विज्ञान/प्रौद्योगिकी: फसल की उर्वरता के लिए नए जीन की पहचान

भारतीय वैज्ञानिकों ने एक विशेष व नए जीन की पहचान की है। वैज्ञानिकों के इस अध्ययन से फसल की उर्वरता और बीज उत्पादन में सुधार की नई संभावनाएं बनी हैं। यह जीन पत्ता गोभी और सरसों से संबंधित अरेबिडोप्सिस फूल वाले पौधों में पराग कण और बीज निर्माण सहित पराग केसर (नर प्रजनन संरचना) के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

Bhaskar Hindi
Update: 2024-11-18 15:51 GMT

नई दिल्ली, 18 नवंबर (आईएएनएस)। भारतीय वैज्ञानिकों ने एक विशेष व नए जीन की पहचान की है। वैज्ञानिकों के इस अध्ययन से फसल की उर्वरता और बीज उत्पादन में सुधार की नई संभावनाएं बनी हैं। यह जीन पत्ता गोभी और सरसों से संबंधित अरेबिडोप्सिस फूल वाले पौधों में पराग कण और बीज निर्माण सहित पराग केसर (नर प्रजनन संरचना) के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

केंद्र सरकार के संस्थान बोस इंस्टीट्यूट में यह खोज की गई है। यहां प्रोफेसर शुभो चौधरी की प्रयोगशाला ने पराग विकास पर हाल में किए अध्ययन में एचएमजीबी15 नाम के एक नए जीन की पहचान की है। यह क्रोमेटिन का पुनर्गठन करने वाला एक गैर-हिस्टोन प्रोटीन है तथा पराग केसर (नर प्रजनन संरचना) के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पराग गठन पौधे के जीवन चक्र में बेहद महत्वपूर्ण विकासात्मक चरण होता है। यह नर गैमेटोफाइट का प्रकार होता है, जिसकी भूमिका आनुवंशिक कण को भ्रूण थैली तक पहुंचाना है।

सफल बीज की उत्पत्ति के लिए पराग कणों का उत्पादन और फूल के गर्भ केसर के सिरे में स्थानांतरण आवश्यक है। पराग विकास प्रक्रिया को समझना न केवल फूलों के पौधों के प्रजनन के बुनियादी तंत्र को स्पष्ट करता है, बल्कि फसल उत्पादन में बाद के कुशल-प्रयोग के लिए बहुमूल्य जानकारी भी देता है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक पराग अंकुरण गति और पराग नलिका वृद्धि स्वस्थ पराग की दो अहम विशेषताएं हैं। यह फूल वाले पौधों में क्रमिक विकास के साथ विकसित हुई हैं। अंडाशय तक पहुंचने के लिए शैली के माध्यम से पराग नलिका का तेजी से बढ़ना, फूल वाले पौधों में निषेचन की पहली आवश्यकता है। चूंकि, कई पराग नलिकाएं छांट के माध्यम से बढ़ती हैं, इसलिए पराग कण की प्रजनन सफलता पराग नलिका के विस्तार की दर से निर्धारित होती है।

यह अध्ययन में पौधों के जटिल जीव विज्ञान पर प्रकाश तो डालता ही है, वहीं फसल की उर्वरता और बीज उत्पादन में सुधार के लिए नई संभावनाओं के द्वार भी खोलता है। केंद्र सरकार के मुताबिक ये अध्ययन प्लांट फिजियोलॉजी (सचदेव एट अल., 2024) और प्लांट रिप्रोडक्शन (बिस्वास एट अल., 2024) जैसे प्रतिष्ठित प्लांट जर्नल्स में प्रकाशित हुए हैं। इस कार्य के लिए वित्तीय सहायता विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) द्वारा दी गई।

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