Ajit Jogi: 1985 में राजीव गांधी के कहने पर राजनीति में आए थे जोगी, जानें कलेक्टर से मुख्यमंत्री बनने तक का सफर
Ajit Jogi: 1985 में राजीव गांधी के कहने पर राजनीति में आए थे जोगी, जानें कलेक्टर से मुख्यमंत्री बनने तक का सफर
डिजिटल डेस्क, रायपुर। मध्यप्रदेश से अलग होने के बाद छत्तीसगढ़ की राजनीति जिस आदमी के इर्द-गिर्द घूमती है। उसने आज इस दुनिया को अलविदा कह दिया। राज्य के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी का आज (शुक्रवार) निधन हो गया। वे 74 साल के थे। 20 दिन में तीसरी बार दिल का दौरा पड़ने के बाद उनकी हालत गंभीर हो गई थी। डॉक्टरों ने 45 मिनट तक कोशिशें कीं, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका। जोगी ने 3.30 बजे आखिरी सांस ली। उनके निधन की जानकारी बेटे अमित जोगी ने ट्वीट कर दी। जोगी का अंतिम संस्कार शनिवार को उनके जन्मस्थान गोरैला में होगा। अजीत जोगी अकेले ऐसे नेता थे जो आदिवासी क्षेत्र से होने के बावजूद कलेक्टर बने और इसके बाद उन्होंने मुख्यमंत्री तक का सफर तय किया।
बीई मैकेनिकल में गोल्ड मेडलिस्ट हासिल किया और 12 साल कलेक्टर रहे
अजीत जोगी का पूरा नाम अजीत प्रमोद कुमार जोगी था। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के पेंड्रा में 29 अप्रैल 1946 को उनका जन्म हुआ। उन दिनों वे नंगे पैर स्कूल जाया करते थे। उनके पिता ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था। वे बीई मैकेनिकल में गोल्ड मेडलिस्ट रहे। फिर रायपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज में वे 1967-68 में लेक्चरर रहे। बाद में वे आईएएस बने। 1974 से 1986 तकरीबन 12 साल तक सीधी, शहडोल, रायपुर और इंदौर में कलेक्टर रहे।इसी दौरान वह तत्कालीन प्रधाननमंत्री राजीव गांधी के संपर्क में आए थे। यहीं से उनका राजनीतिक करियर शुरू हुआ।
डीएम और सीएम बनने का सौभाग्य केवल मुझे ही मिला
जोगी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से बहुत प्रभावित थे और पत्रकारों व अपने नजदीकी मित्रों के बीच अक्सर एक किस्सा दोहराते थे। उनकी इस पसंदीदा कहानी के अनुसार अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के प्रोबेशनर अधिकारी के तौर पर जब उनका बैच तत्कालीन प्रधानमंत्री से मिला तो एक सवाल के जवाब में इंदिरा गांधी ने कहा था कि भारत में वास्तविक सत्ता 3 लोगों के हाथ में है- डीएम, सीएम और पीएम।युवा जोगी ने तब से यह बात गांठ बांधकर रख ली। जब वह मुख्यमंत्री बने तो एक बार आपसी बातचीत में उन्होंने टिप्पणी की कि हमारे यहां (भारत में) सीएम और पीएम तो कुछ लोग (एच डी देवेगौड़ा, पी वी नरसिम्हा राव, वी पी सिंह और उनके पहले मोरारजी देसाई) बन चुके हैं, लेकिन डीएम और सीएम बनने का सौभाग्य केवल मुझे ही मिला है।
1986 में राजनीति में हुई एंट्री
कहा जाता है कि रायपुर का कलेक्टर रहते हुए अजीत जोगी ने पूर्व प्रधानमंत्री और पायलट रहे राजीव गांधी से उनके जो रिश्ते बने, वही उन्हें राजनीति में लाने में मददगार बने। 1986 में कांग्रेस को मध्यप्रदेश से ऐसे शख्स की जरूरत थी जो आदिवासी या दलित समुदाय से आता हो और जिसे राज्यसभा सांसद बनाया जा सके। बताया जाता है कि मध्य प्रदेश के तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दिग्विजय सिंह अजीत जोगी को राजीव गांधी के पास लेकर गए तो उन्होंने फौरन उन्हें पहचान लिया और यही से उनकी सियासी दुनिया में एंट्री हुई।
