पूजनीया रासेश्वरी देवी जी: यू के में बही भागवत ज्ञानामृत की गंगा

भक्ति आत्मा का वह विज्ञान है जिसके सिद्धान्त और प्रयोग का मर्म प्रस्तुत करता है

Bhaskar Hindi
Update: 2024-12-02 07:27 GMT

दिल्ली, 30 नवंबर: भक्ति के परमाचार्य जगद्गुरुत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज की वरिष्ठ प्रचारिका एवं ब्रज गोपिका सेवा मिशन का संस्थापिका-अध्यक्ष पूजनीया रासेश्वरी देवी जी द्वारा यूनाइटेड किंगडम की धरा पर प्रस्तुत श्रीमद्भागवत कथा उनके आध्यात्मिक अभियान में मील का पत्थर है। भक्ति आत्मा का वह विज्ञान है जिसके सिद्धान्त और प्रयोग का मर्म प्रस्तुत करता है पुराणों का मुकुटमणि श्रीमद्भागवत महापुराण। इसलिए श्रीमद्भागवत को सारे उपनिषदों के सार रूप में जाना जाता है।  

वसुधैव कुटुंबकम्- उपनिषदों का सार

पूजनीया देवी जी ने यू के में आयोजित अपने इस कार्यक्रम को श्रीमद्भागवत ज्ञानामृतम् की संज्ञा दी है जो बड़ा सारगर्भित है क्योंकि भागवत कथा के साथ उन्होंने श्रोताओं को वह ज्ञानामृत पिलाया जो उन्हें उनके गुरुवर द्वारा सिद्धांत रूप में प्रदान किया गया है। कार्यक्रम के दौरान देवी जी ने स्वयं यह बात बताई थी, “यह कथा आत्मरंजन के लिए नहीं है। हमारे आंतरिक उत्थान एवं मन-बुद्धि के शुद्धिकरण के लिए है| मेरे पास अद्वितीय सिद्धांत है जिससे आपका जीवन बन जाएगा, यह मेरा चैलेंज है।” हम कह सकते हैं, उद्देश्य की दृष्टि से देखें तो विदेश की धरा पर प्रस्तुत इस कार्यक्रम द्वारा देवी जी ने वसुधैव कुटुंबकम् का वह संदेश प्रसारित किया है जो उपनिषदों का सार है। 

३० दिन का आध्यात्मिक दौरा 

प्राकृतिक सौन्दर्य के मध्य बसे वेलिंग्टन नामक शहर के वेलिंग्टन गर्ल्स हाई स्कूल में आयोजित भागवत ज्ञानामृतम् नामक कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ 19 नवंबर, 2024 को एक भव्य शोभायात्रा के साथ जिसमें सटन शहर के डिप्टी मेयर, लुईस फेलन ने उत्साह के साथ (Louise Phelan) भाग लिया।  भागवत सप्ताह के समापन सत्र में सटन के मेयर, कॉलिन स्टीयर्स (Colin Stears) ने आनंदपूर्वक भाग लेकर  कार्यक्रम को सफल बनाया। इस सप्तदिवसीय भव्य अनुष्ठान की अवधि 20 नवंबर 2024 से 26 नवंबर 2024 तक थी। 

पूजनीया देवी जी ने अपने दिव्य स्वरों में भगवान की स्तुति गायन के साथ श्रीमद्भागवत ज्ञानामृतम् का शुभारंभ किया। उन्होंने श्रीमद्भागवत का माहात्म्य बताते हुए कहा कि “भागवत वैदिक ज्ञान का सार है|

 उन्होंने श्रोताओं को बताया कि वास्तव में भागवत ज्ञानामृत है जिसे श्रवण करनेवाले को परीक्षित के समान अमृतत्व की प्राप्ति होती है।  इसलिए भागवत ज्ञान का दान महादान है जिससे लेनेवाले का कल्याण होता है”। उन्होंने कहा कि “कथा श्रवण के इस सौभाग्य का भरपूर लाभ उठाएं। नकारात्मक चिंताओं में समय न गवाएं| जो हो रहा है उसे स्वीकार करना सीखें। भागवत हमें आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाती है और हमारे जीवन को रूपांतरित करने की शक्ति रखती है। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान ने अर्जुन का मोह नष्ट करने के लिए उपदेश दिया है और भागवत में भगवत्प्रेम प्राप्ति का मार्ग दिखाया है”। 12 अध्यायों में वर्णित भक्तों के जीवन चरित और भगवान की लीलाओं के माध्यम से उन्होंने श्रोताओं को भक्ति का स्वरूप, महत्व और प्राप्ति का साधन बताया। 

