संस्कृति: आस्था और सूर्योपासना के महापर्व छठ में शुद्धता व स्वच्छता का रखा जाता है पूरा ख्याल
भगवान भास्कर के उपासना का पर्व छठ को लेकर तैयारियां अंतिम चरण में हैं। इस पर्व में शुद्धता और स्वच्छता का पूरा ख्याल रखा जाता है। सूर्योपासना का यह पर्व कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी से सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है।
पटना, 4 नवंबर (आईएएनएस)। भगवान भास्कर के उपासना का पर्व छठ को लेकर तैयारियां अंतिम चरण में हैं। इस पर्व में शुद्धता और स्वच्छता का पूरा ख्याल रखा जाता है। सूर्योपासना का यह पर्व कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी से सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है।
इस पर्व में व्रतियों के घरों के अलावा गलियों से लेकर सड़कों तक की सफाई की जाती है। इस कार्य मे प्रशासन ही नही मोहल्ले, कस्बों के लोग भी मनोयोग से जुटते हैं। घर से लेकर छठ घाटों तक साफ सफाई का खास ध्यान रखा जाता है। इसके अलावा इस अवसर पर बनने वाले महाप्रसाद मिट्टी के चूल्हे में आम की लकड़ी को जलाकर तैयार किया जाता है। आम की लकड़ी और मिट्टी के चूल्हे को शुद्ध माना जाता है। सनातन धर्म में आम की लकड़ी का खास महत्व है।
अटल आस्था का अनूठा पर्व छठ में सूर्य की पहली किरण और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण को अर्घ्य देकर सूर्य को नमन किया जाता है। सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इस पर्व को ’छठ’ कहा जाता है। सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल देने वाले इस पर्व को पुरुष और महिला समान रूप से मनाते हैं। वैसे, आम तौर पर व्रत करने वालों में महिलाओं की संख्या अधिक होती है। कुछ वर्ष पूर्व तक मुख्य रूप से यह पर्व बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में मनाया जाता था, लेकिन अब यह पर्व देश के अधिकांश इलाकों में मनाया जाता है।
चार दिवसीय महापर्व छठ की शुरुआत इस साल मंगलवार को नहाय खाय से शुरू होगा। पर्व के दूसरे दिन यानी बुधवार को खरना और गुरुवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। शुक्रवार को उदीयमान भगवान भास्कर को अर्घ्य के साथ लोक आस्था के इस महापर्व का समापन होगा।
ज्योतिषाचार्य पंडित सुधीर मिश्र के अनुसार छठ पूजा का प्रारंभ महाभारत काल के समय से देखा जा सकता है। छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना की जाती है। पर्व का प्रारंभ ’नहाय-खाय’ से होता है, जिस दिन व्रती स्नान कर अरवा चावल, चना दाल और कद्दू की सब्जी का भोजन करती हैं। इस दिन खाने में सेंधा नमक का प्रयोग किया जाता है। नहाय-खाय के दूसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल पक्ष पंचमी के दिन भर व्रती उपवास कर शाम को स्नान कर विधि-विधान से रोटी और गुड़ से बनी खीर का प्रसाद तैयार कर भगवान भास्कर की आराधना कर प्रसाद ग्रहण करती हैं। इस पूजा को ‘खरना’ कहा जाता है।
इसके अगले दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को उपवास रखकर शाम को व्रती बांस से बने दउरा में ठेकुआ, फल, ईख समेत अन्य प्रसाद लेकर नदी, तालाब या अन्य जलाशयों में जाकर अस्ताचलगामी सूर्य काे अर्घ्य अर्पित करती हैं और इसके अगले दिन यानी सप्तमी तिथि को सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर घर वापस लौटकर अन्न-जल ग्रहण कर ’पारण’ करती हैं, यानी व्रत तोड़ती हैं।
इस पर्व में गीतों का खासा महत्व होता है। छठ पर्व के दौरान घरों से लेकर घाटों तक कर्णप्रिय छठ गीत गूंजते रहते हैं। व्रतियां जब जलाशयों की ओर जाती हैं, तब भी वे छठ महिमा की गीत गाती हैं। वैसे, इन दिनों कई परिवर्तन भी देखे जा रहे हैं। नदी, तालाबों तथा जलाशयों में जुटने वाली भारी भीड़ से बचने के लिए लोग अपने घर की छतों पर भी छठ मना रहे हैं। ये लोग बड़े टबों में जल डालकर अर्घ्य देने लायक बना लेते हैं। छठ पूजा को सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है, क्योंकि इस दौरान श्रद्धालुओं को कठोर नियमों का पालन करना पड़ता है। यह व्रत परिवार की सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है।
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