बघेल को चुनौती देकर छत्तीसगढ़ की सत्ता में वापसी भाजपा के लिए बड़ी चुनौती
रायपुर बघेल को चुनौती देकर छत्तीसगढ़ की सत्ता में वापसी भाजपा के लिए बड़ी चुनौती
डिजिटल डेस्क, रायपुर। आने वाले समय में जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं, उनमें से भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती अगर किसी राज्य में सत्ता में वापसी की है तो वह है छत्तीसगढ़। यहां भाजपा की चुनौती न केवल कांग्रेस को मात देने की है, बल्कि अपने कमजोर संगठन को मजबूत करने की भी है।
राज्य में भाजपा डेढ़ दशक तक सत्ता में रही, मगर वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में उसे कांग्रेस के हाथों बुरी तरह पराजय मिली। 90 विधायकों वाली विधानसभा में भाजपा सिर्फ 15 स्थानों पर ही जीत हासिल कर पाई थी। इस समय विधानसभा की स्थिति पर नजर दौड़ाई तो 90 में से कांग्रेस के पास 70 हैं और भाजपा के पास महज 14 स्थान है। यह आंकड़ा ही राज्य में भाजपा की स्थिति का ब्यौरा देता है।
भाजपा भी राज्य में अपनी स्थिति को बेहतर तरीके से समझ रही है, यही कारण है कि उसने अजय जमवाल को क्षेत्रीय संगठन मंत्री के तौर पर तैनात किया है, उनके पास छत्तीसगढ़ के साथ मध्य प्रदेश की भी जिम्मेदारी है, मगर उनका मुख्यालय रायपुर रहेगा। इसके साथ ही बीजेपी ने राज्य के अध्यक्ष की जिम्मेदारी अरुण साव को सौंपी है।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि राज्य में पार्टी के तेवर आक्रामक नहीं है और आंदोलन से लेकर सरकार के खिलाफ अभियान चलाने में भी रुचि लेने वालों की संख्या कम है। इसका नतीजा है कि संगठन मजबूत नहीं हो पा रहा है। अब प्रदेशाध्यक्ष में बदलाव हुआ है और क्षेत्रीय संगठन मंत्री की नियुक्ति हुई, जिससे उम्मीद की जा सकती है कि हालात बदलेंगे। साथ ही प्रदेशाध्यक्ष पद पर साव की नियुक्ति कर भाजपा ने कांग्रेस के हावी होते छत्तीसगढ़ियावाद का जवाब देने की कोशिश की है।
दूसरी तरफ देखें तो राज्य में भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद हर व्यक्ति के मन में छत्तीसगढ़ी अस्मिता जगाने की कोशिश हुई है, इसके अलावा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के कदम उठाए गए हैं। परिणामस्वरूप सरकार की सकारात्मक छवि बनी है।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि राज्य में भाजपा लगातार कमजोर हो रही है तो दूसरी ओर कांग्रेस अपनी योजनाओं और जनता के बीच उपस्थिति दर्ज कराने के कारण मजबूत हो रही है। आगामी चुनाव इसीलिए भाजपा के लिए बहुत आसान नहीं है, हां अगर संगठन ने आक्रामक तेवर अपनाए और सरकार की कमियां उजागर करने में सफल हुई तो हो सकता है लाभ मिल जाए।
(आईएएनएस)
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