राजनीति: सरकार ने 'लेटरल एंट्री' पर फैसला लिया वापस, पत्रकार ने बताया कैसे पीएम मोदी के राज में ही एससी, एसटी, ईडब्ल्यूएस और ओबीसी को मिला न्याय
'लेटरल एंट्री' को लेकर मचे सियासी बवाल के बीच कार्मिक लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने संघ लोक सेवा आयोग को पत्र लिखा है। मंत्री ने पत्र में संघ लोक सेवा आयोग से 'लेटरल एंट्री' के आधार पर निकाली गई भर्तियों को वापस लेने को कहा है।
नई दिल्ली, 20 अगस्त (आईएएनएस)। 'लेटरल एंट्री' को लेकर मचे सियासी बवाल के बीच कार्मिक लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने संघ लोक सेवा आयोग को पत्र लिखा है। मंत्री ने पत्र में संघ लोक सेवा आयोग से 'लेटरल एंट्री' के आधार पर निकाली गई भर्तियों को वापस लेने को कहा है।
पत्र में कहा गया है कि लेटरल एंट्री के आधार पर निकाली गई भर्तियों में आरक्षण का प्रावधान नहीं किया गया है, जिसे ध्यान में रखते हुए इसे वापस लिया जाए। वहीं, मोदी सरकार के इस फैसले को लेकर पत्रकार दिलीप मंडल ने उनकी सराहना की है।
विपक्ष इस मामले पर सरकार का विरोध करते हुए उसे दलितों, आदिवासियों और पिछड़ा वर्ग के खिलाफ बताते हुए आरक्षण विरोधी भी ठहरा रही थी। अब ऐसे में सरकार की तरफ से जब स्पष्ट कर दिया गया है तो विपक्ष इस बात को लेकर सरकार पर हमलावर है कि उन्होंने मिलकर सरकार को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया और सरकार की साजिश को नाकाम कर दिया।
दिलीप मंडल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट में लिखा, ''नेहरू का, इंदिरा का, राजीव का, वाजपेयी का, मनमोहन का सबका… पेंडिंग काम पीएम मोदी कर रहे हैं। 1950 से लटके सैकड़ों काम अब हो रहे हैं। हर घर में टॉयलेट तक अब जाकर बना। हद है!''
उन्होंने अपने अगले सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, ''वाह मोदी जी वाह! तो लगभग 75 साल से चली आ रही 'लेटरल एंट्री' में सोशल जस्टिस और एससी, एसटी, ईडब्ल्यूएस तथा ओबीसी को जोड़ने की व्यवस्था करने का काम एक ओबीसी पीएम को ही करना पड़ा। अब नया विज्ञापन आएगा। इस काम को पहले की कोई भी सरकार कर सकती थी। पर सब बोझ ओबीसी पीएम मोदी जी पर ही आ जाता है! ओबीसी हमेशा से श्रमिक और उत्पादक रहा है। सब उसी को करना पड़ता है।''
दिलीप मंडल ने पोस्ट में आगे लिखा, ''मोदी जी को ही 'संविधान दिवस समारोह' भी शुरू करवाना पड़ा। 1950 से ये होना चाहिए था। अब जाकर सरकारी लेवल पर ये समारोह हो रहा है। बाबा साहब के जीवन से जुड़े पंचतीर्थ भी उनको ही बनवाने पड़े। लंदन का बाबा साहब का घर खरीदकर म्यूज़ियम बनाया गया। वह भी इसी सरकार में हुआ। नीट ऑल इंडिया सीट में ओबीसी कोटा कोई भी पीएम कर सकते थे। पर ये भी मोदी जी को ही करना पड़ा। ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा 1993 में दिया जा सकता था, वह भी मोदी जी ही अपनी सरकार में करते हैं। पहली बार केंद्र में 27 ओबीसी मंत्री भी वही बनाते हैं।''
इसके साथ ही दिलीप मंडल ने लिखा, ''भारत में पहला विश्व बौद्ध सम्मेलन भी वही करवाते हैं। भारत को पहली बार एक आदिवासी राष्ट्रपति भी मोदी जी के कार्यकाल में ही मिलता है। करुणानिधि जी की स्मृति में सिक्के भी मोदी जी ही जारी करते हैं। कलाकार कटेगरी से पहली बार एक दलित, और हमारे दौर के सर्वश्रेष्ठ संगीतकार इलैयाराजा मोदी के समय ही मनोनीत कटेगरी से राज्य सभा पहुंचते हैं। इतने काम पेंडिंग रखे थे पिछली सरकारों ने। ये सब 2014 से पहले हो जाना था।''
उन्होंने आगे लिखा, ''गरीब सवर्णों का ख्याल भी पहली बार मोदी जी ने ही किया और ईडब्ल्यूएस को 10 प्रतिशत आरक्षण दिया। महिला आरक्षण संविधान संशोधन बिल भी उन्होंने ही पास कराया।''
वह इसके साथ ही पोस्ट में लोगों से पूछते हैं, ''एक प्रधानमंत्री के हिसाब से ये कुछ ज़्यादा नहीं हो गया?''
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