दल बदल में कांग्रेस नेताओं ने मारी बाजी, रिपोर्ट में हुए चौंकाने वाले खुलासे
कांग्रेस आगे, बीजेपी पीछे दल बदल में कांग्रेस नेताओं ने मारी बाजी, रिपोर्ट में हुए चौंकाने वाले खुलासे
- दल बदलुओं से जुड़ा बड़ा सर्वे
- चौंकाने वाले नतीजे
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सियासी दुनिया में दल बदलना एक आम बात है। पर पिछले कुछ सालों में जिस तेजी से ये सिलसिला जारी है। वो चौंकाने वाला है। इससे भी ज्यादा चौंकाने वाला है वो सर्वे जो खुलासा कर रहा है कि किस तेजी से एक बड़े दल से दूसरे दल में नेताओं का दल बदलना जारी है. हाल ही में एडीआर ने एक सर्वे किया है। जिसके नतीजे हैरान करने वाले हैं।
2014 से भाजपा जब से सत्ता में आई है तब से कांग्रेस में भगदड़ मची हुई है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की माने तो चार साल के आंकड़े बीजेपी के लिए अच्छी खबर देते नजर आ रहे हैं।
2016 से 2020 के दरम्यान हुए चुनावों में दोबारा चुनाव लड़ने वाले विधायकों ने भी दल बदलना बेहतर समझा।
रिपोर्ट में एडीआर ने आगे कहा है कि 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान 5 सांसदों ने पार्टी छोड़ दी और दूसरे दलों में चले गए। जबकि 7 राज्यसभा सांसदो ने 2016-2020 के बीच कांग्रेस छोड़कर दूसरे दलों से चुनाव लड़ा।
एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक इस दलबदल की वजह से कई राज्यों में सरकार भी गिरीं।
2016-2020 के बीच 16 राज्यसभा सांसदों ने पार्टी बदलकर भाजपा ज्वाइन कर ली। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान 12 सांसदों ने पार्टी बदली, जिनमें से 5 सांसदों ने कांग्रेस को चुना। नेशनल इलेक्शन वॉच और एडीआर ने मिलकर 433 सांसदों के शपथ पत्रों को जांचा है, जिन्होंने इन पांच वर्षो में चुनाव के लिए पार्टियां बदली हैं।
क्या है एडीआर?
एडीआर एक ऐसा संगठन है जो गैर सरकारी है और बिना पक्षपात के भारतीय चुनाव प्रक्रिया को बेहतर बनाने के लिए काम करते हैं। एडीआर भारतीय राजनीति में पारदर्शिता लाने और चुनावों में बाहुबल को खत्म करने का प्रयास कर रही है।
एडीआर साल 1999 में तब सामने आया, जब आईआईएम के कुछ प्रोफेसर्रस ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक पीआईएल डाली। जिसमें उन्होंने चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों को अपने आपराधिक, आर्थिक और शैक्षिणिक रिपोर्ट को कहा। हाईकोर्ट ने एडीआर के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि जनता को हक है कि वो अपने नेता के बारे में जाने। इसके खिलाफ साल 2000 में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक अपील की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में भी सरकार की हार हुई और चुनावों की प्रकिया को और पारदर्शी बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया।