बेशर्मी का कोटा: 34 दिन में 106 बच्चों की मौत, सुविधाएं तो दूर अस्पताल में बिजली तक नहीं
बेशर्मी का कोटा: 34 दिन में 106 बच्चों की मौत, सुविधाएं तो दूर अस्पताल में बिजली तक नहीं
- जेके लोन अस्पताल में एक के बाद एक नवजातों की मौत
- राज्य सरकार आंकड़े बताकर कर रही खानापूर्ति
- शुक्रवार को दो बच्चियों ने तोड़ा दम
- 34 दिन में 106 बच्चों की मौत
डिजिटल डेस्क, कोटा। कोटा के जेके लोन सरकारी अस्पताल में एक के बाद एक नवजात की मौत हो रही है। शुक्रवार को 2 बच्चियों ने दम तोड़ा। एक बच्ची ने मंत्री रघु शर्मा के दौरे से पहले दम तोड़ा जबकि उनके जाने के बाद एक और बच्ची की मौत हुई। इनमें से एक बच्ची का जन्म 15 दिन पहले ही हुआ था। यहां पिछले 34 दिन में 106 बच्चों की मौत हो चुकी है, लेकिन प्रशासन न तो कार्रवाई कर रहा है और न ही अस्पताल के हालात सुधारने के प्रयास कर रहा है। कुछ हो रहा है तो सिर्फ बयानबाजी।
जेके लोन अस्पताल कोटा का सबसे बड़ा अस्पताल है। यहां के मेडिकल कॉलेज में गायनिक का एक विभाग है। वहां 65 पलंग हैं। यह हमेशा फुल रहता है। ठंड के मौसम में भी जच्चा-बच्चा को नीचे सुलाना पड़ता है। यहां 100 पलंग की जरूरत है। शहर के अन्य सीएचसी-सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में कहीं शिशु रोग विशेषज्ञों के पद खाली हैं तो किसी में सुविधाएं पूरी नहीं हैं। वहीं अस्पताल में भर्ती मरीजों के परिजनों के अनुसार अस्पताल में सफाई और सुविधाओं की बात तो दूर यहां बिजली तक नहीं है। हालांकि मंत्री के दौरे की खबर लगते ही कुछ वार्डों में बिजली व्यवस्था दुरुस्त कर दी गई है वह भी काम चलाऊ।
जयपुर से 4 घंटे की दूरी होने के बावजूद प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा ने गुरुवार तक यहां का दौरा नहीं किया था। शुक्रवार को वे अस्पताल पहुंचे तो प्रशासन ने रातों-रात अस्पताल का कायाकल्प कर दिया। सभी वार्ड में सफाई और पुताई हो गई। बेड पर नई चादरें बिछा दी गईं। मंत्री के स्वागत में ग्रीन कारपेट बिछा दिया गया, लेकिन जब किरकिरी हुई तो इसे हटा दिया गया।
सफाई छोड़िए यहां तो बिजली तक नहीं थी
परिजन के मुताबिक, अस्पताल में सफाई तो छोड़िए बिजली तक की व्यवस्था नहीं थी। मंत्री जी के आने से पहले ही लाइटें लगाई गईं। वरना जगह-जगह चूहे घूम रहे थे। खाने की व्यवस्था भी हमें खुद बाहर से करनी पड़ती है। अस्पताल के शिशु वार्ड समेत कई वार्डों में खिड़कियों से ठंडी हवा आती है, जिससे मरीजों की हालत खराब हो जाती है। रिपोर्ट्स के अनुसार, अस्पताल में कुछ दिन पहले हीटर खरीदे थे मगर वह कहां गए, किसी को नहीं पता।
स्वास्थ्य मंत्री का चौंकाने वाला बयान
वहीं जब मामले में स्वास्थ्य मंत्री से सवाल किया गया तो उनका जवाब चौकाने वाला था। उनसे जब सवाल पूछा गया कि जयपुर से कोटा महज 4 घंटे की दूरी पर है, बावजूद इसके वे अब तक कोटा क्यों नहीं गए? इस पर मंत्री ने कहा कि, "जयपुर से ही सिस्टम में सुधार कर रहा था। कोटा तो कभी भी आ सकता था।"
नवजातों की मौत पर सियासी खेल
कोटा में शिशु मृत्यु पर राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री, रघु शर्मा सियासत में रुचि ले रहे हैं। तभी तो उन्होंने उठ रहे सवालों पर पूर्व सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि, "यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज जो लोग सवाल उठा रहे हैं कि एक बिस्तर पर 2 बच्चे हैं, वे 5 साल से सत्ता में थे। 60 बेड जिन्हें हमने 2012 में मंजूरी दी थी, वे कहां चले गए? इसका जवाब कौन देगा?
नवजातों की मौत पर सीएम का जवाब
कोटा में जिस आईसीयू में शिशुओं की मौत हुई उसमें स्वच्छता की कमी पर राजस्थान सीएम अशोक गहलोत ने जवाब दिया कि, "ये तो आप देश में और प्रदेश में कहीं भी जाएं, वहां अस्पताल में कुछ कमियां मिलेंगी ही, उसकी आलोचना करने का हक मीडिया और लोगों को है, इससे सरकार की आंखें खुलती हैं और सरकार उसको बेहतर बनाती है।
आखिर क्यों हो रही बच्चों मौत?
राजस्थान के कोटा में 100 से ज्यादा बच्चों की मौत के बाद राज्य की अशोक गहलोत सरकार चौतरफा विरोध का सामना कर रही है। विपक्षी बीजेपी राज्य सरकार पर निशाना साध रही है। दूसरी तरफ सीएम गहलोत इस मुद्दे पर सियासत नहीं करने की अपील कर रहे हैं। इन सबके बीच यह सवाल अहम है कि आखिर इतने बच्चों की मौत आखिर हो क्यों रही है? बच्चों की मौत के पीछे
कौन से कारण जिम्मेदार हैं?
जेके लोन अस्पताल के सुपरिंटेंडेंट डॉ. सुरेश दुलारा की मानें तो सभी बच्चों की मौत कम वजन के चलते हुई है। वहीं, कुछ अन्य रिपोर्ट की माने तो बच्चों की कई अलग-अलग वजहों के कारण मौत हुई है। बच्चों की मौत का कारण निमोनिया, सेप्टिसिमिया, सांस की तकलीफ जैसी वजहें हैं।
535 जीवन रक्षक उपकरणों में से 320 काम नहीं कर रहे
सूत्रों की मानें तो 535 जीवन रक्षक उपकरणों में से 320 काम नहीं कर रहे हैं। इसके अलावा 71 इंफेंट वामर्स में से सिर्फ 27 काम कर रहे हैं। कुछ वेंटिलेटर भी सही तरह से काम नहीं कर रहे हैं। हालांकि, अस्पताल प्रशासन ने इससे इनकार किया है। सीएमओ के सूत्रों ने पुष्टि की है कि गहलोत मामले को गंभीरता से ले रहे हैं और खुद जांच की निगरानी कर रहे हैं। अस्पताल के सूत्रों ने कहा कि सभी बच्चों को अस्पताल में गंभीर हालत में लाया गया था।