शिक्षा: पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने कथित तौर पर एआई-जनरेटेड असाइनमेंट जमा करने वाले छात्र की याचिका का निपटारा किया

एक लॉ स्टूडेंट ने ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। यूनिवर्सिटी ने स्टूडेंट को "फेल" कर दिया था क्योंकि उसने कथित तौर पर "एआई से जनरेटेड" असाइनमेंट जमा किया था। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने इस याचिका का निपटारा कर दिया है।

Bhaskar Hindi
Update: 2024-11-20 10:08 GMT

नई दिल्ली, 19 नवंबर (आईएएनएस)। एक लॉ स्टूडेंट ने ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। यूनिवर्सिटी ने स्टूडेंट को "फेल" कर दिया था क्योंकि उसने कथित तौर पर "एआई से जनरेटेड" असाइनमेंट जमा किया था। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने इस याचिका का निपटारा कर दिया है।

जस्टिस जसगुरप्रीत सिंह पुरी की अध्यक्षता वाली बेंच ने मामले को समाप्त कर दिया क्योंकि विश्वविद्यालय ने छात्र के सभी ट्राइमेस्टर के नए ट्रांसक्रिप्ट जारी करने पर सहमति दे दी थी। यह छात्र एलएलएम का अध्ययन कर रहा था।

इससे पहले 11 नवंबर को जस्टिस पुरी की अध्यक्षता वाली बेंच ने याचिकाकर्ता की शिकायत पर विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार और हरियाणा उच्च शिक्षा निदेशालय को नोटिस जारी किया था। याचिकाकर्ता का कहना था कि उसे प्लेगरिज्म के आरोपों का जवाब देने का मौका नहीं दिया गया।

सुनवाई के दौरान, विश्वविद्यालय ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता ने यह बात छिपाई कि उसने पहले ही "लॉ एंड जस्टिस इन अ ग्लोबलाइजिंग वर्ल्ड" का री-एग्जाम पास कर लिया है। विश्वविद्यालय ने यह भी कहा कि उसने याचिकाकर्ता के इंटरनल असेसमेंट के अंक बहाल कर दिए हैं और अब ट्रांसक्रिप्ट में छात्र के अंतिम ग्रेड को बिना किसी विशेष निशान को दिखाया जाएगा।

विश्वविद्यालय ने यह भी कहा कि एआई-जनरेटेड कंटेंट का इस्तेमाल करना, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के 2018 के नियमों के तहत उल्लंघन है। यदि किसी असाइनमेंट में 60% से अधिक कंटेंट समान पाया जाता है, तो छात्र को निष्कासित किया जा सकता है।

हालांकि, विश्वविद्यालय ने यह भी स्पष्ट किया कि उन्होंने छात्र के अकादमिक और पेशेवर भविष्य को देखते हुए कड़ी सजा देने से परहेज किया, क्योंकि वह एक प्रैक्टिसिंग एडवोकेट है।

अपनी याचिका में, कौस्तुभ अनिल शक्करवार ने कहा कि विश्वविद्यालय "एआई जनरेटेड सामग्री" के उपयोग का कोई सबूत पेश नहीं कर सका और और दस्तावेज उपलब्ध कराए बिना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है।

याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि उसने विश्वविद्यालय से उन नियमों के दस्तावेज मांगे थे, जो एआई के उपयोग पर प्रतिबंध लगाते हैं।

शक्करवार ने कहा, "याचिकाकर्ता ने विश्वविद्यालय से दस्तावेज के तौर पर सबूत का अनुरोध किया, जो एआई के उपयोग पर प्रतिबंध लगाते हैं। लेकिन न तो यह दस्तावेज दिए गए और न ही "अनफेयर मीन्स कमेटी" ने उसकी बात सुनी। कमेटी ने पहले से तय मानसिकता के आधार पर फैसला किया।

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