मेरा भारत: भाजपा और संघ की प्राथमिकता है 'भारत'
- आजादी का अमृतकाल
- गुलामी की मानिसकता और गुलामी से जुड़े हर प्रतीक से आजादी
- भारत के संविधान से 'इंडिया' शब्द को भी हटाने की तैयारी में सरकार
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आजादी के अमृतकाल में गुलामी की मानिसकता और गुलामी से जुड़े हर प्रतीक से देश और देशवासियों को एक-एक करके मुक्ति दिलाने के मिशन में जुटी मोदी सरकार आने वाले दिनों में भारत के संविधान से 'इंडिया' शब्द को भी हटाने की तैयारी में जुट गई है। इस खबर के सामने आते ही देश की राजनीति में एक नया विवाद खड़ा हो गया है।
कांग्रेस समेत समूचे विपक्ष ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाना शुरू कर दिया कि सरकार उनके गठबंधन के नाम 'इंडिया' से डर गई है और साथ ही यह आरोप भी लगाया गया कि सरकार संविधान को भी बदलना चाहती है। विपक्षी दलों के आरोपों पर सरकार और भाजपा की तरफ से तीखा पलटवार भी हुआ। सरकार के कई मंत्रियों, भाजपा के कई नेताओं और यहां तक कि कई मुख्यमंत्रियों ने भी विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए सवाल उठाया कि आखिर विपक्ष को भारत नाम से इतनी चिढ़ क्यों है?
भारत बनाम इंडिया के विवाद में एक बड़ा कदम उठाते हुए सरकार ने उन आधिकारिक निमंत्रण पत्र और आधिकारिक विदेश यात्रा में भी 'भारत' का उपयोग करना शुरू कर दिया, जहां पर पहले सामान्य तौर पर इंडिया लिखा जाता था। पहले राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा जी-20 सम्मेलन के संदर्भ में 9 सितंबर को दिए जा रहे रात्रिभोज के निमंत्रण पत्र में उन्हें 'प्रेजिडेंट ऑफ भारत' लिखा गया, जिसे केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान सहित मोदी सरकार के कई अन्य मंत्रियों ने सोशल मीडिया पर शेयर किया।
उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इंडोनेशिया दौरे के कागज पर 'द प्राइम मिनिस्टर ऑफ भारत नरेंद्र मोदी' लिखा गया जिसे भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने सोशल मीडिया पर शेयर किया। इतना ही नहीं विपक्षी दलों के लगातार हमले के दौरान जिस तरह से केंद्रीय मंत्रियों और भाजपा नेताओं ने आक्रामक अंदाज में भारत के पक्ष में अभियान छेड़ दिया, उससे दो बातें बिल्कुल साफ तौर पर स्प्ष्ट होती नजर आई।
पहला कि, भारत नाम सरकार की प्राथमिकता है और सरकार इसपर पीछे नहीं हटेगी और दूसरा सरकार ने भारत नाम से लगाव रखने वाली देश की एक बड़ी आबादी को यह राजनीतिक संदेश भी दे दिया कि विपक्षी गठबंधन को इस नाम से चिढ़ है।
लेकिन चूंकि जी-20 में विदेशी राष्ट्राध्यक्षों के आगमन से पहले सरकार के मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं के बयान से अनावश्यक विवाद बढ़ने और इसकी वजह से जी-20 जैसे बड़े आयोजन का मकसद फेल होने की आशंका पैदा होती नजर आई तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगे बढ़कर स्वयं मोर्चा संभाला। पीएम मोदी ने 6 सितंबर को मंत्रिपरिषद की बैठक की अध्यक्षता करते हुए अपने सभी मंत्रियों को जी-20 शिखर सम्मेलन पर फोकस करने और भारत बनाम इंडिया की बहस को लेकर बयानबाजी से बचने की सलाह दी।
हालांकि देश के नाम में भारत को तवज्जो देने के सरकार के फैसले का एक बड़ा श्रेय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत को भी दिया जा रहा है। क्योंकि सरकार के फैसले की जानकारी सामने आने से कुछ ही दिन पहले राष्ट्रीय संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने लोगो से इंडिया की जगह भारत नाम इस्तेमाल करने की अपील करते हुए यह कहा था कि इस देश का नाम सदियों से भारत है, इंडिया नहीं और इसलिए हमें इसका पुराना नाम ही इस्तेमाल करना चाहिए।