आज के तकनीक प्रधान युग में हमारा मस्तिष्क तमाम सूचनाओं को पाकर जटिल और आत्मकेंद्रित होता जा रहा है। लगातार भगवान के नाम और यश का श्रवण और गान करने से हमारे मन की जटिलताएं दूर होती जाती हैं और हृदय आनंद से भर जाता है। श्रीकृष्ण की गोचारण लीला, गोवर्धन लीला एवं श्रीकृष्ण-रुक्मिणी विवाह लीला की हृदयग्राही झाँकी के साथ देवी जी की दिव्य वाणी के संयोजन से वातावरण पावन ऊर्जा से संचरित हो उठा। 




 


प्रवासी भारतीयों की भावी पीढ़ियों के लिए विशेष कार्यक्रम 

इस कार्यक्रम ने बच्चों और किशोरों को संस्कारित करने में भी अहम भूमिका निभाई। पूजनीया देवी जी ने अपने तत्वावधान में उनके लिए विशेष कक्षाओं का आयोजन कर उन्हें सनातन वैदिक ग्रंथों की ज्ञान परंपरा से अवगत कराया| बच्चों ने यह जाना कि वेदों में वर्णित व्यापक ज्ञान ही आधुनिक ज्ञान-विज्ञान की शाखाओं के रूप में विकसित हुआ है। विदेशों की इस पीढ़ी को यह दुर्लभ जानकारी प्राप्त हुई कि मनुष्य के जीवन मूल्यों की नींव सनातन वैदिक ग्रंथों में ही निहित हैं, भौतिक सभ्यता में नहीं।  भगवान की पावन लीलाओं की झांकियों में बच्चों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया तथा ध्रुव और प्रह्लाद के दिव्य चरित से जीवन में आध्यात्मिक मूल्यों का महत्व जाना। साथ-साथ बच्चों के लिए आर्ट-क्राफ्ट की कक्षाएं आयोजित की गईं जिसमें बच्चों ने माइंडफुल कलरिंग, ऑरिगैमी, नृसिंह मास्क आदि बनाने के साथ दीपों को सजाने की कला भी सीखी। प्रवासी भारतीयों की भावी पीढ़ियों के बौद्धिक, भावनात्मक एवं आध्यात्मिक विकास के लिए इस आयोजन का दूरगामी प्रभाव देखा जा सकता है। 

भारत के अलग अलग राज्यों से लोगों के हिस्सेदारी 

इस भव्य अनुष्ठान में भाग लेनेवाले  भारतीयों में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल आदि प्रदेशों के श्रद्धालु शामिल थे।  कार्यक्रम की भव्यता के मूल में हर उम्र वर्ग के वॉलन्टीयर्स में उत्साह और टीम भावना का अद्भुत समन्वय देखा जा सकता है। सेवा स्टेज सज्जा और प्रबंधन की हो या प्रसाद वितरण की हो या किसी अन्य प्रकार के सहयोग की हो, तीनों पीढ़ियों का ऐसा सामंजस्य अन्यत्र दुर्लभ है। सटन, वेलिंग्टन और क्रॉयडन शहर के श्रद्धालुओं ने इस कार्यक्रम में बढ़ चढ़ कर भाग लिया।

 

ढाई घंटे तक चलनेवाली इस अमृतमय कथा का श्रवण प्रतिदिन लगभग 300 श्रद्धालुओं ने किया जिसमें अधिकांश आई टी तथा अन्य क्षेत्रों में कार्य करनेवाले लोग थे। पूजनीया देवी जी के भगवत् प्रेमी हृदय का ही विलक्षण प्रभाव है कि  विदेश की धरा भी उनके प्रेम की डोर में बंध जाने को विवश हो जाती है।

यहाँ सूचित हो की पूजनिया रासेश्वरी देवी जी ब्रज गोपिका सेवा मिशन के संस्थापिका अध्यक्षा हैं। यह मिशन “व्यक्ति का वास्तविक कल्याण उसकी अध्यात्मिक् उत्थान में है” इसी लक्ष्य का ध्येय के साथ पिछले ३ दशकों से देश एवं बिदेश में कार्यरत है।

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