भारत में महिलाओं के लिए कार्यस्थल पर सुरक्षा में गंभीर खामियां मौजूद हैं : रिपोर्ट

मुंबई, 3 जनवरी (आईएएनएस)। कार्यस्थल पर असुरक्षा का सामना करने वाली 40 प्रतिशत कामकाजी महिलाएं यौन उत्पीड़न रोकथाम (पीओएसएच) अधिनियम द्वारा प्रस्तावित सुरक्षात्मक उपायों से अनजान हैं। बुधवार को आई एक रिपोर्ट में यह बात कही गई।

Bhaskar Hindi
Update: 2024-01-03 14:18 GMT

मुंबई, 3 जनवरी (आईएएनएस)। कार्यस्थल पर असुरक्षा का सामना करने वाली 40 प्रतिशत कामकाजी महिलाएं यौन उत्पीड़न रोकथाम (पीओएसएच) अधिनियम द्वारा प्रस्तावित सुरक्षात्मक उपायों से अनजान हैं। बुधवार को आई एक रिपोर्ट में यह बात कही गई।

वालचंद प्लस की रिपोर्ट कार्यस्थल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण की तत्काल जरूरत पर जोर देती है।

रिपोर्ट से पता चला है कि केवल 42 फीसदी कर्मचारियों को ही पीओएसएच अधिनियम की पूरी समझ है।

कर्मचारियों के बीच जागरूकता की यह कमी, जैसा कि अनुसंधान द्वारा उजागर किया गया है, अधिनियम के प्रावधानों पर बेहतर शिक्षा की अनिवार्यता को रेखांकित करता है।

रिपोर्ट संगठनों के भीतर प्रचलित गलत धारणाओं को भी उजागर करती है, जहां अधिनियम के अनुपालन को अक्सर महिलाओं के लिए एक सुरक्षित वातावरण को बढ़ावा देने की वास्तविक प्रतिबद्धता के बजाय केवल एक चेकबॉक्स के रूप में देखा जाता है।

सर्वेक्षणों से पता चलता है कि 53 प्रतिशत मानव संसाधन पेशेवर इस अधिनियम को लेकर भ्रमित हैं।

इसके अलावा, शोध में पाया गया कि मानव संसाधन प्रबंधक महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व और वरिष्ठ प्रबंधन के भीतर उत्पीड़न के मुद्दों को कम महत्व देने की प्रवृत्ति को लेकर चिंतित हैं।

वालचंद पीपलफर्स्ट की अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक पल्लवी झा ने एक बयान में कहा, “एक महिला के रूप में मुझे लगता है कि जब लैंगिक असमानता को पाटने की बात आती है तो भारत को अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है। कई मायनों में हम अभी भी एक पितृसत्तात्मक समाज हैं। कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा एक बुनियादी अपेक्षा होनी चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से कई संगठन इसे बहुत ही दिखावटी स्तर पर मानते हैं।”

शोध से पता चलता है कि कई अन्य बाधाओं के अलावा, आंतरिक शिकायत समितियों (आईसीसी) में वरिष्ठ महिला प्रतिनिधित्व की कमी जैसी बाधाओं के कारण जब पीओएसएच अधिनियम के कार्यान्वयन और पालन की बात आती है, तो बहुत कुछ अधूरा रह जाता है।

यह प्रशिक्षण सत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका को भी रेखांकित करता है।

रिपोर्ट संगठनों से सक्रिय प्रतिक्रिया का आग्रह करती है, पहचाने गए अंतराल को दूर करने के लिए तत्काल उपायों की वकालत करती है।

यह उत्पीड़न के प्रति कार्यशालाओं, मार्गदर्शन और शून्य-सहिष्णुता नीति के महत्व पर जोर देता है।

--आईएएनएस

एसजीके

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