राष्ट्रीय: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान को बताया जीवंत और प्रगतिशील दस्तावेज

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंगलवार को 'संविधान दिवस' के दिन संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित किया। इस खास मौके पर उन्होंने संविधान को सभी ग्रंथों में सबसे पवित्र ग्रंथ बताया।

Bhaskar Hindi
Update: 2024-11-26 11:10 GMT

नई दिल्ली, 26 नवंबर (आईएएनएस)। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंगलवार को 'संविधान दिवस' के दिन संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित किया। इस खास मौके पर उन्होंने संविधान को सभी ग्रंथों में सबसे पवित्र ग्रंथ बताया।

उन्होंने कहा कि यह संविधान सभा की 15 महिला सदस्यों के योगदान को याद करने का अवसर है। वहीं, यह नेपथ्य में रहकर काम करने वाले लोगों द्वारा दिए गए अमूल्य योगदान को भी याद करने का मौका है।

राष्ट्रपति ने कहा, “हमारा संविधान सबसे जीवंत और प्रगतिशील दस्तावेज है। यह लोकतंत्र की जननी है और हम इसी भावना के साथ यहां एकत्रित हुए हैं।”

राष्ट्रपति ने कहा, “आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर सभी देशवासियों ने 'आजादी का अमृत महोत्सव' मनाया। अगले वर्ष 26 जनवरी को हम अपने गणतंत्र की 75वीं वर्षगांठ मनाएंगे। इस तरह के समारोह हमें अब तक की यात्रा का जायजा लेने और आगे की यात्रा के लिए बेहतर योजना बनाने का अवसर प्रदान करते हैं। ऐसे समारोह हमारी एकता को मजबूत करते हैं और दिखाते हैं कि राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के अपने प्रयासों में हम सभी एक साथ हैं।”

राष्ट्रपति ने कहा, “भारत का संविधान कई गणमान्यों के लगभग तीन वर्षों के विचार-विमर्श का परिणाम था। लेकिन, सही मायने में यह हमारे लंबे स्वतंत्रता संग्राम का परिणाम था। उस अतुलनीय राष्ट्रीय आंदोलन के आदर्शों को संविधान में प्रतिष्ठापित किया गया। संविधान की प्रस्तावना में उन आदर्शों को संक्षेप में समाहित किया गया है। वे न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व है। ये आदर्श युगों-युगों से भारत को परिभाषित करते आए हैं। संविधान की प्रस्तावना में रेखांकित आदर्श एक-दूसरे के पूरक हैं। साथ मिलकर, वे एक ऐसा वातावरण बनाते हैं, जिसमें प्रत्येक नागरिक को फलने-फूलने, समाज में योगदान करने और साथी नागरिकों की मदद करने का अवसर मिलता है।”

राष्ट्रपति ने कहा, “हमारे संवैधानिक आदर्शों को कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के साथ-साथ सभी नागरिकों की सक्रिय भागीदारी से ताकत मिलती है। हमारे संविधान में प्रत्येक नागरिक के मौलिक कर्तव्यों का स्पष्ट उल्लेख किया गया है। भारत की एकता और अखंडता की रक्षा करना, समाज में सद्भाव को बढ़ावा देना, महिलाओं की गरिमा सुनिश्चित करना, पर्यावरण की रक्षा करना, वैज्ञानिक सोच विकसित करना, सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना और राष्ट्र को उपलब्धियों के उच्च स्तर पर ले जाना नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों में शामिल है।”

राष्ट्रपति ने कहा, “संविधान की भावना के अनुरूप कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की जिम्मेदारी है कि वे आम लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए मिलकर काम करें।”

उन्होंने कहा, “लोगों की आकांक्षाओं को संसद द्वारा अधिनियमित कई कानूनों में अभिव्यक्ति मिली है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान सरकार ने समाज के सभी वर्गों, विशेषकर कमजोर वर्गों के विकास के लिए कई कदम उठाए हैं। ऐसे फैसलों से लोगों का जीवन बेहतर हुआ है और उन्हें विकास के नए अवसर मिल रहे हैं। उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि सुप्रीम कोर्ट के प्रयासों से देश की न्यायपालिका हमारी न्यायिक प्रणाली को और अधिक प्रभावी बनाने का प्रयास कर रही है।”

राष्ट्रपति ने कहा, “हमारा संविधान एक जीवंत और प्रगतिशील दस्तावेज है। हमारे दूरदर्शी संविधान निर्माताओं ने बदलते समय की आवश्यकताओं के अनुरूप नए विचारों को अपनाने की व्यवस्था प्रदान की थी। हमने संविधान के माध्यम से सामाजिक न्याय और समावेशी विकास से संबंधित कई महत्वाकांक्षी लक्ष्य हासिल किए हैं। एक नए दृष्टिकोण के साथ, हम भारत के लिए राष्ट्रों के समुदाय में एक नई पहचान अर्जित कर रहे हैं। हमारे संविधान निर्माताओं ने भारत को अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का निर्देश दिया था। आज हमारा देश एक अग्रणी अर्थव्यवस्था होने के साथ-साथ 'विश्व-बंधु' की भूमिका भी बखूबी निभा रहा है।”

राष्ट्रपति ने कहा, “लगभग तीन-चौथाई सदी की संवैधानिक यात्रा में देश उन क्षमताओं को दिखाने और उन परंपराओं को विकसित करने में उल्लेखनीय हद तक सफल हुआ है।”

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि, “हमने जो सबक सीखा है, उसे अगली पीढ़ियों तक पहुंचाया जाना चाहिए। 2015 से हर साल 'संविधान दिवस' मनाने से हमारे युवाओं के बीच हमारे संस्थापक दस्तावेज व संविधान के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद मिली है।”

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