3 साल तक छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री के रूप में रहे
अजीत जोगी का राजनीतिक सिक्का ऐसा चमका कि वह कांग्रेस से 1986 से 1998 तक राज्यसभा के सदस्य रहे। इस दौरान वह कांग्रेस में अलग-अलग पद पर कार्यकरत रहे, वहीं 1998 में रायगढ़ से लोकसभा सांसद भी चुने गए। साल 2000 में जब छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ, तो उस क्षेत्र में कांग्रेस को बहुमत था। कांग्रेस ने बिना देरी के अजीत जोगी को ही राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया। जोगी 2003 तक राज्य में बतौर पहले मुख्यमंत्री रहे।
2004 में हुए थे हादसे का शिकार
वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान वह एक दुर्घटना के शिकार हुए, जिससे उनके कमर के नीचे के हिस्से ने काम करना बंद कर दिया। उनके राजनीतिक विरोधी यह मान बैठे कि अब वे ज्यादा दिनों के मेहमान नहीं हैं, लेकिन इतने बरसों तक वह राजनीति में सक्रिय बने रहे। अपनी शारीरिक कमजोरी के बावजूद राजनीतिक रूप से सक्रिय रहे।
2016 में कांग्रेस से बगावत कर बनाई अलग पार्टी
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सत्ता से बाहर आने के बाद अजीत जोगी का स्वास्थ्य उनका साथ छोड़ने लगा। धीरे-धीरे वे सक्रिय राजनीति से दूर होने लगे, लेकिन राज्य में पार्टी की नब्ज को पकड़े रखा। जोगी की तमाम कोशिशों के बावजूद उनके नेतृत्व में सूबे में कांग्रेस की वापसी नहीं हो पाई। बाद में वे पार्टी से बगावती तेवर अपनाते रहे और अंत में उन्होंने अपनी अलग राह चुन ली। जोगी ने 2016 में कांग्रेस से बगावत कर अपनी अलग पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के नाम से अलग पार्टी बनाई। जबकि एक दौर में वो राज्य में कांग्रेस का चेहरा हुआ करते थे। 2018 में उन्होंने कांग्रेस से दो-दो हाथ करने के लिए बसपा के साथ गठबंधन किया। लेकिन, उन्हें सियासी कामयाबी नहीं मिली और सपने के सौदागर का सपना, सपना ही रह गया।
दिग्विजय सिंह से हुआ था मतभेद
अजीत जोगी ने एक बार दिग्विजय के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया था। 1993 में दिग्विजय सिंह के सीएम बनने का नंबर आया तो जोगी ने भी अपनी दावेदारी पेश कर दी। उनकी दावेदारी चली नहीं, लेकिन अजीत जोगी ने दिग्विजय सिंह से दुश्मनी जरूर मोल ले ली। साल 1999 में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी तो छोटे राज्यों की मांग तेज हो गई। इसके बाद 2000 में देश में छत्तीसगढ़ समेत तीन नए राज्य बने। तब जोगी को विधायक दल का नेता बनाने के लिए दिग्विजय सिंह ने भरपूर समर्थन दिया। 31 अक्टूबर 2000 को अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री बन गए।
जाति का विवाद
भाषण देने की कला में माहिर माने जाने वाले अजीत जोगी अपनी जाति को लेकर भी विवादों में रहे। कुछ लोगों ने दावा किया कि अजीत जोगी अनुसूचित जनजाति से नहीं हैं। मामला अनुसूचित जनजाति आयोग से होते हुए हाईकोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। लेकिन, अजीत जोगी कहते रहे हैं कि हाईकोर्ट ने दो बार उनके पक्ष में फैसला दिया है। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने इसकी जांच करने की बात कही। यह जांच छत्तीसगढ़ सरकार के पास है।