विज्ञान/प्रौद्योगिकी: भारत की जीडीपी अगले तीन वित्त वर्षों में सालाना 6.5-7 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी रिपोर्ट
अगले तीन वित्त वर्षों 2025-2027 में भारत की जीडीपी सालाना 6.5-7 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी और देश की अच्छी आर्थिक वृद्धि की संभावनाएं बैंकों की संपत्ति की गुणवत्ता को भी मजबूत करेगी। यह जानकारी एक लेटेस्ट रिपोर्ट में दी गई।
नई दिल्ली, 15 नवंबर (आईएएनएस)। अगले तीन वित्त वर्षों 2025-2027 में भारत की जीडीपी सालाना 6.5-7 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी और देश की अच्छी आर्थिक वृद्धि की संभावनाएं बैंकों की संपत्ति की गुणवत्ता को भी मजबूत करेगी। यह जानकारी एक लेटेस्ट रिपोर्ट में दी गई।
एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने अपनी लेटेस्ट वैश्विक बैंक आउटलुक रिपोर्ट में कहा कि भारत का इंफ्रास्ट्रक्चर खर्च और निजी खपत मजबूत आर्थिक वृद्धि को समर्थन देंगे।
रिपोर्ट के अनुसार, "संरचनात्मक सुधार और अच्छी आर्थिक संभावनाएं भारत के वित्तीय संस्थानों के लचीलेपन को सपोर्ट करेंगी। मजबूत बैंक पूंजीकरण के साथ उच्च मांग से बैंक ऋण वृद्धि को बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा, आरबीआई की नियामकीय सख्ती से मध्यम अवधि में वित्तीय प्रणाली मजबूत होगी।"
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने पिछले महीने कहा था कि भारत की विकास कहानी बरकरार है क्योंकि इसके मूलभूत चालक - खपत और निवेश मांग - गति पकड़ रहे हैं।
उन्होंने कहा था कि वित्त वर्ष 2024-25 के लिए देश में वास्तविक जीडीपी वृद्धि 7.2 प्रतिशत रहने की संभावना है।
रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय बैंकिंग सेक्टर के खराब कर्ज 31 मार्च, 2025 तक घटकर कुल कर्ज का लगभग 3.0 प्रतिशत रह जाएंगे, जो 31 मार्च, 2024 तक अनुमानित 3.5 प्रतिशत से कम है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि हेल्दी कॉर्पोरेट बैलेंस शीट,सख्त अंडरराइटिंग मानकों और बेहतर जोखिम प्रबंधन प्रैक्टिस के साथ बैंकिंग सेक्टर के कमजोर लोन में इस कमी को देखा जाएगा। भारत में रिटेल लोन के लिए अंडरराइटिंग मानक काफी बेहतर हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि कॉर्पोरेट उधारी ने गति पकड़ी है, लेकिन बाहरी अनिश्चितताएं पूंजीगत व्यय से संबंधित विकास में देरी कर सकती हैं।
केंद्रीय बैंक अधिक मुखर होकर और भारी जुर्माना लगा रहा है। आरबीआई टेक्नोलॉजी, अनुपालन, ग्राहक शिकायतों, डेटा गोपनीयता, शासन और केवाईसी मुद्दों पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित कर रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, "हमारा मानना है कि पारदर्शिता बढ़ने से अनुपालन और शासन प्रथाओं में सुधार होगा, लेकिन अनुपालन लागत में वृद्धि होगी। वित्तीय क्षेत्र में निवेशक सख्त दंड की संभावना से उत्पन्न बढ़े हुए विनियामक जोखिम के लिए उच्च प्रीमियम की मांग कर सकते हैं।"
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