सेंगोल क्या हैं? जानिए नए संसद भवन में स्थापित सेंगोल की ऐतिहासिक कहानी
- पीएम मोदी ने सेंगोल को किया दंडवत प्रणाम
- सर्वधर्म प्रार्थना के बाद हुआ उद्घाटन
- सेंगोल शब्द की उत्पत्ति तमिल शब्द 'सेम्मई' से हुई
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीर सावरकर की 140 जयंती पर भारत के नए भव्य संसद का उद्घाटन किया है। 28 मई को नए संसद के परिसर में सर्वधर्म प्रार्थना के बाद उसका उद्घाटनकिया गया। इस समय सबसे खास चर्चा सेंगोल को लेकर हुई। जिसे स्पीकर के आसन के पास स्थापित किया गया। आपको बता दें प्रधानमंत्री मोदी को तमिलनाडु सेंगोल सौंपा गया है, 18 मठों के मठाधीशों ने उनको आशीर्वाद दिया और उनको राजदंड दिया। पीएम ने सभी धर्मगुरूओं को सम्मानित किया है। राजदंड का अर्थ है कि आप किसी के साथ अन्याय नहीं कर सकता है। पीएम मोदी ने सेंगोल को दंडवत प्रणाम किया।
सेंगोल की उत्पत्ति
सेंगोल शब्द की उत्पत्ति तमिल शब्द 'सेम्मई' से हुई है। सेम्मई का अर्थ है 'नीतिपरायणता', यानि सेंगोल को धारण करने वाले पर यह विश्वास किया जाता है कि वह नीतियों का पालन करेगा। यही राजदंड कहलाता था, जो राजा को न्याय सम्मत दंड देने का अधिकारी बनाता था। ऐतिहासिक परंपरा के अनुसार, राज्याभिषेक के समय, राजा के गुरु नए शासक को औपचारिक तौर पर राजदंड उन्हें सौंपा करते थे।
सेंगोल में क्या- क्या है, जानिए उनका अर्थ?
सेंगोल की नक्काशी का जुड़ाव प्राचीन चोल इतिहास से रहा है। सेंगोल के सबसे ऊपर नंदी की प्रतिमा है। नंदी की प्रतिमा शैव परंपरा को दर्शाती है। नंदी समर्पण का प्रतीक है। यह समर्पण राजा और प्रजा दोनों के राज्य के प्रति समर्पित को बताती है। नंदी की स्थिरता शासन के प्रति अडिग होने का प्रतीक है। जिसका न्याय अडिग है, उसी का शासन अडिग है। इसलिए नंदी को सबसे शीर्ष पर स्थान दिया गया है, जो कर्म को सर्वोपरि रखने की प्रेरणा देता है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी इसी आधार पर सेंगोल को निष्पक्ष, न्यायपूर्ण शासन का प्रतीक बताया है।
एक गोल मंच पर नंदी की स्थापना की गई है, गोल मंच संसार का प्रतीक है। इसका अर्थ ये लगाया जाता है कि इस संसार में स्थिर, शांतचित्त और कर्मशीलता ही सबसे ऊपर है। छड़ी नुमा सेंगोल की लंबाई का भी खास महत्व है। यह पांच फीट की एक संरचना है, सेंगोल की लंबाई सम्यक दृष्टि का प्रतीक है, जो दिखाता है कि सभी नागरिक एक समान हैं और इनमें जाति, वेश-भाषा, धर्म-पंथ के आधार पर कोई अंतर नहीं है। यह खास बात हमारे संविधान की प्रस्तावना का भी हिस्सा है।
सेंगोल में उकेरी गई हैं धन की देवी राज्य के वैभव की प्रतीक हैं। राजा को कोषागार या राज्य के खजाने का अधिपति है, वह कर लेने का अधिकारी भी होता है, साथ ही राज्य में किसी को धन-धान्य की कमी न हो, इसे भी सुनिश्चित करने वाला राजा ही है। देवी लक्ष्मी के आस-पास हरियाली के तौर पर फूल-पत्तियां, बेल-बूटे उकेरे गए हैं, जो कि राज्य की कृषि संपदा का प्रतीक हैं।
