशी के स्टेशन पर घूमने निकल पड़ते हैं। इस एक दिन ने यूपी को योगी आदित्यनाथ से छीन लिया है। ये साफ हो गया सा लगता है कि जैसे जैसे चुनाव नजदीक आएंगे वैसे वैसे सारे मुद्दे पीछे होते जाएंगे हिंदुतत्व, काशी और गंगा पुत्र मोदी के बीच में ये चुनाव सिमटता हुआ सा नजर आने लगा है।
अयोध्या में बनी बाबरी मस्जिद और कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा की तरह काशी में मस्जिद का कोई मुद्दा नहीं है। इसके बावजूद ये फिलहाल सियासत और हिंदुतत्व दोनों के केंद्र में है। ऐसा आज से नहीं है। काशी की कायापलट और महिमामंडन जो आज नजर आता है। काशी मोदीमय नजर आती है या मोदी काशीमय नजर आते हैं। ये नजारा शायद पांच साल पहले भी नजर आता। हो सकता है उस वक्त पीएम मोदी की जगह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी होतीं। जिस तरह काशी पर सियासत का रंग आज चढ़ा है उस वक्त भी काशी की गंगा पर सियासी धारा प्रवाहित होती नजर आतीं। क्योंकि, पांच साल पहले खुद सोनिया गांधी ने काशी को चुना था। यूपी का संग्राम शुरू करने से पहले वो काशी पहुंची भी थीं। उनके रोड शो और रैलियों की तस्वीरें गवाह हैं कि काशी को कांग्रेस के रंग से रंगने की पूरी तैयारी थी। फर्क सिर्फ इतना था कि काशी पहुंच कर मोदी महादेव के रंग से सराबोर है। औरंगजेब के बहाने शिवाजी, राजा सुहेलदेव की बात कर रहे हैं। जबकि सोनिया गांधी उस वक्त राजनीतिक रैलियों के जरिए कांग्रेस की जड़े मजबूत करने चली थीं। कार्यक्रम में काशी विश्वनाथ के दर्शन भी शामिल थे। लेकिन अचानक तबियत नासाज हो गई। सोनिया गांधी को कार्यक्रम रद्द करके वापस लौटना पड़ा। पर सवाल ये है कि सोनिया अगर दर्शन करने जा भी पातीं तो क्या मोदी की तरह वो हिंदुतत्व का केंद्र बन पातीं। और अगर ऐसा कर पातीं तो क्या कांग्रेस यूपी में कुछ ज्यादा बेहतर स्थिति में होती।