राष्ट्रीय: नीतीश के झटके से राज्यों में छोटा भाई बनने को मजबूर कांग्रेस
बिहार में चल रहे सियासी उठापटक के बीच आनन फानन में कांग्रेस ने यूपी में सपा से समझौते में 11 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। सियासी जानकर बताते हैं कि बंगाल, पंजाब और बिहार में क्षेत्रीय दलों के दबाव के बाद कांग्रेस क्षेत्रीय दलों के सामने छोटे भाई की भूमिका अदा करने को मजबूर हो गई है।
लखनऊ, 28 जनवरी (आईएएनएस)। बिहार में चल रहे सियासी उठापटक के बीच आनन फानन में कांग्रेस ने यूपी में सपा से समझौते में 11 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। सियासी जानकर बताते हैं कि बंगाल, पंजाब और बिहार में क्षेत्रीय दलों के दबाव के बाद कांग्रेस क्षेत्रीय दलों के सामने छोटे भाई की भूमिका अदा करने को मजबूर हो गई है।
राजनीतिक जानकर बताते हैं कि इंडिया गठबंधन में शामिल पार्टियां पंजाब, बंगाल और हरियाणा में अलग अलग चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद बिहार में नीतीश कुमार के घटनाक्रम के बीच समाजवादी पार्टी (सपा) ने लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन की औपचारिक घोषणा कर दी और सीट बंटवारे को अंतिम रूप दे दिया।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर गठबंधन की घोषणा की। कांग्रेस के एक बड़े नेता का कहना है कि कांग्रेस बड़ी पुरानी पार्टी है। उसे इंडिया गठबंधन में निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए। अगर पार्टी महज 11 सीटों पर चुनाव लड़ती है। तो कार्यकर्ताओं का क्या होगा क्योंकि चुनाव के पहले पार्टी की तरफ से दावा किया गया था कि हमारी पार्टी सभी जिलों में मजबूत है। पार्टी को कम से कम आधी सीटों पर चुनाव तो लड़ना ही चाहिए। कांग्रेस की भूमिका बड़े भाई की तरह होनी चाहिए। क्योंकि हम राष्ट्रीय पार्टी हैं।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि इंडिया गठबंधन में पंजाब, बंगाल और हरियाणा में अलग अलग चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद इसका असर निश्चित तौर पर यूपी में पड़ेगा। इसी बात को ध्यान में रखते हुए शायद जल्दबाजी में 11 सीटों पर निर्णय लिया गया, हालांकि अभी यह तय नहीं है कि कांग्रेस कुल कितने सीटों पर चुनाव लड़ेगी। यह तस्वीर कांग्रेस के नेता ही तय करेंगे जो कि अभी बोलने से बच रहे हैं। यहां पर सपा ही लीड करती दिख रही है। उसने सबसे पहले रालोद को सात सीटें देकर अपनी भूमिका तय कर दी थी। इसके बाद कांग्रेस को 11 सीटें तय कर दी है।
गठबंधन के बाद सीट शेयरिंग को लेकर कांग्रेस के हालात कन्फ्यूजन वाले थे। फिर कई प्रदेशों में चल रहे राजनीतिक घटनाक्रम के बाद कांग्रेस बैकफुट पर जाती दिख रही है। अब तक वह प्रदेश के क्षेत्रीय दलों से दबी हुई दिखाई दे रही है। वह अभी तक बसपा के चक्कर में थीं लेकिन बसपा का रुख साफ न होने के बाद उसे यह निर्णय लेना पड़ा होगा। चुनाव की रणनीति बनाने के समय राहुल गांधी की यात्रा निकालने जाने के निर्णय से सहयोगी दल नाराज नजर आ रहे हैं। हालंकि वह शामिल होंगे या नहीं इस पर कुछ तय नहीं कर पा रहे हैं। लगभग सभी दल मिलकर सिर्फ कांग्रेस के ऊपर दबाव ही बना रहे हैं।
इसके अलावा सपा एक अलग ऑप्शन लेकर चल रही है। उसने स्थानीय स्तर पर छोटे दलों के साथ भी गठजोड़ का रास्ता खुला रखा है।
एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल कहते हैं कि पश्चिम बंगाल में ममता के साथ और पंजाब एवं हरियाणा में आम आदमी पार्टी के साथ स्थितियां बिगड़ रही हैं। कांग्रेस दबाव में आ गई है। कहीं अन्य और दल भी बाहर ना हो जाए, इसको देखते हुए कांग्रेस ने सपा के साथ 11 सीटों पर समझौता किया है। अन्य राज्यों में भी वह दबाव में कम सीटों पर समझौता करती दिखेगी।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने कहा कि जो मेरी जानकारी में है कि अभी बातचीत चल रही है। हमारी राष्ट्रीय कमेटी सीट बंटवारे पर निर्णय लेगी।
कांग्रेस के प्रवक्ता अंशू अवस्थी कहते हैं कि इंडिया गठबंधन की पहली बैठक में ही यह तय कर दिया गया था कि हमारा उद्देश्य देश के संविधान को और आम आदमी के अधिकारों को बचाना है। ऐसे में मुख्य विपक्षी पार्टी होने के नाते कांग्रेस की लोगों के अधिकारों की रक्षा की ज़िम्मेदारी और बढ़ जाती है। गठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर कोआर्डिनेशन कमेटी सीट वार चर्चा कर रही है, अभी 11 सीटों की स्थित साफ हुई है आगे अन्य सीटों पर भी तय होते ही आपको सूचित करेंगें।
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