प्राचीन भारत की विरासत सेंगोल
सेंगोल का जिक्र हमारी प्राचीन पंरपराओं में रहा है, जो इस देश की विरासत रही है। प्राचीन काल से सेंगोल को राजदंड के तौर पर देखा जाता था, राजदंड सिर्फ सत्ता का प्रतीक नहीं, बल्कि राजा के सामने हमेशा न्यायशील बने रहने और प्रजा के लिए राज्य के प्रति समर्पित रहने के वचन का स्थिर प्रतीक भी रहा है। प्राचीन ग्रंथों में लिखा है कि राजदंड राजा का धर्म है, दंड ही धर्म और अर्थ की रक्षा करता है। राज्याभिषेक के दौरान राजा को धातु की एक छड़ी भी सौंपी जाती थी, जिसे राजदंड कहा जाता था। राजदंड, राजा की निरंकुशता पर अंकुश लगाने का साधन भी रहा है।
राजा जब गद्दी पर विराजमान होता तब वह अदण्ड्यो: अस्मि’ कहता है, तब राजपुरोहित उसे पलाश दंड से मारता हुआ कहता है कि ‘धर्मदण्ड्यो: असि’. राजा के कहने का तात्पर्य होता है, उसे दंडित नहीं किया जा सकता है। ऐसा वह अपने हाथ में एक दंड लेकर कहता है। यानि यह दंड राजा को सजा देने का अधिकार देता है, लेकिन इसके ठीक बाद पुरोहित जब यह कहता है कि, धर्मदंडयो: असि, यानि राजा को भी धर्म दंडित कर सकता है। ऐसा कहते हुए वह राजा को राजदंड थमाता।
राजदंड, राजा की आम सभा में न्याय का प्रतीक रहा है। राजदंड का प्रयोग मौर्य साम्राज्य (322-185 ईसा पूर्व) में भी हुआ करता था। मौर्य सम्राटों ने अपने विशाल साम्राज्य को दर्शाने के लिए राजदंड का उपयोग होता रहा है। चोल साम्राज्य (907-1310 ईस्वी) के अलावा गुप्त साम्राज्य (320-550 ईस्वी), और विजयनगर साम्राज्य (1336-1646 ईस्वी) में भी राजदंड इस्तेमाल होता आया है। कुछ दिन पहले ब्रिटेन में प्रिंस चार्ल्स के कोरोनेशन कार्यक्रम में उनके हाथ में राजदंड की प्रतीक एक छड़ी सौंपी गई।
आजादी से जुड़ा है सेंगोल का आधुनिक इतिहास
ब्रिटिश हुकूमत के बाद भारत की आजादी के साथ सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सेंगोल सौंपा गया था। वहीं प्राचीन इतिहास पर नजर डालें तो सेंगोल के सूत्र चोल राज शासन से जुड़ते हैं, जहां सत्ता का उत्तराधिकार सौंपते हुए पूर्व राजा, नए बने राजा को सेंगोल सौंपता था। यह सेंगोल राज्य का उत्तराधिकार सौंपे जाने का जीता-जागता प्रमाण होता था और राज्य को न्यायोचित तरीके से चलाने का निर्देश भी।
आजादी के बाद पीएम नेहरू को मिला था सेंगोल
1947 में वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने पूर्व पीएम नेहरू से पूछा कि भारतीय परंपराओं के अनुसार देश को सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक क्या होना चाहिए। तब पीएम होने वाले नेहरू ने भारत के प्रथम गवर्नर सी राजगोपालाचारी से बात की। उन्होंने ही एक गहन शोध के बाद राय दी कि भारतीय परंपराओं के अनुसार, ‘सेंगोल’ को ऐतिहासिक हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में चिह्नित किया जा सकता है। इसके लिए उन्होंने तमिल संस्कृति और चोल राज परंपरा का ही हवाला दिया। इसके आधार पर, नेहरू ने अधीनम से सेंगोल को स्वीकार किया।