भाजपा आरएसएस से वैचारिक आधार पर जुड़ा संगठन है हालांकि सामान्य बोलचाल के तौर पर कई बार भाजपा को आरएसएस का राजनीतिक विंग भी कहा जाता है। ऐसे में निश्चित तौर पर संघ प्रमुख का बयान सरकार के लिए बहुत ज्यादा मायने रखता है। हालांकि भारत नाम को प्रमुखता देने के मामले में आरएसएस और भाजपा दोनों की ही सोच लगभग एक जैसी ही है।
इंडिया नाम को हटाकर देश के लिए सिर्फ भारत का नाम इस्तेमाल करने के लिए सरकार को भारत के संविधान के अनुच्छेद-1 में संशोधन करना पड़ेगा। संविधान के अनुच्छेद-1 में भारत को लेकर दी गई परिभाषा में 'इंडिया, दैट इज भारत' यानी 'इंडिया अर्थात भारत' लिखा गया है और अगर उसमें से सरकार 'इंडिया' शब्द को निकाल कर सिर्फ' भारत' शब्द को ही रहने देना चाहती है तो इसके लिए संविधान संशोधन करना पड़ेगा।
हालांकि फिलहाल सरकार ने इसका रास्ता निकाल लिया है। संविधान में लिखित, "इंडिया, दैट इज भारत" होने के बावजूद पहले जिस तरह से इंडिया नाम को हर जगह प्राथमिकता दी जाती थी अब ठीक उसी तर्ज पर भारत नाम को भी प्राथमिकता दी जाएगी, जिसकी शुरुआत सरकार ने इसके लिए लाए जाने वाले प्रस्तावित संविधान संशोधन विधेयक पर राजनीतिक बवाल खड़ा होने के साथ ही कर दी है।
आपको याद दिला दें कि, पीएम मोदी लालकिले की प्राचीर से अपने भाषण में गुलामी की छोटी-छोटी निशानी से मुक्ति पाने के लिए सामूहिक प्रयास करने की बात कह चुके हैं। यहां तक कि प्रधानमंत्री अमृत काल के जिन पंच प्रण पर जोर देते रहते हैं उसमें से एक प्रण गुलामी की मानसिकता से मुक्ति भी है। इसके तहत सरकार शिक्षा नीति से लेकर प्रतीक चिन्हों, गुलामी से जुड़े सड़कों एवं जगहों के नाम, औपनिवेशिक सत्ता से जुड़े लोगो की मूर्तियों को हटाकर भारतीय महापुरुषों की मूर्तियों को स्थापित करने जैसे अनगिनत काम कर रही है।
इसी मिशन के गृह मंत्री अमित शाह ने संसद के मानसून सत्र के दौरान 11 अगस्त, 2023 को लोक सभा में 1860 में बने आईपीसी,1898 में बने सीआरपीसी और 1872 में बने इंडियन एविडेंस एक्ट को गुलामी की निशानी बताते हुए इन तीनों विधेयकों की जगह लेने वाले तीन नए विधेयकों -- भारतीय न्याय संहिता विधेयक 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023 को पेश किया था।
आपको याद दिला दें कि, सरकार ने अमृत काल में 18 से 22 सितंबर के दौरान पांच दिनों के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाया है। संसद के इस विशेष सत्र के पहले दिन 18 सितंबर को संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही संसद के पुराने भवन में उसी तरह से शुरू होगी जैसा कि पहले हुआ करती थी और लेकिन विशेष सत्र के दूसरे दिन यानी 19 सितंबर से (गणेश चतुर्थी के अवसर पर) दोनों सदनों की कार्यवाही संसद के नए भवन में होने की संभावना है।
संसद के इस विशेष सत्र के आधिकारिक एजेंडे को लेकर सरकार ने अभी तक कोई घोषणा नहीं की है लेकिन सूत्रों की मानें तो अमृत काल को लेकर बुलाए गए संसद के इस विशेष सत्र के दौरान भारत में आयोजित जी-20 शिखर सम्मलेन की सफल मेजबानी एवं वैश्विक स्तर पर बढ़ रहे भारत के कद के साथ-साथ चंद्रयान-3 को लेकर मिली ऐतिहासिक कामयाबी और आजादी के अमृत काल में 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के मिशन और रोडमैप को लेकर चर्चा तो होगी ही लेकिन इसके साथ ही सत्र को यादगार बनाने के लिए सरकार गुलामी के अंश एवं किसी बड़े प्रतीक से छुटकारा पाने के लिए कदम आगे बढ़ा सकती है और आगामी 18 से 22 सितंबर के दौरान आयोजित किए जाने वाले संसद के विशेष सत्र में भारत नाम से जुड़े अहम प्रस्ताव अथवा बिल को पेश कर सकती है।
आईएएनएस
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