राजनीति: मुझे समझ नहीं आ रहा है कि किसानों से वार्ता क्यों नहीं हो रही उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सवाल किया है कि आखिरकार किसानों से वार्ता क्यों नहीं हो रही है।
नई दिल्ली, 3 दिसंबर (आईएएनएस)। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सवाल किया है कि आखिरकार किसानों से वार्ता क्यों नहीं हो रही है।
मंगलवार को एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने मंच पर मौजूद केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से कहा, “कृषि मंत्री जी, हर पल आपके लिए महत्वपूर्ण है। मैं आपसे अनुरोध करता हूं और भारत के संविधान के तहत दूसरे सबसे बड़े पद पर विराजमान व्यक्ति के रूप में मैं आपसे आग्रह करता हूं कि कृपया मुझे बताइए, क्या किसानों से कोई वादा किया गया था, और वह वादा क्यों नहीं निभाया गया। हम वादा पूरा करने के लिए क्या कर रहे हैं। पिछले साल भी आंदोलन था, इस साल भी आंदोलन है, और समय जा रहा है, लेकिन हम कुछ नहीं कर रहे हैं।”
उपराष्ट्रपति ने कहा, “कृषि मंत्री जी, मुझे तकलीफ हो रही है। मेरी चिंता यह है कि अब तक यह पहल क्यों नहीं हुई। आप कृषि और ग्रामीण विकास मंत्री हैं। मुझे सरदार पटेल की याद आती है, उनका जो उत्तरदायित्व था देश को एकजुट करने का, उन्होंने इसे बखूबी निभाया। यह चुनौती आज आपके सामने है, और इसे भारत की एकता से कम मत समझिए। किसानों से वार्ता तुरंत होनी चाहिए, और हम सबको यह जानना चाहिए, क्या किसानों से कोई वादा किया गया था। कृषि मंत्री जी, क्या पिछले कृषि मंत्रियों ने कोई लिखित वादा किया था। अगर किया था, तो उसका क्या हुआ।"
आंदोलित किसानों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए उन्होंने कहा, "हम अपने लोगों से नहीं लड़ सकते, हम उन्हें इस स्थिति में नहीं डाल सकते कि वे अकेले संघर्ष करें। हम यह विचारधारा नहीं रख सकते कि उनका संघर्ष सीमित रहेगा, और वे अंतत: थक जाएंगे। हमें भारत की आत्मा को परेशान नहीं करना चाहिए, हमें उनके दिल को चोट नहीं पहुंचानी चाहिए। क्या हम किसान और सरकार के बीच एक सीमा रेखा बना सकते हैं? जिनको गले लगाना चाहिए, उन्हें दूर नहीं किया जा सकता।"
न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उपराष्ट्रपति ने कहा, “आज किसान को केवल एक काम सौंप दिया गया है, खेतों में अनाज उगाना और फिर उसकी सही कीमत पर बिक्री के बारे में सोचना। मुझे समझ में नहीं आता कि हम क्यों ऐसा फॉर्मूला नहीं बना सकते, जिसमें अर्थशास्त्रियों और थिंक टैंक के साथ विचार-विमर्श करके हमारे किसानों को पुरस्कृत किया जा सके। हम उन्हें उनका हक भी नहीं दे रहे, पुरस्कृत करना तो दूर की बात है। हमने जो वादा किया था, उसे देने में भी कंजूसी कर रहे हैं, और मुझे समझ में नहीं आता कि किसानों से वार्ता क्यों नहीं हो रही है। हमारी मानसिकता सकारात्मक होनी चाहिए।"
उन्होंने कहा, “यह बहुत संकीर्ण आकलन है कि किसान आंदोलन का मतलब केवल वे लोग हैं जो सड़कों पर हैं। नहीं, किसान का बेटा आज अधिकारी है, किसान का बेटा सरकारी कर्मचारी है। लाल बहादुर शास्त्री जी ने क्यों कहा था - जय जवान, जय किसान। उस जय किसान के साथ हमारा रवैया वही होना चाहिए, जैसा लाल बहादुर शास्त्री ने कल्पना की थी। मेरी पीड़ा यह है कि किसान और उनके हितैषी आज चुप हैं, बोलने से कतराते हैं। देश की कोई ताकत किसान की आवाज को दबा नहीं सकती। यदि कोई राष्ट्र किसान की सहनशीलता परखने की कोशिश करेगा, तो उसे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी।"
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